जमशेदपुर-सावन का मांस  छतु(मशरुम) की बिक्री जोरो पर

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जमशेदपुर।

सावन आते ही हिन्दु समाज से अधिकत्तर  लोग शाकाहारी हो जाते है क्योकि सावन के माहीनो भागवान भोले शंकर  पूजा की जाती है। इस कारण लोग मांस- मछली का सेवन नही करते है।

और इसका असर बाजार में बिकने वाली हरी सब्जियों पर प़ड़ता है। सब्जियो के दामों  मे बेतहाशा वृद्धी हो जाती है। वैसे बाजार मे हरी सब्जी तो उपलब्ध रहती है लेकिन मटमैला उजले रंग का छोटे छोटे छाता रुप मे सब्जी बाजारों मे दिख जाती है। जिन्हे लोग छतु  या मशरुम कहते है। हालकि बाजारो मे छतु(मशरुम) तो हर वक्त मिलता है। लेकिन जुलाई और अगस्त (सावन और भादो) के समय मिलने वाला छातानुमा मशरुम की  काफी डिमाण्ड होती है। इसका बाजार मे भाव 150-250 रुपया किलो तक बिकता है।इस लोग सावन मे मॉस का दर्जा  देते है। इसका स्वाद मांस से कम नही होता है।

कई प्रकार के होते है छतु

छतु (मशरुम) कई प्रकार के होते है। सभी का बाजार मे अलग अलग भाव है।लेकिन बाजार मे कुछ ही छतु होते है जिसे लोग खाते है। बाजार सभी छतु का भाव एक नही होता है। जिस छतु का मांग ज्यादा रहेगी। उसकी कीमत उतनी रहेगी।

रुतका छतु- यह छतु पुरी तरह मट्टी मे पाए जाते है। यह सबसे ज्यादा भाव में बिकता है वैसे यह छतु पुरी तरह मिट्टी लगा रहता है अगर मिट्टी लगा छतु की बाजार मे कीमत 100 रुपया किलो होती है। और यही बिना मिटठी के लेने से इसकी कीमत 200 रुपया तक हो जाती है।

पुआल छतु- यह छतु जो पुआल मे सड़ जाता है उसी में पाया जाता है। और इसकी बाजार में काफी मांग है। इसकी कीमत भी 100—150 रुपया तक होती है।

कोरहान छतु- यह छतु जमीन पर कही भी हो जाते है। इसकी भी मांग काफी रहती है। बाजार में इस छतु की कींमत 150-200 किलो रहती है। और य़ह छतु  खाने मे काफी स्वादिष्ट होता है।

काठ छतु- यह छतु काठ(लकड़ी) पुरानी जो सड जाता है उस पर होते है इस छतु की मांग बहुत होती है।

 जहरीले छतु – छतु खरीदते समय ग्राहक काफी सावधान रहते है क्योकि कुछ छतु जहरीले भी होते है। उसके बारे मे कहा जाता है कि यह कोरहान छतु और पुआल छतु मे सॉप के द्वारा छु लेने के कारण वह जहरीले हो  जाते है। क्योकि बारिश मे सॉपो का निकलना ज्यादा होता है।

आस-पास के ईलाको से आते है छतु

इसका पैदावार जमशेदपुर से सटे सिनी ,पटमदा, पोटका, घाटशिला घाटशिला सहित आस पास ईलाके के जंगलो मे  होता है। इस बेचने वाले बिक्रेता सुबह सुबह बस या ट्रेन से शहर के  बाजार लेकर पहुंच जाते है। इसकी मांग इतनी है कि बाजार मे दोपहर के बाद शायद ही यह छातु देखने बाजार मिले।

 

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