सहरसा-खराब हो चुके सैकड़ों विसरे का आखिर जिम्मेदार कौन ?

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-पोस्टमार्टम रूम में रखें दर्जनों विसरे का अस्तित्व समाप्त
-संगीन अपराध में विसरा रिपोर्ट साक्ष्य के रूप में होता है अहम
-विना विसरे जांच की कैसे सुलझेगी दर्जनों संदिग्ध मामलों की गुत्थी
ब्रजेश भारती/सहरसा। हत्या सहित संदिग्ध मौत के कई मामलों में विसरा जांच की आवश्यकता होती है। ऐसे में कुछ मामलों में शवों को पोस्टमार्टम हाउस तक ले जाने के बाद बिसरा को जांच के लिए रख लिया जाता है। लेकिन सदर अस्पताल में रखे गये सैकड़ों बिसरे जांच की आस में ही खराब हो चुके हैं। सबसे बडा अहम सवाल यह है कि आखिर इसके लिये जिम्मेदार कौन है? खराब हो चुके विसरे व्यवस्था की नाकामी की गवाही दे रहे हैं। आंकड़ों की मानें तो इनकी जांच के लिए नमूने तो अस्पतालों में रखे जाते हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश मामलों की जांच सिर्फ इसलिए नहीं हो पाती कि इसकी जांच में लोगों की रूचि नहीं रहती है। हां कुछ चर्चित मामलों में इनकी जांच जरुर हुई है। लेकिन हर माह जमा विसरे की संख्या में बढ़ोत्तरी होती जा रही है और जांच की प्रक्रिया नहीं हो पाती है। पुलिस सूत्रों की मानें तो संदिग्ध परिस्थिति में हुई लोगों की मौत के मामले में शव का पोस्टमार्टम कराये जाने के बाद इस प्रक्रिया में शरीर के एक अंग का हिस्सा विसरा के रूप में जांच के लिए सुरक्षित रख लिया जाता है। सूत्रों की मानें तो विसरा जांच से मौत के कारणों का आसानी से पता लग जाता है। साथ ही इसका प्रयोग न्यायालय में साक्ष्य के रूप में दोषी को सजा दिलाने के लिए किया जाता है। लेकिन यहां अलग ही कहानी है। विसरा जांच के लिए रखा तो जाता है, लेकिन जांच की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ने के कारण इनकी संख्या में हर दिन इजाफा होता जा रहा है।
जांच को लैब तक नहीं पहुंचते विसरे
पोस्टमार्टम घर से लेकर सदर अस्पताल परिसर में जमा किये गये विसरों को देखने से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि इन्हें नियमों के अनुसार निर्धारित अवधि में लैब तक पहुंचाने की प्रक्रिया शुरु से ही सुस्त रही है। जमा विसरों की तादात यह बात बनाने के लिए काफी है। आलम यह कि सदर अस्पताल में जमा कई विसरे दस साल से भी अधिक पुराने हैं। कितने विसरे के सेंपल से उसका अस्थित्व ही समाप्त हो गया। वह किस मामले का विसरा है यह पता लगाना नामुमकीन हैं। कई मामलों में न्यायालय में विचारण की प्रक्रिया भी पूर्ण हो चुकी है, या पूर्ण होने के कगार पर है। लेकिन विसरा जांच में नही गई कुछ में जांच रिपोर्ट नहीं आयी।
हलाकि इस संबंध में जानकार की माने तो नियमों के अनुसार इनकी जांच विसरा लिये जाने के नब्बे दिनों के अंदर की जानी चाहिए। क्योंकि इसके बाद ये खराब होने लगते हैं।
जांच नहीं होने का क्या है वजह
सूत्रों की मानें तो पूरे बिहार में दो स्थानों पर विसरा जांच के लिए लैब स्थापित किये गये हैं। इन्हीं प्रयोगशालाओं में इनकी जांच होती है। प्रति वर्ष विसरा की संख्या में तो इजाफा होता है। लेकिन जांच के लिए प्रयोगशाला की संख्या में बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। यह सबसे बड़ा कारण है कि इनकी जांच कराने के चक्कर में कांड के अनुसंधानकर्ता नहीं पड़ते।
क्या कहते है सिविल सर्जन: सहरसा के सिविल सर्जन अशोक कुमार सिंह से पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि हमारा कार्य विसरा निकाल कर रख देना है। जांच का कार्य पुलिस प्रशासन का होता है। वर्वाद हो रहे विसरे की संख्या के बारे में पूछने पर सिविल सर्जन ने बताया कि हमें मरीज की संख्या गिनते गिनते तो नाक में दम है विसरे की गिनती करना संभव नहीं है।
क्या कहते हैं पुलिस अधीक्षक-सहरसा के पुलिस अधीक्षक अश्वनी कुमार ने कहा कि वैसे विसरे के संबंध में सिविल सर्जन की जिम्मेवारी होती है। उन्हें सिविल सर्जन की बातों से जब अवगत कराया गया तो उन्हांेने कहा कि इस संबंध में नियम कानून का पता लगाने दिजिए फिर आपको बताते हैं।

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