चुनावी हलचल: गजब का खेल
गजब का है ये खेल, जो अब होने वाला है देश में
निकलेंगे अब चोर लूटेरे, भी साधू के भेष में
अपनी प्रायश्चित का इससे, मौका अच्छा और कहां?
पुलिस के डंडे से बचने का, इससे अच्छा ठौर कहां?
यह परिवर्तन? लगता है अब राम राज्य आने वाला है,
कलयुग मंे भी रत्नाकर अब, बाल्मिकी बनने वाला है।
वर्षाें से यह खेल सुनो बस, यूंही चलता आया है,
केवल कुछ हैं जिनका नाम घोटालों में नहीं छाया है।
कल तक था दर्शन दुर्लभ, अब द्वारे द्वारे जायेेंगे,
हाथ जोड़कर पैर पकड़कर, जनता को फुसलायेंगे।
कोई निज को बेटा कोई खुद को बहु बतायेंगी,
बच्चों को गोदी मंे लेकर अपना प्यार जतायेगी।
हम भी खुशी के मारे यारों फूले नहीं समायेंगे,
मुन्नाभाई खुद आये थे, दुनिया को बतलायेंगे।
वादा किया है उन्होंने इस बार नहर बन जायेगी,
वर्षा से है झुकी कमर, अब लगता है तन जायेगी।
अच्छी होगी फसल तो मैं, बेटी का ब्याह रचाउंगा,
बेटा भी पढ़ लिख जायेगा मैं उसको बैध बनाउंगा।
कितने सपने बंधे हैं इन, कुर्सी के दावेदारों से,
पर ये अध्म तो जीते हैं, बस झूठे वादो-नारों से।
मिलते ही कुर्सी इनकी तो, काया पलट ही जाती है,
कब किस से क्या कहा, कहां ये याद इन्हें रह पाती है।
औनो-पौनो का क्या कहना, ये दिग्गज कि ही बातें हैं,
ये चुन के जहां जाते हैं, फिर मुंह भी नहीं दिखाते हैं।
हर बार छले जाते हैं हम, भारतवासी ए ‘राज’,
अपने हिस्से आहे होंगी उनके हिस्से ताज।।
राजेन्द्र राज
परसुडीह,जमशेदपुर।
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