जमशेदपुर। अक्सर बैठे-बैठे आपका हाथ या पैर तेजी से कांपने लगता है और शरीर को बेहतर तरीके से कंट्रोल करने में दिक्कत होती है तो यह पार्किंसन्स बीमारी होने की संभावना हो सकती हैं। इस रोग से बचने के लिए शारीरिक गतिविधि और व्यायाम से अविश्वसनीय लाभ होता हैं। ये बातें ब्रह्मानंद नारायणा हॉस्पिटल, तामोलिया, जमशेदपुर के सीनियर कंसल्टेंट- न्यूरोलॉजी डॉ अरुण कुमार ने कही। बुधवार को जारी प्रेस विज्ञाप्ति में डॉ. अरुण कुमार ने पार्किंसंस रोग के लिए शारीरिक गतिविधि और व्यायाम के लाभ की चर्चा करते हुए बताया कि इस रोग में मस्तिष्क के तंत्रिका कोशिकाओं में समस्या होती है, जो गतिविधियों को नियंत्रित करती है। इस रोग में नर्व सेल्स या तो डेड हो जाती हैं या खराब हो जाती हैं, जिससे डोपामाइन नामक एक महत्वपूर्ण रसायन के उत्पादन की क्षमता प्रभावित होती है। डॉ. अरुण कुमार के अनुसार पार्किंसंस रोग शरीर में कई प्रकार की समस्याओं का कारण बन सकती है। कंपकंपी या हाथ-पैर और जबड़े का अनैच्छिक रूप से हिलना। मांसपेशियों में अकड़न, कंधों या गर्दन में दर्द सबसे आम है। मानसिक कौशल या प्रतिक्रिया के समय में कमी। पलकों के झपकने की गति में कमी। अस्थिर चाल या संतुलन में दिक्कत होना। अवसाद या डिमेंशिया का जोखिम। यदि आपके परिवार में पहले किसी को यह समस्या रही है तो आपमें भी इसका जोखिम हो सकता है। इसके अलावा महिलाओं की तुलना में पुरुषों में पार्किंसंस रोग विकसित होने की आशंका अधिक होती है। कुछ शोध में पाया गया है कि जो लोग विषाक्त पदार्थों के संपर्क में अधिक रहते हैं उनमें भी इसके होने का जोखिम हो सकता है। डॉ. अरुण कुमार का कहना हैं कि पार्किंसंस रोग के रोगियों की स्थिति के आधार पर दवाइयों और थेरपी के माध्यम से इसके लक्षणों को नियंत्रित करने और जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। कुछ शोधों से पता चला है कि नियमित एरोबिक एवं व्यायाम से पार्किंसंस रोग का खतरा कम हो सकता है। डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि डोपामाइन-उत्पादक कोशिकाओं की 80 प्रतिशत या उससे अधिक हानि वाले रोगियों में पार्किंसंस के लक्षण विकसित होते हैं। एक अनुमान के मुताबिक हर साल पार्किंसंस रोग के 60,000 नए मामलों का निदान किया जाता है। यह स्थिति आमतौर पर 55 वर्ष की आयु के बाद विकसित होती है हालांकि 30-40 वर्ष के लोगों को भी ये प्रभावित कर सकती है। यह सबसे आम मोटर (गति-संबंधी) मस्तिष्क रोग भी है। जैसे-जैसे पार्किंसंस रोग बढ़ता है, इसके लक्षण भी बढ़ने लग जाते हैं। बीमारी के बाद के चरणों में अक्सर मस्तिष्क की कार्यप्रणाली प्रभावित हो सकती है जिससे डिमेंशिया जैसे लक्षण और अवसाद का भी खतरा होता है।
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