अन्नी अमृता
चाईबासा/जमशेदपुर।
भारत में एक समय ऐसा भी था जब ज्यादातर घरों की लड़कियां शिक्षा से वंचित रहती थीं और एक छोटा सा तबका ही था जिनके यहां की स्त्रियों को शिक्षा के अवसर मिलते थे.घरवाले लडकियों को पढ़ाना जरूरी नहीं समझते थे और उनकी शादी बेहद कम उम्र में कर दी जाती थी. आज भले ही जमाना बदल गया हो और कानून की नजर में लड़के और लड़कियों को समान अधिकार प्रदान किए गए हैं तथा ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान के तहत लड़कियों की शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है,लेकिन आज से लगभग 40-45 साल पूर्व जिन लड़कियों को मूलभूत शिक्षा से वंचित रखा गया था आज उनके सामने कई विकट समस्याएं खड़ी हो गई हैं.आज के समय में कई महिलाएं ऐसी हैं जो अपना नाम तक नहीं लिख पाती हैं और इस कारण जानकारी के अभाव में सरकारी योजनाओं से वंचित हो जाती हैं या फिर ठगी का शिकार हो जाती हैं.लेकिन चाईबासा में एक ऐसी टीचर है जो ऐसी महिलाओं को एकत्रित करके उन्हें न सिर्फ नाम लिखना सिखाती है बल्कि उनके लिए पुस्तकें भी उपलब्ध करवाती है. झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले के जिला हेडक्वार्टर चाईबासा से सटे एक बेहद छोटे से गांव गुटुसाई में लगभग 40 महिलाएं इस बदलाव का हिस्सा बन रही हैं.यह अभियान कोई और नहीं वही समाजसेवी ‘नेहा निषाद’ चला रही हैं जो गरीब बच्चों की शिक्षा, उनके लिए वस्त्रों/चप्पलों के इंतजाम को लेकर चलाए जा रहे अपने अभियान से चाईबासा की एक महत्वपूर्ण हस्ती बन चुकी हैं और अब उनको चाईबासा के बाहर भी विभिन्न कार्यक्रमों में आमंत्रित किया जाता है.आज नेहा निषाद एक जाना माना नाम हैं और सोशल मीडिया पर उनके फाॅलोअर्स भारी तादाद में हैं.दिलचस्प बात यह है कि नेहा ‘टीचर’ खुद एक बच्ची की तरह दिखती है और हो भी क्यों ना? वह एक युवा हैं जो पढाई के साथ ही समाजसेवा में सक्रिय हैं.
समाजसेवी नेहा निषाद द्वारा चलाए जा रहे इस ऐतिहासिक मुहिम ने कई महिलाओं की जिंदगी बदल कर रख दी है.इस ट्यूशन को पिछले 7-8महीनों से चलाया जा रहा है.इस ट्यूशन में महिलाएं गणित,विज्ञान, अंग्रेजी तथा हिंदी व्याकरण सीख रही हैं. नेहा निषाद ने बताया कि महिलाओं को पढ़ाने से काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है. पहले क्लास का आयोजन केवल दो दिन शनिवार तथा रविवार को किया जाता था परंतु महिलाओं के सीखने की ललक, लगन और पढ़ने में रुचि देखते हुए अब रोजाना ही क्लास लगती है. इस ट्यूशन में कॉपी, पेन, पेंसिल इत्यादि मुफ्त में उन्हें उपलब्ध कराई जाती है.महिलाओं के लिए चलाए जा रहे इस खास ट्यूशन में ज्यादतार महिलाएं बेहद निम्न स्तरीय परिवार से ताल्लुक रखती हैं तो कई ऐसी है जो दूसरों के घर झाड़ू, चौका-बर्तन का कार्य करती हैं. शाम को वे महिलाएं बर्तन धोकर सीधे ट्यूशन लेने आ पहुंचती हैं ताकि शिक्षा प्राप्त कर सकें.अब इन महिलाओं की इच्छा मैट्रिक परीक्षा लिखने की है ताकि वो भी साक्षर कहलाएं तथा आदर भरी जिंदगी व्यतीत कर सकें. ट्यूशन में न सिर्फ हाजिरी बनती है बल्कि होमवर्क भी मिलता है. अंत में नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाया जाता है. गायत्री मंत्र के जाप के बाद क्लास खत्म होती है. गुटुसाई गांव की महिलाएं इस बदलाव का हिस्सा बनने के लिए नेहा टीचर की शुक्रगुजार हैं.
नेहा निषाद कहती हैं कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती बस जरूरत हिचक को खत्म करने की है.उनकी कोशिश है कि वे ज्यादा से ज्यादा निरक्षर महिलाओं को इस अभियान से जोड़कर साक्षर बनाएं.
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