शिव धनुष अहंकार का प्रतीक था
जमशेदपुर।
श्रीराम कथा अमृत वर्षा के पांचवे दिन धनुष भंग और सीता विवाह की कथा सुनकर श्रोता भाव विभोर हुए।। कथा में बताया गया कि धनुष अहंकार का प्रतीक था। इसे तोड़ने में भगवान ने एक क्षण लगाया। पुष्प वाटिका में एक फूल तोड़ने में पसीना आ गया। अर्थात भगवान अहंकार को क्षण मे तोड़ देते हैं । विनय, विनम्रता और कोमलता के वह आधीन हो जाते हैं।
यूसिल कालोनी सामुदायिक भवन के सामने में भागवत प्रेमी संघ के तत्वावधान में चल रहे श्रीराम कथा के पांचवे दिन ह्री सुधीर जी महाराज ने ने सीता विवाह का मनोहारी चित्रण किया। पुष्प वाटिका में राम-सीता मिलन की व्याख्या करते हुए उन्हाने कहा कि भगवान मनुष्य को अनायास ही मिल जाते हैं। भक्ति पाने के लिए प्रयास करना पड़ता है। बिना संतों की शरण में जाए भगवान से संबंध नहीं हो सकता। सीता जी भक्ति का प्रतीक हैं और शिव धनुष अहंकार का प्रतीक था।
भगवान कहते हैं कि कठोरता सदैव बीच में होती है अर्थात मनुष्य न तो बालपन में कठोर होता है और न बुढ़ापे में। कठोरता और अहंकार जवानी में जन्म लेता है उसे उसी समय तोड़ देना चाहिए। इसका संदेश भगवान ने धनुष को बीच से तोड़ कर दिया था। उनकी मंशा को सीता जी भांप गई थीं। मानस मर्मज्ञ ने कहा कि अहंकार को चढ़ाया नहीं तोड़ा जाता है। कहा कि जनक क्षत्रिय होने के बावजूद विवेक और शास्त्र को अपना दर्शन मानते थे। परशुराम ब्राह्मण होने के बावजूद शस्त्र को अपना दर्शन मानते थे। परशुराम का दर्शन दंडात्मक था। हमारे देश में जब जब कड़े कानून बनाए गए उनको तोड़ने का जरिया पहले खोज निकाला गया। उन्होंने कहा कि यदि नीयत शुद्ध हो तो कानून का पालन कराया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पुष्प वाटिका वैदेही की वाटिका है। इसमें भक्ति का वास है। यहां सीता का राम से मिलन हुआ था। अशोक वाटिका एक भोगी की वाटिका थी। इसमें सीता का भगवान से वियोग हुआ।
श्री राम कथा के दौरान राम सीता के विवाह के लिए निकाली गयी आकर्षक झांकी एवं नृत्य का मनोहारी दृश्य प्रस्तुत किया गया और सभी श्रद्धालु झूमकर नाचकर श्री राम कथा का आनंद लिया और पूरा वातावरण श्री राम नाम के नारो से गूंज उठा ।
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