देश के पहले जे आर डी टाटा क्वालिफाइड भारतीय पायलट थे
JRD टाटा के जन्मदिवस पर विशेष
जमशेदपुर।
1926 से, जब उनके पिता की मृत्यु हुई, 22 वर्ष की आयु में टाटा संस के डायरेक्टर और 12 साल बाद, 1993 में अपने देहांत तक इसके चेयरमैन के पद को सुशोभित करने वाले जेआरडी टाटा का जीवन राष्ट्रीय हितों के लिए सतत और उत्कृष्ट उपलब्धि का एक सफर रहा। भारत के सबसे बड़े और सबसे सफल औद्योगिक उद्यमों के नेतृत्वकर्ता के रूप में, उन्होंने राष्ट्र के विकास और उन्नति में बड़ा योगदान दिया।
29 जुलाई, 1904 को पेरिस में जन्मे, जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा, जमशेदजी के भतीजे रतनजी दादाभाई टाटा और उनकी फ्रांसीसी पत्नी सुनी के दूसरे पुत्र थे। टाटा के पांच बच्चे थे, जो कभी फ्रांस, तो कभी बॉम्बे में पले-बढ़े और स्कूली शिक्षा प्राप्त की। यद्यपि जेआरडी कैंब्रिज में रह रहे थे, लेकिन उन्हें 1924 में एक साल के लिए फ्रांसीसी सेना को सेवा देनी पड़ी थी। अगले साल, रतनजी ने उन्हें ‘टाटा’ में शामिल होने के लिए बॉम्बे वापस बुला लिया और बॉम्बे हाउस में टाटा स्टील के डायरेक्टर इंचार्ज श्री जॉन पीटरसन के अधीन रखा।
दशकों के उतार-चढ़ाव के बाद, ’टाटा’ के पास एक ऐसे व्यक्ति द्वारा संचालित होने का सौभाग्य था, जो जमशेदजी को प्रिय सभी आदर्शों जैसे – न्याय, समानता, ट्रस्टीशिप के सिद्धांतों के लिए जीता था। एक भाषण में जेआरडी ने देखा कि यदि ‘टाटा परिवार’ ने अन्य रास्ता चुना होता, तो वे आज जो हैं, उससे कई गुणा विशाल होते। लेकिन उन सभी सिद्धांतों को छोड़ने का कोई सवाल ही नहीं था, जो उन्होंने हमेशा ही संजोए थे। जमशेदजी और दोराबजी की तरह उन्होंने न केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए, बल्कि एक ‘पवित्र विश्वास’ के रूप में संपत्तियों के सृजन की परिकल्पना की, जिसे कृपापूर्वक समाज से प्राप्त किया गया और उदारतापूर्वक देश और उसके नागरिकों को वापस दिया गया।
समूह के लिए श्री टाटा के विजन की झलक ‘टाटा’ के विकास में देखा जा सकता है, जिसमें 14 कंपनियां थी, जब उन्होंने समूह का कमान संभाला था। 53 वर्षों के अपने नेतृत्व के बाद उन्होंने या तो 95 उद्यमों की शुरूआत की या उनमें उनकी नियंत्रित दिलचस्पी थी। इसमें कई उद्योग शामिल थे, जैसे – स्टील, बिजली उत्पादन, इंजीनियरिंग, होटल, परामर्श सेवायें, सूचना प्रौद्योगिकी, उपभोक्ता और औद्योगिक उत्पाद आदि। लेकिन समूह ने केवल उन्हीं उद्यमों में निवेश किया, जो श्री टाटा के एक मार्गदर्शक सिद्धांत का पालन करते थे यानी देश और इसके लोगों की जरूरतों व हितों की सेवा होनी चाहिए और, यह कार्य निष्पक्ष और ईमानदार तरीके से किया जाना चाहिए।
श्री टाटा ने नैतिकता और मानवीयवाद को सबसे ऊपर रखा। उन्होंने ने ही 1943 में इस विचार को आकार दिया कि यदि अधिक नहीं तो, मशीनों की तरह आदमी भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं और उनकी देखभाल करना अच्छे प्रबंधन की एक शर्त है। उनकी दूरदर्शिता और चिंता के कारण ही टाटा स्टील में पर्सानेल डिपार्टमेंट की स्थापना हुई और सामाजिक कल्याण योजनाओं को लागू किया गया, जिसके बाद इसी को आगे बढाते हुए 1956 में ज्वाइंट कंसलटेशन का एक सिस्टम लाया गया।जेआरडी टाटा ने जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए एक पूर्व शर्त के रूप में परिवार नियोजन के महत्व को महसूस किया। काफी पहले, 1951 की शुरुआत में ही अपने वार्षिक भाषण में टाटा स्टील के शेयरधारकों को संबोधित करते हुए उन्होंने इस समस्या पर तत्काल ध्यान देने का जोशिला आग्रह किया। देश के सबसे सफल कार्यक्रमों में से एक टाटा स्टील का परिवार कल्याण कार्यक्रम, जेआरडी के दिमाग की उपज है। सितंबर 1992 में संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण जैसे राष्ट्रीय हितों के कार्यक्रमों में उनके अथक प्रयास व योगदान के लिए पॉपुलेशन अवार्ड से सम्मानित किया।
भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों ने श्री टाटा को कई मानद डिग्रियों एवं डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया। 1955 में पद्म विभूषण, 1979 में टोनी जन्नूस अवार्ड, 1983 में ‘द रैंक ऑफ कमांडर ऑफ द फ्रेंच लीजियन ऑफ ऑनर’, 1986 में बेस्सेमर मेडल ऑफ द इंस्टीट्यूट ऑफ मेटल्स, लंदन और 1988 में डैनियल गग्नेजेम मेडल से नवाजा गया। इसके तीन साल बाद, उन्होंने रतन टाटा के लिए टाटा संस के चेयरमैन के रूप में अपना पद त्याग दिया, लेकिन चेयरमैन एमेरिट्स के रूप में बोर्ड में कार्य काम जारी रखा। 1992 में भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया, जो इसकी स्थापना के बाद पहली बार किसी उद्योगपति को मिला दिया गया था।उन्होंने हमेशा एक उद्योगपति से ऊपर उठ कर विज्ञान और कला के विकास में एक अद्वितीय योगदान दिया। उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, टाटा मेमोरियल कैंसर रिसर्च सेंटर ऐंड हॉस्पिटल, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।अपनी सामाजिक चिंताओं के अलावा, जिसने उन्हें विशिष्ट बनाया, वे निर्विवाद रूप से नागरिक उड्डयन के मार्गदर्शक थे और उन्होंने भारत को हवाई परिवहन के युग में प्रवेश करने में मदद की। 1953 से 1978 तक राष्ट्रीयकृत एयर इंडिया के चेयरमैन रहे श्री टाटा पहले क्वालिफाइड भारतीय पायलट थे। 1930 में आगा खान पुरस्कार के लिए एक प्रतियोगी के रूप में भारत से इंग्लैंड के लिए अकेले उड़ान भरी। दो साल बाद, 1932 में उन्होंने टाटा एयरलाइंस की स्थापना की, जिसे बाद में देश के पहले राष्ट्रीय वाहक के रूप में एयर इंडिया का नाम दिया गया। इसके उद्घाटन उड़ान में उन्होंने व्यक्तिगत रूप से कराची से मुंबई की उड़ान भरी।
पचास वर्ष बाद, 78 वर्षीय जेआरडी टाटा ने “युवा पीढ़ी में साहस की भावना पैदा करने के लिए“ एक बार फिर अकेले हवाई जहाज उड़ाया। 29 नवंबर 1993 को 89 वर्ष की आयु में श्री टाटा की जेनेवा, स्विट्जरलैंड में मृत्यु हो गई। इसके तत्काल बाद, काफी समय से बीमार चल रही उनकी पत्नी थेल्मा ने, जिनसे उन्होंने 1930 में शादी की थी, जल्दी ही संसार त्याग दिया। जेआरडी को उनकी सादगी, पुरानी दुनिया के शिष्ट व आकर्षण व्यक्तित्व, पारदर्शिता और उदारता के लिए याद किया जाएगा। यद्यपि वे लगातार पॉवर के संपर्क में रहे, लेकिन उन्होंने इसे कभी अपने-आप को छूने नहीं दिया। उन्होंने उन मुद्दों पर अपने दिल की बात कहने में कभी संकोच नहीं किया, जिन पर उनकी चिंता होती थी।1984 में जब श्री जेआरडी टाटा टाटा स्टील के चेयरमैन बने, तब से उन 40 से अधिक वर्षों के दौरान उन्होंने जमशेदपुर के लिए जो किया, उनके अच्छे कार्यों एवं दूरदृष्टियों से लाभांवित होने सभी लोग जानते हैं। कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि ’सी मॉन्युमेंटम क्वार्सी, सर्कस्पॉस’ अर्थात आप जेआरडी के स्मारक क्यों खोजते हैं? बस अपने चारों ओर देखिए।
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