
राजेस तिवारी

पटना | गठबंधन राजनीतिक हो या सामाजिक इस गठजोड़ को निभाना अहम् होता है ना चाहते हुए भी एक -दुसरे को जगह देनी ही होती है | गठबंधन का नियम ही यही है | नाराजगी भी हो तो दिल में ही रखना पड़ता है और एक दुसरे से सामजस्य बैठना पड़ता है | गठबंधन पर नित -प्रतिदिन कई मुद्दे निकालकर आते रहते है जिस पर गठबंधन के एक सदस्य के विचार दूसरे से मेल ना खाते हो लेकिन इसे लेकर एक दूसरे से समझौता
करना ही पड़ता है | परिवार की बात हो राज्य की या देश की ,गठबंधन किया है निभाना तो पड़ेगा ही | केंद्र में बनी गठबंधन की सरकारों में भी विवाद रहा है | मुद्दे की भिड़त और गठबंधन तोड़कर अलग होना ये सब आम बाते है | ये गठबंधन के घटक दलो पर निर्भर करता है की आपसी सुलह कैसे किया जाए ?हाल ही में केंद्रीय गठबंधन में भी विरोध के सुर निकले थे लेकिन गठबंधन ने बातचीत कर सुलह कर ली |
जैसे रिश्ते में खटास आने पर धीरे -धीरे रिश्ते में ऐसी दरार आ जाती है और रिश्ता निभाना मुश्किल हो जाता है गठबंधन में आम राय और आपसी बातचीत से रिश्ते को मजबूती देना जरुरी होता है | कुछ ऐसा ही रिश्ता है बिहार में बने महागठबंधन का जिस पर सबकी नज़र बनी रहती है |
लालू और नीतीश की दोस्ती और इस गठबंधन को अभी भी लोग स्वीकार नहीं कर पा रहे वजह भी हराजनीतिक रिश्ते भले ही मजबूत हो लेकिन इस महागठबंधन में विरोध के सुर आए दिन उठते रहते है |
जहा कुछ लीक हुआ नहीं की विपझ के कान खड़े हो जाते है | लोग लालू -नीतीश की बातो पर धयान देते है | दोनों पार्टियों में किसने क्या कहा ?किसने क्या सुना ?विधानसभा चुनाव से पहले ही जब इस गठबंधन की बात लोगो के बीच पहुची लोगो ने आश्चर्य जाहिर किया की लालू के साथनीतीश ये सरकार कितने दिनों तक चलेगी ?लेकिन दोनों पार्टियों और तीसरी पार्टी ने अब तक यह साबित कर दिया है की गठबंधन किया है तो निभाना तो पड़ेगा ही | .
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