जमशेदपुर।
सी एन टी और एस पी टी का मामला दिन पर दिन तूल पकड़ने लगा है।इस मामले को लेकर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता अर्जुन मुंडा अब खुलकर आ गए है वे जमशेदपुर स्थित घोड़ाबाधां स्थित वन विभाग के गेस्ट हाऊस पर प्रेस कांफ्रेंस कर अपने ऊपर लगे सारे आरोप को निराधार बताया ।उन्होंने ने आरोप लगाया है कि राज्य में एक पक्ष या ताकत है जो सीएनटी में शामिल गैर आदिवासियों की जमीन में अपना हित देख रहा था, उसकी व्याकुलता बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि पूर्व में यह मामला हाईकोर्ट में गया था और तब उच्च अदालत ने इसकी व्याख्या भी की थी। उन्होंने कहा कि पूर्व में भी एक्ट में शामिल गैर आदिवासियों की जमीन की खरीद बिक्री का प्रयास हुआ था, जिसका उन्होंने विरोध किया था।


उन्होंने सोमवार को समाचार पत्रों में छपी उस खबर पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की जिसमें यह कहा गया है कि सीएनटी-एसपीटी में संशोधन की प्रक्रिया उनके मुख्यमंत्री रहते शुरू हुई थी। कहा, उनके पास जब मामला आया था तो उन्होंने उसे नियमानुसार ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी (टीएसी) के पास अग्रसारित कर दिया था। उसे विचार के लिए टीएसी की लोबिन हेम्ब्रम की अध्यक्षता वाली उस उप समिति में को सौंपा गया था जिसके बंधु तिर्की, चमरा लिंडा आदि सदस्य थे। उन्होंने कहा कि यह यह स्पष्ट होना चाहिए कि उस उप समिति ने क्या अनुशंसा की थी। सवाल उठाया कि क्या संशोधन उप समिति की अनुशंसा पर किया गया है? उन्होंने कहा कि इस मामले को ऐसे पेश किया जा रहा है, जैसे उन्होंने संशोधन का प्रयास किया था। कहा, जो भी ऐसा कह रहे, उनकी कोई विश्वसनीयता नहीं है क्योंकि न तो उन्होंने इसके लिए पहल की थी और न इस मामले को कैबिनेट में ले गए
उन्होंने सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन पर एक बार फिर सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। उन्होंने सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा है कि अगर संशोधन से आदिवासियों का विकास होना है तो वैसे लोगों या तबके की सूची जारी हो, जो अपनी कृषि भूमि पर उद्योग और व्यवसाय लगाने के इच्छुक हैं। ऐसे कितने प्रस्ताव लंबित हैं और उसके लिए कितनी जमीन की आवश्यकता है, यह स्पष्ट होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं है तो फिर जबरदस्ती संशोधन क्यों किया जा रहा है।
सरकार को पार्टी को तो विश्वास में लेना ही चाहिए, संबंधित पक्षों से भी विचार-विमर्श होना चाहिए कि क्योंकि यह संवैधानिक मामला है।
मुझसे और सांसद कड़िया मुंडा जैसे लोगों से सीएनटी-एसपीटी संशोधन के मसले पर कोई कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया।
वे सरकार के विरोधी नहीं हैं। मामला आदिवासियों के हित से जुड़ा है, इसलिए वे चाहते हैं कि इस पर बात हो।