विनोद शरण


जमशेदपुरः दलमा की सुरम्य पहाड़ियों की श्रृंखला के आंचल में व सुवर्णरेखा व खरकई नदी की कलकल-छलछल बहती धारा तट पर बसे इस लौहनगरी जमशेदपुर को नींद से मंदिरों की घंटियां, मसजिदों के आजान, गुरुद्वारों के शबद कीर्तन व गिरजा घरों से निकलने वाली प्रार्थनाओं की भक्तिरस की ध्वनियां हर दिन जगाती हैं. साथ ही शाम में आरती के गीतों, आजानों के बीच नींद में ले जाती है. जी हां, हम बात कर रहे हैं. उस शहर का जिसकी परंपरा में मेहनत कशों की खुशबू बसी है. यहां हिंदू, मुसलमान, सिख व ईसाई समेत अन्य धर्मों के लोग एकता के इतने गहरे बंधन में बंधे हैं, जिन्हें अलग कर देखा नहीं जा सकता. इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती. तभी तो यह लौह नगरी कहलाती है. यहां विभिन्न कारखाने हैं- टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टिनप्लेट समेत कई छोटे-बड़े कारखानें, जिनमें हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई समेत अन्य धर्मों के लोग एक साथ काम करते हैं. पूरे भाई चारगी के साथ, सिद्दत के साथ, प्रेम व एकता के साथ. जब ईद आती है, तो अब्दुल ईद की छुट्टी मनाता है, तो उसके बदले राम दयाल उस मशीन पर काम करता है, इसी प्रकार जब दशहरा, दीपावली, छठ या कोई और पर्व आता है, तो राम दयाल की जगह अब्दुल काम करता है. ऐसी मिसालें यहीं मिलती हैं, जमशेदपुर में ही और कहां. अभी हाल ही में तो ईद आयी थी. इसकी खुशियां क्या मुसिलम क्या हिंदू क्या सिख व क्या इसाई सभी ने तो मिल कर सेवाइयां खायी थीं. मुसलिम भाइयों के घरों में जा कर ईद की न केवल बधाई दी थी, बल्कि सेवाइयां जम कर खायी थी और ईत्र की खुशबू में तर हुए थे. इसकी खुबसू तो अभी तक जमशेदपुर की फिजाओं में महक रही थी, तभी तो यह मिनी भारत कहलाता है. लेकिन इस लौहनगरी के सीने पर अचानक कौन जख्म दे गया. एक छोटी सी छेड़खानी की घटना से शहर इतना उद्वेलित कैसे हो गया, आंखों में आक्रोश कैसे भर आया. इतनी छोटी सी घटना से अगर पूरा शहर परेशान हो जाये, हिल जाये व एक – दूसरे को मारने –मरने पर आमादा हो जाये, तो सिहरन सी होती है.शहर सिहर भी गया. प्रख्यात शायर शहरयार की ये पंक्तियां स्वतः जुबा पर आ रही हैं-
सीने में जलन में आंखों में तुफान सा क्यों हैं,
इस शहर का हर सख्श परेशान सा क्यों हैं.
विगत तीन दिनों से जिस तरह से शहर हैरान-परेशान है, लोगों में उबाल व आंखों में उबाल दिख रहा है, यह सवाल खड़े करता है कि क्या शहर का जो सांप्रदायिक सद्भाव का ताना-बाना रहा है, जिसके लिए शहर न केवल देश में, बल्कि विश्व में जाना जाता रहा है, वह कमजोर पड़ गया है. प्रेम का धागा कमजोर पड़ गया है. निश्चित तौर पर एक छोटी सी घटना से शहर के सीने पर गहरे जख्म तो लगे हैं, जिसे भरने में कुछ वक्त तो अवश्य लगेंगे. जो हालात कुछ चंद नासमझ लोगों के कारण पैदा हो गये हैं, उसे पाटने में अमन पसंद व तरक्की पसंद लोगों को पाटने में वक्त तो अवश्य लगेगा, लेकिन शहर को जो जख्म मिला है, वह अवश्य भरेगा. जरूरत है कि उस धागे को मजबूत करने की, हमारी साझा सांस्कृतिक जो एक सदी से विरासत के रूप में रही है, उसे मजबूत करने की. गंगा-जमुनी संस्कृति को ताकत देने की. साथ ही उन कारणों की तलाशने की भी कि आखिर क्यों ऐसी नौबत आती है कि एक जरा सी घटना पर हमारी बिरासत लहुलहान होने लगती है, हमारी संस्कृति की तार तार-तार होने लगती है. निश्चित तौर पर प्रशासन के लोग तो प्रशासनिक दृष्टि से कमियों-खामियों को देखेंगे-समझेंगे व प्रशासनिक दृष्टि कार्रवाई भी होगी, लेकिन सिर्फ प्रशासन पर जिम्मेदारी दे कर छोड़ देने से नहीं होगा. हर समुदाय के समझदार, बुद्धिजीवी व हर अमन पसंद लोगों को आगे आना होगा. तभी शायद इस शहर को जो जख्म मिले हैं, उसे मिटाया जा सकता, भरा जा सकता है, पाटा जा सकता, जरूरत मजबूत कोशिश की है. फिर कहते हैं न-
कहिये तो आसमां को जमीन पर उतार लायें
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लिजीये.