जमशेदपुर-जानी-मानी पर्वतारोही बछेंद्री पाल करेंगी एवरेस्ट 2017 अभियानों का नेतृत्व

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अलग-अलग पृश्ठभूमियों और विभिन्न राज्यों की महिलाएं चुनौतीपूर्ण गोक्यो एवरेस्ट बेस की

ट्रैकिंग के लिए निकलेंगी

जमशेदपुर।

प्रकृति प्रेमी और पर्वतारोही तथा टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेषन (टीएएसएफ) की प्रमुख बछेंद्री पाल एक बार फिर एवरेस्ट अभियान के लिए तैयार हैं। सुश्री पाल आगामी 26 मार्च, 2017 से गोक्यो एवरेस्ट बेस कैंप ग्रैंड सर्कल के लिए महिला अभियान दल का नेतृत्व कर रही हैं। उन्होने इस अभियान में टाटा स्टील के हेमंत गुप्ता तथा पायो मुर्मू को भी शामिल किया है ताकि वे एवरेस्ट अभियान पर जाने से पहले खुद को ऊंचाई और कठिन चढ़ाई के लिए तैयार हो सकें। ये दोनों एवरेस्ट बेस कैंप तक साथ रहेंगे और यहां से वे अलग मार्ग से होते हुए एवरेस्ट की चोटी तक पहुंचने के मार्ग पर बढ़ जाएंगे।

 

सुश्री पाल के नेतृत्व में 6 महिलाओं की एक टीम गोक्यो एवरेस्ट बेस कैंप ग्रैंड सर्कल के लिए जीरी रूट से जाएगी। लुक्ला तक पहुंचने के एक हफ्ते के कठिन ट्रैक के बाद यह दल नामचे तक एवरेस्ट ट्रेल पर आगे बढ़ेगा जहां से एक अलग रास्ता गोक्यो की ओर चला जाता है। इस अभियान के सदस्य 17500 फुट की ऊंचाई पर गोक्यो रिज तक पहुंचेगे और यहां तक पहुंचने से पहले लोबुचे बेस समेत 16 से 17 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित दो ऊंचे पर्वतीय दर्रों को पार करने के बाद एवरेस्ट बेस कैंप पहुंचेगे।

 

हेमंत और पायो मुर्मू को एवरेस्ट बेस कैंप से ही एवरेस्ट अभियान के लिए विदा किया जाएगा।

आईआईटी छात्र रह चुके मुंबई के हेमंत 2013 में टाटा स्टील से मैनेजमेंट ट्रेनी के तौर पर जुड़े थे और पायो मुर्मू टाटा स्टील की राॅ मैटिरियल डिवीज़न में लोको ट्रैफिक ग्राउंड कंट्रोल स्टाफ के तौर पर कार्यरत हैं।

आगामी अभियानों को लेकर रोमांचित बछेंद्री पाल ने कहा, ’’एवरेस्ट हमेषा से ही मानवीय प्रयासों की सर्वोच्च चुनौतियों का प्रतिबिंब रहा है, यह नेतृत्व का प्रतीक है, इस अभियान के जरिए हमें अपनी ताकत और अपनी कमजोरियों का पता चलता है, एवरेस्ट हमें बताता है कि हमें अपने प्रयासों में विनम्र होने की जरूरत है और अपनी क्षमताओं की परख करने का मौका मिलता है। हमने जो भी कौषल सीखे होते हैं वे हमें हिमाचल में पहाड़ों पर चढ़ने में ही मददगार नहीं होते बल्कि असल जिंदगी में भी उनसे हमें सहायता मिलती है और इस तरह पर्वतारोहियों को बेहतर इंसान बनाने तथा जिस संगठन या समुदाय के लिए वे काम करते हैं उनके लिए भी उनकी उपयोगिता बढ़ती है। टाटा स्टील लोगों को सषक्त बनाने मंें यकीन रखती है और इसी दिषा में हमारे प्रयासों को जारी रखते हुए इस साल गर्मियों में हमारे दो कर्मचारी एवरेस्ट की चोटी तक पहुंचने का प्रयास करेंगे।‘‘

 

आईआईटी मुंबई के ग्रेजुएट और टीएसएएफ में मैनेजर श्री हेमंत गुप्ता ने कहा, ’’टीएसएएफ इस प्रकार के अनूठे अभियानों के लिए मार्गदर्षक रही है और ऐसे प्रयास वास्तव में, लोगों को सषक्त और समर्थ बनाने के साथ-साथ उन्हें अपनी क्षमताओं तथा स्वप्नों को आंकने का मौका देते हैं। हम टीएसएएफ के आभारी हैं जिसने हमें इस महत्वपूर्ण अभियान में भाग लेने का अवसर दिया है। हमें पूरा विष्वास है कि यह दूसरों को भी अपनी क्षमताओं से आगे निकलकर सपने देखने के लिए प्रेरित करेगा।‘‘

 

हेमंत गुप्ता ने 2015 में अमरीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट अकांगागुआ (22860 फुट), गंगोत्री क्षेत्र की चोटी माउंट भागीरथी प्प् ;21310 फुटद्धए नेपाल मंे आइलैंड पीक (20499 फुट), स्पीति घाटी में माउंट कनामो (19600 फुट) तथा लेह में चामसेर कांगड़ी चोटी (21110 फुट) की चढ़ाई की थी।

 

पायो मुर्मू दुनिया के सबसे कठिनतम ट्रैक – स्नोमैन ट्रैक को भी पूरा कर चुकी हैं। इसमें 14000 फुट से लेकर 17000 फुट से भी अधिक ऊंचाई के 11 दर्रों को पार करना होता है। इसके अलावा, मुर्मू ने अन्नपूर्णा अभियान भी पूरा किया है जिसमें वे 17800 फुट की ऊंचाई पर थोरोरांग ला तक पहुंची थीं।

 

इस टीम में सुश्री बछेंद्री पाल के अलावा प्रेमलता अग्रवाल (टाटा स्टील में अधिकारी तथा पद्मश्री पुरस्कार विजेता जो सातों महाद्वीपों की सातों सर्वोच्च चोटियों पर चढ़ चुकी हैं), ओडिषा की स्वर्णलता दराई, नोआमुंडी झारखंड से षांति हेमब्रम, उत्तराखंड की पूनम राणा, सीमा सुरक्षा बल दिल्ली से वी सरस्वती और देहरादून की अमला रावत षामिल हैं। टीएसएएफ स्टाफ से संदीप टोलिया भी इन अभियानों के जरिए महत्वपूर्ण अनुभव प्राप्त करने के लिए इनसे जुड़ रहे हैं।

 

पायो मुर्मू के बारे में

पायो मुर्मू 2011 तक टाटा स्टील में पूल वर्कर के रूप में काम कर रही थी जहां वह विभिन्न अफसरों के लिए चाय लाया करती थी और दूसरे छोटे-मोटे काम करती थीं।

पायो मुर्मू जेआरडी टाटा स्पोर्ट्स काॅम्पलैक्स में एक खेल आयोजन के बाद तेजस्विनी चंपा तुदू (तेजस्विनी टाटा स्टील में विषेश रूप से प्रषिक्षित महिला हैं जो फैक्टी में टेन डाइवर, बुलडोजर डाइवर, लोडर आदि का काम करती हैं) के साथ एक रोज टीएसएएफ के लिए जेआरडी टाटा स्पोर्ट्स काॅम्पलैक्स गई। चंपा पहले टीएसएएफ के कार्यक्रमों में षामिल हो चुकी थीं और उन्होंने पायो को सुश्री बछेंद्री पाल से मिलाया। बातचीत के दौरान सुश्री पाल को पता चला कि पायो में खेल स्पर्धाओं के लिए षानदार प्रतिभा है। सुश्री बछेंद्री पाल ने पायो से पूछा कि क्या भूटान में होने वाले ‘स्नोमैन टैक’ में भाग लेना चाहेगी। पायो ने बेहद उत्साह से हां कह दी। सुश्री पाल ने देखा कि पायो में सर्वश्रेश्ठ प्रदर्षन करने का जज्बा था। अभियान सफलतापूर्वक जून 2011 में पूरा हो गया और इसमें पायो का प्रदर्षन षानदार रहा। इसके बाद वह अक्टूबर 2013 में अन्नपूर्णा बेस कैंप (17769 फुट) अगस्त 2014 में कानामाओ अभियान (19600 फुट) और सितम्बर 2014 में माउंट भागीरथी अभियान (21400 फुट) में षामिल हुईं।

 

इसके बाद उन्होंने 2015 में उत्तरकाषी हिमालय में एवरेस्ट अभियान के लिए जोरदार तैयारी की। लेकिन जब वह माउंट एवरेस्ट के कैंप प्प् के रास्ते में थीं तो नेपाल में आये भूकंप उनके अभियान पर ब्रेक लगा दिया। भूकंप का झटका उस जगह भी महसूस किया गया था लेकिन वह सुरक्षित लौटने में कामयाब रही। भूकंप की खबर से पायो का परिवार बहुत सहम गया क्योंकि उन्हें पायो की चिंता सता रही थी। पायो 53 साल की हैं और अपने परिवार का गुजारा चला रही हैं जिसमें तीन बेेटे और पति की देखभाल षामिल है।

 

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यह घटना भी पायो को माउंट एवरेस्ट के 2017 के ग्रीश्म अभियान में षामिल होने से नहीं रोक पाई। उन्होंने इस कठिन और खतरनाक अभियान के लिए बाकायदा अपने परिवार से अनुमति ली है। उन्होंने टीएसएएफ के तहत प्रषिक्षण लिया है जिसमें उन्होंने बेस कैंप से कुफलोन तक आना-जाना किया और इस दौरान उनके बैकपैक में काफी भार भी था। बेहद बर्फीली चोटी की चढ़ाई के दौरान यह प्रषिक्षण उनके काम आएगा।

 

पायो ने पूरे अभियान को बेहद खुलेमन से लिया है और वह अपनी मजबूत इच्छाषक्ति के साथ कोई भी चुनौती का सामना करने को तैयार हैं। आसानी से हार न मानने की इच्छाषक्ति और किसी भी चुनौती का सामना करने की क्षमता का बेजोड़ मेल पायो के पास है जो हिमालय की पर्वत चोटियों की चढ़ाई और खासतौर से विष्व की सबसे ऊंची चोटी के लिए जरूरी होता है।

 

पायो वर्कर्स पूल में थी और जहां उनके जिम्मे छोटे-मोटे काम हुआ करते थे। स्नोमैन अभियान में षानदार प्रदर्षन के बाद टाटा स्टील प्रबंधन ने उन्हें एक समुचित विभाग में भेज दिया है। अब वह टाटा स्टील की राॅ मैटेरियल मैनेजमेंट डिवीजन में लोको टैफिक ग्राउंड स्टाफ के तौर पर काम कर रही हैं।

 

हेमंत गुप्ता के बारे मेंः

हेमंत गुप्ता (27 वर्श) ने 2011 में आईआईटी बाॅम्बे से मेटालर्जिकल इंजीनियरिंग एवं मैटेरियल साइंस में बी.टेक पूरा किया और टाटा स्टील के नए संयंत्र कलिंगनगर ओडिषा में मैनेजमेंट ट्रेनी के तौर जुड़े। एमटी के तौर पर उन्होंने उत्तरकाषी हिमालय में टीएसएएफ आउटडोर लीडरषिप कोर्स पूरा किया। ऐसे रोमांच से पहली बार उनका सामना तब हुआ जब उन्होंने मनाली में नेषनल माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट से एक महीने के आधारभूत माउंटेनियरिंग कोर्स को सफलतापूर्वक पूरा किया। इसके बाद टीएसएएफ ने उन्हें टीएसएएफ द्वारा चामसेर कांगड़ी एक्सपेडिषन में षामिल किया जिसमें वह 21,000 फीट तक पहुंचे। रोमांच के लिए उनके प्रेम की वजह से वह टाटा स्टील मैनेजमेंट में एडवेंचर प्रोग्राम विभाग से जुड़े रहने के लिए बने रहे जिसमें वह आखिरकार सितंबर 2013 में षामिल हो गए।

तब से वह 2015 में अमेरिका की सबसे ऊंची चोटी माउंट एकाॅन्गुआ (22,860 फुट), गंगोत्री क्षेत्र में माउंट भगीरथी (21,130 फुट), नेपाल में आईलैंड पीक (20,400 फुट), एचपी हिमालय की स्पीति घाटी में माउंट कनामो (19,600 फुट) की चढ़ाई कर चुके हैं।

उत्तरकाषी हिमालय टाटा स्टील में जबरदस्त प्रषिक्षण से उन्हें 2015 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने का अवसर मिला। दुर्भाग्यवष नेपाल में दुर्घटना हो गई। पूरे हिमालय और एवरेस्ट क्षेत्र में 7.9 क्षमता वाला भूकंप आ गया। भूकंप की वजह से भयानक भूस्खलन हुआ और बेस कैंप क्षेत्र में भूस्खलन की वजह से 18 लोग मारे गए। हेमंत और पायो दोनों ही कैंप-2 (21,350 फुट) में थे और इस दुर्घटना से बच निकलने में सफल रहे। चूंकि उस वक्त बड़ी संख्या में षेरपा मारे गए इसलिए नेपाल सरकार ने चढ़ाई पूरी तरह बंद कर दी।

हेमंत ने एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के लिए अपनी मां से अनुमति हासिल कर ली है और जीवन की सबसे बड़ी चुनौती का सामना दूसरी बार करने जा रहे हैं।

सुश्री बछेंद्री पाल समय-समय पर महिलाओं को प्रोत्साहित करने, प्रेरित करने और संसाधनयुक्त बनने के लिहाज से सषक्त बनने के लिहाज से महिलाओं को अवसर मुहैया कराने के लिए महिलाओं के दल का चढ़ाई का कार्यक्रम आयोजित करती रहती हैं। ऐसे कई अभियान रहे हैं जिन्होंने यह दर्षाया है कि महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में सफलतापूर्वक और बगैर परेषानी के चढ़ाई अभियानों का आयोजन कर सकते हैं और नेतृत्व कर सकते हैं। ऐसे ही कुछ अभियान इस प्रकार हैंः

-इंडो नेपालीज वुमेंस एवरेस्ट एक्सपेडिषन (आईएनडब्ल्यूईई’93) में विष्व रिकाॅर्ड के तहत् 18 लोग समिट में पहुंचे, उस वक्त इस अभियान में एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाली महिलाओं की सर्वाधिक संख्या थी

– गंगा में हरिद्वार से कलकत्ता तक 18 महिलाओं द्वारा रिवर राफ्टिंग जिसमें 3 रबर राफ्ट्स ने 39 दिनों में 2,155 किमी की दूरी तय की।

-9 महिलाओं द्वारा भारतीय महिलाओं का पहला ट्रांस हिमालयन सफर। यह उल्लेखनीय अभियान था और एक भारतीय टीम द्वारा पूर्व में अरुणाचल से पष्चिम में सियाचिन ग्लेषियर होते हुए भारत के उत्तरी छोर इंदिरा कोल तक 7 महीनों में करीब 4,500 किमी दूरी को पैरों से पूरा करने में पहली बार सफलता मिली थी। इस दौरान पहली बार सिविलियन लोग सियाचिन तक पहुंचे।

– भारतीय महिलाओं का पहला थार रेगिस्तान अभियान 2007- गुजरात में भुज से षुरू होने वाला कैमेल सफारी से पूरे कच्छ के रण तक- गुजरात और राजस्थान के अंतरराश्ट्रीय सीमा से लगे हुए-थार रेगिस्तान को पार करते हुए पंजाब में वाघा बाॅर्डर तक-1,800 किमी की षानदार यात्रा को लिम्का बुक आॅफ रिकाॅर्ड द्वारा सम्मानित किया गया। बीएसएफ के स्वर्ण जयंती समारोह के तहत् 2015 में इसे फिर दोहराया गया जिसमें झारखंड, ओडिषा, गुजरात, उत्तराखंड से 14 महिलाओं को षामिल किया गया जिसमें बीएसएफ से 13 महिलाएं षामिल की गई।

-एक टीम के तौर पर 2008 में भारतीय महिलाओं के माउंट किलिमंजारों तक पहला अभियान जिसमें विभिन्न राज्यों और अफ्रीका से 10 महिलाओं ने हिस्सा लिया और उनमें से 9 ने अभियान पूरा किया।

-स्नोमैन टेªक के लिए भूटान में पहले भारतीय अभियान के तहत् 1 जून से 30 जून 2011 के दौरान 11 ऊंचे पर्वतों को कवर करते हुए एक हाई एल्टीट्यूड अभियान की षुरूआत की गई। विभिन्न राज्यों से मिलकर बनाई गई 11 सदस्यीय भारतीय महिलाओं की टीम ने सफलतापूर्वक अभियान को पूरा किया-जिसे लिम्का बुक आॅफ रिकाॅर्ड द्वारा अपने 2011 संस्करण में सम्मानित किया गया।

-सितंबर 2014 में तिब्बत में खारता वैली अभियान। कई ऊंचे इलाकों को पार करना चुनौतीपूर्ण था। इस दौरान सबसे ऊंची चढ़ाई 17,500 फुट की लांगमा ला पास को पार करना था जिसे पार करते हुए मकालू, एवरेस्ट, लोट्से षार और लोट्से के खूबसूरत नजारे देखने को मिले।

टाटा स्टील के बारे में

टाटा स्टील ग्रुप दुनिया के दिग्गज स्टील निर्माताओं में से है जिसकी क्रूड स्टील क्षमता 28 मिलियन टन प्रति वर्श से अधिक है और वित्त वर्श 2016 में जिसने 17.69 अरब डाॅलर का टर्नओवर हासिल किया। अब यह दुनिया की दूसरी ऐसी कंपनी बन चुकी है जो भौगोलिक दृश्टि से सर्वाधिक व्यापक है और जिसके परिचालन 26 से अधिक देषों में हैं तथा दुनिया के 50 से अधिक देषों में यह अपनी वाणिज्यिक मौजूदगी बना चुकी है। 1907 में स्थापित, ग्रुप का उद्देष्य ’मूल्य सृजन‘ और ’कार्पोरेट नागरिकता‘ के जरिए विष्व के स्टील उद्योग में मानक रचना है और इसके लिए यह अपने लक्ष्यों, सुरक्षा एवं सामाजिक दायित्वों, निरंतर सुधार, खुलेपन और पारदर्षिता के साथ-साथ प्रदर्षन की संस्कृति के लिए लगातार समर्पित है। 2008 में, जापान से बाहर, टाटा स्टील इंडिया विष्व का ऐसा पहला एकीकृत स्टील प्लांट बन गया जिसे टोटल क्वालिटी मैनेजमेंट में डेमिंग एप्लीकेषन प्राइज़ 2008 तथा 2012 में प्रदान किया गया था। टाटा स्टील को डाउ जोन्स सस्टेनेबिलिटी इंडैक्स के तहत् स्टील श्रेणी में ग्लोबल ’इंडस्ट्री लीडर‘ के तौर पर मान्यता दी गई है। टाटा स्टील ’व्ल्र्डस्टील्स‘ क्लाइमेट एक्षन सदस्य है तथा इसे सीआईआई आईटीसी सस्टेनेबेलिटी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा, ’बैस्ट-इन-क्लास मैन्यूफैक्चरिंग‘ के लिए ’टाइम इंडिया अवार्ड – 2016‘ तथा सर्वश्रेश्ठ प्रदर्षन करने वाले एकीकृत स्टील प्लांट के लिए प्रधानमंत्री ट्राॅफी समेत अन्य कई पुरस्कारों से नवाज़ा जा चुका है।

 

 

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