विशेष- आईए जाने प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना सौमि बोस को

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कौशिक घोष चौधरी

महज चार साल की उम्र में कथक नृत्य की शुरूआत कर इसे राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग पहचान दिलाने वाली बिजया गार्डन बारीडीह निवासी प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना एवं अपने शिष्यों के बीच प्रचलित “गुरु माँ” सौमि बोस का मानना है कि कत्थक हमारी धरोहर है जिससे जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत है। नृत्यांगन इंस्टिट्यूट ऑफ़ परफोर्मिंग आर्ट्स , जमशेदपुर की सचिव सौमि बोस ने प्रयाग संगीत
समिती द्वारा आयोजित मास्टर्स ऑफ़ म्यूजिक की परीक्षा में देश में दूसरा स्थान प्राप्त किया था । देश के कई कोने में कत्थक की कई प्रस्तुतियां देने वाली सोमि “कत्थक की गुरू माँ” के नाम से जानी जाती है। सौमि ने संगीत नाटक अकादेमी , नई दिल्ली एवं सरकार के द्वारा कई कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुति दी इनमे प्रमुखतः न्रित्यांजलि महोत्सव , पटना , श्रावणी महोत्सव , पटना ,भागीरथ उत्सव , कोलकाता है I

कत्थक की शिक्षा दीक्षा :
सौमि की कत्थक की शिक्षा दीक्षा अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नृत्य गुरु प्रताप पव्वार , पंडित बिरजू महाराज , सस्वती सेन एवं मधुमिता रॉय से हुई I

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जागरूकता की जरूरत :
कत्थक गुरू सौमि बोस का मानना है कि कत्थक महज एक नृत्य नहीं है ये हमारी धरोहर है और इसे जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत है। जो कथा कहे वही कत्थक है । कथक पौराणिक काल से चला आ रहा है ।ऐसा माना जाता है कि भगवान राम के जमाने से कत्थक हमारी जिंदगी में आया और आज भी चला आ रहा है। इसमें नृत्य के साथ- साथ भाव-भंगिमाओं का भी विशेष योगदान होता है। हालांकि
झारखण्ड में अभी कथक को लेकर जागरूकता की कमी है। घर -घर में कथक को लेकर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है एवं राज्य सरकार से भी अनुरोध है की “श्रावणी मेला” जैसे महोत्सव में अपने घर के कलाकारों को भी अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर देना चाहिए I

कत्थक एक साधना:
कत्थक एक साधना है जो हमें अनुशासन सिखाता है और जीवन में इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसमें भावों का ज्यादा महत्व है और शरीर की कई मुद्राएं बनाई जाकर उनके जरिए अभिव्यक्ति की जाती है। सत्य को पाने के लिए जैसे लगन और मेहनत की जरूरत होती है कत्थक में भी निपूणता के लिए मेहनत, लगन और समर्पण की जरूरत होती है। सबसे बड़ी बात है कत्थक हमारे देश की एक कला है जिसे सभी को जानना चाहिए ।

महिला – पुरूष का भेद नहीं :
कत्थक में महिला और पुरूष का भेदभाव नहीं हैं । ये सभी के लिए उपयोगी है। मेरे तो सभी गुरू पुरूष ही रहे हैं ।महिलाओं के साथ साथ अगर कथक में पुरूष भी आगे आएं तो उन्हें भी बेहतर पैकेज और सुविधाएं मिल सकती है । हमें अपना नजरिया बदलने की जरूरत है ।

कत्थक को बनाएं करियर :
युवा कत्थक को करियर के रूप में देख सकते हैं इसके लिए प्रत्येक स्कूलों और कॉलेजों में भी कथक की शुरूआत होनी चाहिए । ये अच्छी बात है कि कई विश्वविद्यालयों में अब कत्थक को लेकर पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं और कथक में पीएचडी भी करवाई जा रही है। इसे आगे बढाने की जरूरत है । मैंने 3 साल की उम्र में कत्थक करना शुरू किया था। इसी में अपना करियर बनाया और देश के
कोने कोने में अपनी प्रस्तुतियां दी है और आज नृत्यांगन इंस्टिट्यूट ऑफ़ परफोर्मिंग आर्ट्स , जमशेदपुर की सचिव भी हूँ । कत्थक ही है जिसने मुझे हमेशा कुछ नया करने की प्रेरणा दी है।

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