मधुबनी:चौदहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जन्मे विद्वान अयाची मिश्र के मूर्ति का 09 सितंबर को अनावरण करेंगें मुख्यमंत्री
अजय धारी सिंह
मधुबनी।
सारस्वत साधना की सिद्धपीठ मिथिला के न्याय वैशेषिक के प्रधान केन्द्र और विश्व को एक विलक्षण जीवन दर्शन देने वाले ग्रामरत्न सरिसब में चौदहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में महामहोपाध्याय भवनाथ मिश्र प्रसिद्ध अयाची का प्रादुर्भाव हुआ था। वे आजीवन देवाराधना और न्याय दर्शन के अध्ययन अध्यापन में संलग्न रहे। उन्होंने आजीवन न तो किसी से याचना किया और ना ही किसी से दान ही लिया। शंकर जैसे शिष्य और आसमुद्रान्त फैले सहस्त्रों शिष्य उनके विद्या वैदुष्य के परिचायक माने जाते हैं।
धर्म के दस महान लक्षणों में से एक अपरिग्रह को व्यावहारिक जीवन में प्रत्यक्ष प्रयोग कर ऋषि अयाची ने विश्व को एक विलक्षण जीवन दर्शन दिया। उनकी शिक्षण प्रणाली जिसके अंतर्गत एक शिष्य दस शिष्यों को पढाता था, आज भी उतना ही व्यावहारिक व ग्राह्य है।
गंरतलब है कि ऋषि अयाची का ये वासस्थान दशकों, शताब्दियों से सामाजिक उपेक्षा का शिकार था। ऐसे में इस संस्था के संयोजक व हमारे सरिसब पाही पश्चिमी के क्रियाशील मुखिया श्री रामबहादुर चौधरी ने इस डीह को पुनर्जीवित करने की ठानी और इस पुनीत उद्देश्य में उन्हें सभी वर्ग परिसर के बहुत सारे बुद्धिजीवीयों एवं अभिभावकों का सहयोग व समर्थन प्राप्त हुआ। अनावरण हेतु बनी प्रतिमा संयोजक श्री चौधरी जी ने अपने व्यक्तिगत व्यय से बनवाया। तदुपरांत डीह के उन्नयन हेतु परिसर के अन्य सुधीजनों ने भी खुलेमन से अनुदान दिया। अयाची डीह विकास समिति की इस विकास यात्रा में संयोजक महोदय का प्रयास अत्यंत ही श्लाघनीय है। आज इस प्रयास को मूर्त रूप में साकार होते हुए हम देख रहे हैं जब बिहार प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार मूर्ति का अनावरण करने आ रहे हैं। इस परिसर की समरसता, सौहार्द व सभी वर्गों के आत्मिक परिष्कार का अनुपम अभिलेख चमाइन की मूर्ति का भी वो अनावरण करेंगे। इससे परिसर के बुद्धिजीवियों, युवाओं, महिलाओं सभी में उर्जा व जोश का संचार है।
इसी उत्साह एवं जोश की एक झलक समिति द्वारा आयोजित अंतिम प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखी जिसमें विभिन्न वक्ताओं ने अयाची मिश्र तथा आगत कार्यक्रम के विभिन्न पक्षों पर अपनी बात रखी।
प्रेस को संबोधित करने वालों में श्री रामबहादुर चौधरी, श्री अनुराग मिश्र, डॉ सुनील झा, श्री संजीव झा, श्री गिरिश नंदन झा आदि थे।
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