जमशेदपुर-एक शहर जहॉ मजदुरो का लगता हाट

168
AD POST

रवि झा

जमशेदपुर।…

शहर ऐसे चार- पांच  स्थान है जहां मजदुरो की श्रम की बोली लगती है। वहा उन मजदुरो को उनकी  योग्यता के अनुसार खरीदा जाता है। इस हाट में आपको सभी प्रकार के मजदुर मसलन मिस्त्री कुली और रेजा तक बाजार भाव मे मिल जांएगे। लेकिन ये मजदुर रविवार या पर्व तैयार को छोड़कर सभी दिन इस बाजार मे आपको मिल जाएगे। और ये मजदुरो भी बाबुओ की तरह शाम के पांच बजे छोड़कर चले जाएगे। क्योकि इन लोगो का काम सुबह 9 बजे से शाम पांच बंजे तक ही होगा । इस दौरान इन्हे एक घंटा का लंच  भी लेते है। और इन मजदुरो का  आप अपने साथ दिन ,सप्ताह या ठेकेदारी के हिसाब से ले जा सकते है। अगर ठेके मे ले जाते है यदि एक सप्ताह से अधिक काम है तो  प्रत्येक शनिवार को  ये अपना मजदुरी लेते है।

शहर के विशेष स्थान पर ही मिलते है मजदुर

शहर मे ऐसे कई स्थान है जहां  मजदुरो की बोली लगती है वैसे इनका मजदुरो की  मजदुरी  अलग अलग  तय रहती है। कपना मे काम करने के मजदुर हो. रेजा या मिस्त्री हो सभी प्रकार के मजदुर यहां मिल जाते हैं। ये सभी मजदुर सुबह सात बजे हाट पर पहुंच जाएगे । 9 बजे सुबह के बाद ही कोई मजदुर मिल पाएगे।  शाम के पांच बजे के बाद  अधिक से अधिक 6 बजे के बाद  सभी मजदुर वापस घर लौट जाते है।

1 मानगो  चौक

  • डिमना मोड
  • टाटा स्टील के साकची और जुगसलाई गे
  • टाटानगर स्टेशन के पास
  • आदित्यपुर के ईमली गाछ के पास

 

ग्रामीण ईलाको से आते है मजदुर

ये सभी मजदुर जमशेदपुर से सटे ग्रामीण ईलाको  घाटशिला, चाकुलिया, गालुडीह, महालीमुरुप बीरंबांस,सीनी ,राजखरंसावा ,पोटका. पटमदा . हाता , हल्दी पोखर आदि स्थानो से  आते है । कई  मजदुर ट्रेन  ,बस या अपने साईकिल के माध्यम से शहर सुबह सात बजे तक पहुँच जाते है । काम करके शाम के सात और आठ बजे तक अपने घर पहुँच जाते है। कई मजदुर तो 25 से 30 किलोमीटर का साईकिल चलाकर आते है और साईकिल से काम कर फिर वापस चले जाते है।

 

 रविवार या छुट्टी को  नही मिलेते है मजदुर

इन मजदुरो की खासियत यह है कि रविवार हो या पर्व त्योहार  इन दिनो ये मजदुर आपको नही मिलेगे । क्योकि इस दिन ये छुट्टी मनाते है। उन्हे अगर मजदुरी डबल करने की लालच पर ही छुट्टी के दिन बुलायेगे। लेकिन छुट्टी की बात कह कर नही आएगे। वो दिन सिर्फ  वे अपने परिवार के साथ रहना पसंद करते है। इस सदर्भ मे रेजा का काम करने वाली सुकुरमणी ने बताया कि रविवार के दिन हमलोग परिवार के साथ रहना  पसंद करते है। और सप्ताह भर का घरेलु सामान खरीदते है। क्योकि हमलोगो को शनिवार को मजदुरी मिलती है।   और रविवार को घऱ का खाने पीने की समान खरीदते है।

एक दुसरे का रखते है ख्याल

AD POST

इस दौरान गांव से आए सभी मजदुर एक दुसरे का ख्याल रखते है। अगर किसी को काम नही मिलता है तो उसके साथ अन्य साथियो जिन्हे काम मिल जाता है उसका ख्याल रखते  हुए बाबुओ को उसे भी अपने साथ काम पर ले जाने को कहते है । ताकि वह खाली हाथ घर न लौटे।

पी एफ और ई एस आई की सुविधा नही मिलती

इन मजदुरो को पी एफ या ई एस आई की सुविधा नही मिलती है । नही सरकार की ओर किसी प्रकार की सुविधा मिलती है। क्योकि ये किसी कंपनी या ठेकेदार के स्थायी रुप से मजदुरी का काम नही करते है। इस कारण इनको किसी भी प्रकार का लाभ नही मिल पाता है। खासकर जब इनके घर मे किसी का तबीयत खराब होती है तह इन मजदुरो को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। तब ये महाजन से  व्याज पर पैसे लेते है। और जब मजदुरी मिलने पर घीरे घीरे करके पैसा चुकाते है।

 मजदुरो का दर

  • मिस्त्री –350 – 450 रुपया
  • कुली— 250 – 300 रुपया
  • रेजा –200 -220 रुपया

 

गाङियो मे लॉडिंग करने का मजदुरो का लिया जाने वाला भाङा

 

1.रड—150 रुपया प्रति टन

2.बाबरी—200 रुपया प्रति टन

3.स्क्रैप—225 रुपया प्रति टन

4.चावल ,आटा  या अन्य बोरा—15-20 प्रति बोरा (75 किलो ग्राम तक )

5.सीमेंट –5 रुपया प्रति बोरा

Comments are closed.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More