चाईबासा-टाटा स्टील नोआमुंडी ने बाल शोषण के खिलाफ जागरुकता का प्रसार किया

101
AD POST

 

 

नोआमुंडी, 17 जुलाई,।

ओएमक्यू डिवीजन, टाटा स्टील ने हाल ही में अपने संचालन क्षेत्र और आसपास के स्कूली शिक्षकों के लिए ‘सुरक्षित बचपन’ के नाम से बाल शोषण पर एक कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यशाला का उद्देश्य बाल शोषण पर शिक्षकों का संवेदीकरण करना और स्कूलों में बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करना था। श्री वसीम इकबाल, डायरेक्टर, एएएस (ऐम फॉर द अवेयरनेस ऑफ सोसायटी) ने कार्यशाला का संचालन किया।

एएएस इंदौर का एक एनजीओ है, जो विभिन्न सामाजिक समस्याओं जैसे एचआईवी/एड्स, सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन (एसटीआई), ड्रग एडिक्शन, रक्तदान और जल व स्वच्छता आदि पर काम करता है।

AD POST

अपने उद्घाटन भाषण में श्री पंकज सतीजा, जीएम, ओएमक्यू, टाटा स्टील ने कहा, ‘‘बच्चे कल के भविष्य हैं और हमें सुनिश्चित करना है कि उनका बचपन खुशहाल हो। हम पहली बार बाल शोषण पर कार्यशाला आयोजित कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य इस गंभीर विषय पर लोगों का संवेदीकरण करना है और बाल शोषण को रोकने के लिए एक समाधान निकालना है। बच्चों तक इस प्रकार की जानकारी पहुंचाने में शिक्षक एक अच्छा माध्यम हो सकते हैं और मुझे विश्वास है कि यह हम सभी के लिए सीखने का अच्छा अवसर है।’’

शिक्षकों को संबोधित करते हुए श्री इकबाल ने कहा, ’’हमारे समाज की चहारदीवारी के पीछे हजारों अनसुनी क्रंदन हैं। इससे पहले कि निर्दोष बचपन दूषित हो जाय, हमें इन खामोश रूदन को सुनना होगा। स्कूलों और घरों में बच्चों को बाल शोषण के बारे में जानकारी देने से न केवल कुकृत्यों से उनके बचाव में मदद मिलेगी, बल्कि उनमें सतर्कता की भावना भी पैदा होगी।’’

कार्यशाला में बाल शोषण के विभिन्न रूपों पर चर्चा की गयी और इस संदर्भ में कानूनी पहलुओं को रेखांकित किया गया। श्री इकबाल ने भारत में बाल शोषण की गंभीरता को दर्शाने के लिए शिक्षकों के साथ एक छोटा-सा प्रयोग भी किया।

कार्यशाला में नोआमुंडी से पद्मावती जैन शिशु मंदिर, टाटा डीएवी, सेंट मेरीज और एमई स्कूल समेत जोडा से टाटा डीएवी और सेंट टेरेसा के शिक्षकों ने हिस्सा लिया। कार्यशाला में प्राप्त अनुभव को साझा करते हुए सेंट टेरेसा के गणित शिक्षक श्री राज कुमार दास ने बताया, ’’हमें बच्चों के साथ गुणवत्तापूर्ण समय व्यतीत करना चाहिए, ताकि वे प्रतिदिन की घटनाएं हमारे साथ साझा कर सकें। हमें उन्हें खुल कर अपने दिल की बात को बताने के लिए पर्याप्त स्थान देना चाहिए। घर और स्कूल में दोस्ताना माहौल बना कर हम उनमें आत्मविश्वास भर सकते हैं। इस प्रकार के मामले को उन तक पहुंचाने के लिए स्कूल ड्रामा और माइम जैसे माध्यम का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन यह तभी कारगर होगा, जब हम अभिभावक और शिक्षक के रूप में अपने बच्चों के साथ अधिक से अधिक समय व्यतीत करेंगे।‘‘

Comments are closed.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More