संवादादाता. जमशेदपुर, 12 मई ,
टाटा स्टील ने सोमवार को आर्मरी ग्राउंड के समीप प्रमथ नाथ बोस (पी एन बोस) को उनकी 159वीं
जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर मुख्य अतिथि आन्दंन सेन, प्रेसिडेंट, टीक्यूएम एंड स्टील बिजन, टाटा स्टील, विशिष्ट अतिथि पी एन सिंह, अध्यक्ष, टाटा वर्कर्स यूनियन तथा टाटा स्टील के अन्य पदाधिकारियों ने पी एन बोस की प्रतिमा पर श्रद्धासुमन अर्पित किए। इस अवसर पर एक विशेष ब्रोशर भी जारी किया गया जिसमें इस महापुरुष के जीवन औैर योगदान पर प्रकाश डाला गया था।
स्वर्गीय पी एन बोस के योगदान को याद करते हुए, श्री आनंद सेन ने कहा कि जमशेदपुर में टाटा स्टील वक्र्स की स्थापना की दिशा में यह पी एन बोस का अमूल्य योगदान और अनुसंधान था जिसने एक सदी से भी ज्यादा समय से टाटा स्टील को देश के विकास में योगदान करने में मदद की है। श्री पी एन सिंह ने स्वर्गीय पी एन बोस को भारत के सबसे प्रख्यात भूविज्ञानी के रूप में याद किया। उन्होंने उस पत्र का जिक्र किया जिसे पी एन बोस ने 24 फरवरी, 1904 को जे एन टाटा को लिखा था और उन्हें मयूरभंज में प्रचूर लौह अयस्क के भंडार के बारे में सूचना दी थी जो बाद में साकची मे लौह एवं इस्पात कारखाने की स्थापना का आधार बना।
स्वर्गीय पी एन बोस का जन्म 12 मई, 1855 को पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के गेपुर में हुआ था। स्वर्गीय पी एन बोस ने लंदन विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की उपाधि हासिल की थी। उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है तत्कालीन मयूरभंज राज्य के गोरुमहिसानी की पहाडि ़यों में लौह अयस्क के भंडार का पता लगाना। इस खोज के उपरांत, स्वर्गीय पी एन बोस ने 24 फरवरी, 1904 को स्वर्गीय जे एन टाटा को एक पत्र लिखा था, जो कालांतर में साकची में टाटा आयरन ऐेंड स्टील कंपनी की स्थापना का आधार बना।
बोस ने जीवन के र्कइ क्षेत्रों में नये प्रतिमान स्थापित किये। किसी ब्रितानी विश्वविद्यालय से विज्ञान स्नातक की उपाधि हासिल करनेवाले वे पहले भारतीय थे। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने असम में पेट्रोलियम की मौजूदगी का पता लगाया था।
उन्होंने ही पहली बार भारत में साबुन की फैक्टरी की स्थापना की थी। साथ ही, पेट्रोलाॅजी से जुडे कार्यों में माइक्रो सेक्शन का इस्तेमाल करने वाले प्रथम व्यक्ति भी वे ही थे। वे पहले भारतीय थे जिन्हें जियोलॅजिकल सर्वे ऑफ इंडिया में ग्रेडेड पद संभालने का अवसर मिला, जहां अपने कार्य काल के दौरान उन्होंने र्कइ उपलब्धियां हासिल कीं। एक वैज्ञानिक होने के नाते, वे भारत में तकनीकी शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए निरंतर प्रयासरत रहे। यह उनके प्रयासों का ही परिणाम था कि बेंगाल टेक्निकल इंस्टीट्यूट, जिसे आज जादवपुर यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है, की स्थापना हो सकी। श्री बोस इस यूनिवर्सिटी के प्रथम मानद प्राचार्य भी थे।
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