बचपन के संस्कार होते हैं व्यक्ति निर्माण में सहायक: व्यास जी
श्रीराम के दर्शन मात्र से ही इन्द्र व अहिल्या का उध्दार: कथा व्यास:- परम पूज्य श्री अतुल कृष्ण भारद्वाज जी महाराज
जमशेदपुर: संध्याकाल में संगीतमय श्रीराम कथा के चतुर्थ दिन के कथा प्रारंभ से पहले वैदिक मंत्रोच्चार के बीच राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एवं मुख्य यजमान रघुवर दास ने कथा व्यास पीठ एवं व्यास का विधिवत पूजन किया। पूजन पश्चात वृंदावन से पधारे कथा व्यास मानस मर्मज्ञ परम् पूज्य श्री अतुल कृष्ण भारद्वाज जी महाराज का स्वागत किया गया।
श्रीराम कथा के चतुर्थ दिन कथा व्यास जी ने कहा कि दुनिया भर के कौए गंदगी में वास करते हैं परन्तु कागभुशुण्डीजी ने भगवान के जन्म के उपरान्त संकल्प किया कि जब तक भगवान पाँच वर्ष के नहीं हो जाएंगे तब तक सब कुछ त्याग,मै अवघ में ही वास करुंगा तथा राजा दशरथ के महल की मुडेरी पर बैठ भगवान की बाल लीलाओं के दर्शन कर जीवन धन्य करुंगा। इसको वर्णित करते हुए सूरदास जी का प्रचलित भजन “जन-जन की जिह्वा पर आज भी अंकित है।
“खेलत खात फिरै अंगना, पग पैजनिया अरु पीली कछोटी ।
काग के भाग कहा कहिए, हरि हाथ से ले गयो माखन रोटी।।”
कागभुशुण्डि जी ने संकल्प लिया था कि भगवान के हाथ का जो झूठन गिरेगा वही प्रसाद ग्रहण करूंगा। कथा व्यास जी ने कहा कि कागभुशुण्डी जी कोई सामान्य कौवा नहीं थे। उनकी दक्षता का वर्णन करते हुए उन्होने बताया कि भगवान भोलेनाथ जी भी कागभुशुण्डीजी से श्री राम कथा सुनने स्वयं जाया करते थे। आगे की बाल-लीला में भगवान श्रीराम के घर में खेलने और राजा दशरथ के कहने पर माता कौशिल्या द्वारा धूलघूसरित प्रभू को उठाकर दशरथ जी के गोद में डालने का सुन्दर चित्रण किया।
नामकरण की व्याख्या करते हुए उन्होने कहा कि यह “नाम” ही मनुष्य का भाग्य, भविष्य तय करता है। प्रभु श्री राम का नाम लेने मात्र से ही मनुष्य धन्य हो जाता है। हमारे समाज में जो बुराइयां व्याप्त है उनका कारण शिक्षा का अभाव ही है, आज जो भारत में शिक्षा दी जा रही है वह संस्कृति के अनुरूप नहीं है। हमारी संस्कृति में शिक्षा धर्म से जोड़ने वाली, त्यागमयी जीवन जीने वाले व दूसरों का हित करने वाली शिक्षा होती थी। बचपन का संस्कार व्यक्ति निर्माण में सहायक होता है हमारे शास्त्रों में ग्रह नक्षत्र के आधार पर ही नामकरण करने की व्यवस्था थी। श्री राम के नाम करण एवं भगवान श्रीराम के बचपन की लीलाओं का वर्णन किया गया। व्यास जी ने कहा हिन्दू धर्म में 16 संस्कार बताये गये हैं। इनमें नामकरण संस्कार भी है, यही संस्कार किसी भी बालक के व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होते हैं। नाम ही मनुष्य का भाग्य भविष्य तय करता है पूज्य व्यास जी ने कहा कि नाम भी राशि और ग्रह नक्षत्र के आधार पर होना चाहिए।
“जो आनंद सिंधु सुख राशि सिकर त्रैलोक सुपासी।
सो सुखधाम असनामा, अखिल लोकदायक विधामा।।
पूज्य व्यास जी ने नामकरण संस्कार का वर्णन करते हुए कहा “विश्व भरण पोषण कर जोई, ताकर नाम भरत अरा होई” इस चौपाई का जाप करने से घर में की भी दरिद्रता नहीं आती. परिवार में सुख बना रहता है। “लान पाम राम प्रिय, सफल जगत, आधार, गुरू वशिष्ट ते राखा लक्ष्मण नाम उदार।” यह अपने लक्ष्य में लीन रहते है इनका
लक्ष्य भगवान की प्राप्ति ही है।
“जाके सुमरन ते रिपुनाशा, नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा”
इस चौपाई के उच्चारण मात्र से ही हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है। आगे कथा व्यास जी ने मनुष्य के चार प्रकार का सुन्दर वर्णन किया है:
1 नर राक्षस -जो सदैव दूसरे को नुकसान पहुंचाते हैं, जो पापाचार, दुराचार, भ्रष्टाचार, लूटपाट, अनेक पापों में लिप्त रहते हैं।
2 नर पशु- ये मनुष्य अपने जीवन को निरीह प्राणी की तरह जीते हैं जैसे तैसे अपने जीवन का यापन कर इस संसार को छोड़ जाते हैं।
सामान्य नर-ये लोग अच्छा जीवन यापन करते हैं, अच्छे संस्कार परन्तु ये लोग न तो अो का साथ देते हैं. व न तो बुरे लोगों को उनके कर्मों में रोकने व अच्छे सन्मार्ग में ले जाने का प्रयास करते हैं, केवल स्वयं का चिंतन करते हैं।
4 नरोत्तम- मनुष्य में सबसे उत्तम प्राणी होते हैं, अपने जीवन से परोपकार धर्म, संस्कार, दूसरों की चिंता, समाज एवं राष्ट्र के चिंतन पर जीवन यापन करना उनका कार्य होता है।
आगे की कथा व्यास जी अपने व्याख्या में बताये कि जब ऋषि विश्वामित्र गुरूकुल एवं यज्ञों की रक्षा हेतु राजा दशरथ से श्रीराम एवं श्री लक्ष्मण जी को लेकर अपने आश्रम
आये उस बीच ताड़का/मारिच सुबाहु का वध श्री राम के हाथों हुआ, तत्पश्चात् विश्वामित्र सीता स्वयंवर का समाचार पाकर मिथिला की ओर दोनों भाईयों के साथ चले, रास्ते में
गौतम ऋषि के श्राप द्वारा शिला रूपी अहिल्या का उद्धार हुआ, अहिल्या उद्धार का वर्णन पूज्य व्यास जी ने अति मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किये और कहे कि मनुष्य के जीवन में कभी न कभी मूलवश कोई न कोई गलत कार्य हो जाता है जिससे मुक्ति पाना, प्रायश्चित करना ही एकमात्र साधन है। पुरूष या नारी को अपने पाप को छिपाना नहीं चाहिए उसे संत, गुरू, श्रेष्ठजन के सामने व्यक्त करना चाहिए। अगर कही क्षमा याचना नहीं कर सकते तो अपने इष्टदेव मंदिर में (पूजा स्थल पर भगवान के सामने) क्षमा मांगने का एहसास करना चाहिए क्योंकि पाप छिपाने से बढता है व पुण्य बताने से घटता है। भगवान श्रीराम के दर्शन मात्र से इन्द्र एवं गौतम ऋषि के श्राप से शीला रूपी अहिल्या का उद्धार हो गया।
इससे पहले प्रातःकालीन पूजन में: पंचकुंडीय महायज्ञ में यज्ञाचार्य जी श्री विजय गुरुजी महाराज जी द्वारा यजमानों के संग गौ पूजन, स्थापित देवताओं का पूजन, स्थापित देवताओं का हवन, जलाधिवास व आरती के पश्चात दिन की पूजन विधि पूर्ण हुई।
महायज्ञ में शामिल यजमान: पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, देवेंद्र सिंह, पवन अग्रवाल, गुंजन यादव, मुकेश आगीवाल बंटी अग्रवाल, श्याम अग्रवाल समेत अन्य।
इस अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, बहरागोड़ा के पूर्व विधायक कुणाल सारंगी, कमिटी के अध्यक्ष संजीव सिंह, भाजपा जमशेदपुर महानगर अध्यक्ष दिनेश कुमार, चंद्रशेखर मिश्रा, कमलेश सिंह, पवन अग्रवाल, गुंजन यादव, कमलेश सिंह, अमरजीत सिंह राजा, मिथिलेश सिंह यादव, भूपेंद्र सिंह, कुलवंत सिंह बंटी, राकेश सिंह, पुष्पा तिर्की, ज्योति अधिकारी, नीरु झा, सोनिया साहू, सीमा दास, ममता कपूर, कांता साहू, सरस्वती साहू, रूबी झा, सन्तोष ठाकुर, प्रोबिर चटर्जी राणा, रमेश नाग, दीपक झा, पप्पू मिश्रा, ध्रुव मिश्रा, श्रीराम प्रसाद, अभिमन्यु सिंह समेत हजारों श्रद्धालु उपस्थित थे।
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