राजेस तिवारी
पटना | हर रिश्ते से खास रिश्ता होता है दोस्ती का रिश्ता | इस रिश्ते की कोई ना अब तक व्याख्या कर सका ना ही कर सकेगा | वेज्ञानिको की माने तो यह डीएनए पर निर्भर करता है ,लेकिन डीएनए मिले ना मिले दिल मिले दोस्त बने ,यह बात चरितार्थ होती है | वर्त्तमान में दोस्ती की कुछ मशहूर शख्सियते
अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी
अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की दोस्ती ऐसी है की जिसने वर्त्तमान में बुंलदियो पर सवार भाजपा की बुनियाद ऐसे वक्त में खड़ी की ,जब देश भर में कांग्रेस का एकछत्र राज था | अंग्रेजो के देश छोड़ने के बाद कांग्रेस ही देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी थी | अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी ने अपने अथक परिश्रम से देश के सामने एक ऐसा राजनीतिक विकल्प रखा जिसका परिणाम आज सब के सामने है |1951 में संघ की शाखा से होकर भारतीय राजनीती की मुख्यधारा में शामिल हुए इन दो नेताओ की राजनीतिक यात्रा एक दूसरे के सहयोग से ही आगे बढ़ी |
नरेंद्र मोदी और अमित शाह की दोस्ती
वर्त्तमान राजनीति के जय और वीरू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह का रिश्ता बहुत पुराना है | ये पिछले 30 साल से एक दूसरे का साथ दे रहे है | इनकी मुलाकात अहमदाबाद में लगने वाली संघ की शाखाओ में हुई | हलाकि दोनों की सामाजिक -आर्थिक स्थिति में काफी अंतर था । मोदी गरीब परिवार से आते थे ,वही अमित शाह संपन्न घराने के थे | जब दोनों युवा हुए तो दोनों ने अलग -अलग राह पकड़ ली |
लालू और नीतीश कुमार की दोस्ती
राजनीति अपनी जगह है और रिश्ते अपनी जगह | नीतीश कुमार और लालू यादव की अच्छी दोस्ती है | दोनों ने एक साथ छात्र राजनीति में कदम रखा और दोनों ने साठ के दशक के आखिर में पटना में एक साथ अपने पैर जमाए | लालू राजनीति छोड़ पटना के बीएन कॉलेज से ग्रेजुएशन
कर सरकारी नोकरी की तलाश में लग गए ,वही नीतीश कुमार इंजीनियरिंग करके भी राजनीति में ही जमे रहे | दोनों को ही नरेंद्र सिंह का सहारा था । 1973 में किस्मत ने पलटी खाई | लोहिया की जलाई मशाल बिहार में धधक रही थी और इसे कर्पूरी ठाकुर ने थाम रखा था | जेपी के पैर रखने के साथ ही इसे और मजबूती मिल गई | कांग्रेस की गफूर सरकार लटपट रही थी | देश भर की आंच बिहार में भी पहुच रही थी और इसके युवा चेहरे बने लालू | लालू दोस्तों समझाने पर दोबारा स्टूडेंट पॉलिटिक्स में लोट आए | उधर नीतीश इंजनियरिंग के स्टूडेंट्स की यूनियन मजबूत करने में जुटे थे | उसके बाद नीतीश किस्मत आजमाते रहे लेकिन हार मिला | सियासत छोड़ने का मन बनाने लगे पर दोस्तों ने उन्हें मनाया | 1985 में उन्हें जीत मिली और विधायक बने | 87 में युवा लोकदल के अध्यझ बन गए और बाद में लालू के खास हो गए |

