बुद्ध के देश में, पार्ट-3 :दस वर्ष की उम्र में ही बौद्ध भिक्षु बन गए थे भूटान के प्रसंग दोरजी, बुढ़ापे की चिंता नहीं,भूटान सरकार पर है भरोसा

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अन्नी अमृता.

गतांक से आगे..

बोधगया/जमशेदपुर.

मन में अपार शांति और सुकून लिए महाबोधि मंदिर से निकलकर हमलोग पैदल ही फिर उसी मार्ग पर बढ़ने लगे जिस मार्ग से आए थे..वहां कुछ ई-रिक्शा वाले नजर आए जो बोधगया घुमाने के लिए आवाज दे रहे थे.हमने एक ई-रिक्शा (स्थानीय भाषा में टोटो) किया और फिर बोधगया की गलियों में घूमने लगे.

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बोधगया की गलियों में दक्षिण पूर्व के देशों म्यांमार, चीन,जापान,तिब्बत, कंबोडिया, भूटान,थाईलैंड और अन्य कई देशों के बौद्ध मठ बनाए गए हैं.खास बात यह है कि उन मठों में उस देश की स्थापत्य कला की संपूर्ण झलक मिलती है.साथ ही उनमें उन देशों की भाषाओं में ही वाक्य लिखे हुए हैं.हालांकि उन भाषाओं के अलावे हिन्दी और अंग्रेजी में तो लिखे ही हुए हैं ताकि सभी लोग पढ़ सकें.मगर अपने देश में किसी जगह पर चीनी, भूटानी,जापानी और अन्य दक्षिण-पूर्व देशों की भाषाओं को देखना काफी दिलचस्प लगता है.उस लिहाज से बोधगया में एक अलग ही ‘फील’ आता है जो अचंभित भी करता हैं.

दक्षिण-पूर्व के देशों के बौद्ध मठों के परिसर में घूमने के क्रम में भूटान के बौद्ध मठ परिसर में जब हमलोग पहुंचे तो वहां काफी सौम्य,हंसमुख और मिलनसार भूटान के बौद्ध भिक्षु प्रसंग दोरजी से मुलाकात हुई.उन्होंने हमारा स्वागत किया और परिसर में बैठकर काफी बातें कीं.उन्होंने जब बताया कि वे दस वर्ष की उम्र में ही बौद्ध भिक्षु बन गए थे, तब मैं और मेरी दोस्त हैरान हो गए.हमने पूछा कि एक दस वर्ष के बालक के साथ क्या ऐसा होना चाहिए? क्या यह सही है? इस पर उन्होंने बताया कि शुरु से ही जीवन की इसी दिशा की ओर कदम बढ़ा लिया, तब अब यही दिशा अच्छी लगती है.भगवान बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों के विषय में उनसे काफी देर तक बातचीत हुई जिसमें उन्होंने बताया कि बुद्ध के अनुसार हमें अच्छा सोचना चाहिए, किसी के प्रति विद्वेष नहीं रखना चाहिए.मन को शुद्ध रखना चाहिए. सारे गलत काम मन से ही जन्म लेते हैं.बुद्ध कर्मकांडों की जगह ‘ध्यान’ पर जोर देते थे. भगवान बुद्ध ने दुख, उसके कारण और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग बताया था.उन्होंने वर्तमान में जीने की बात कही थी.जब हमने दोरजी से पूछा कि आपने विवाह नहीं किया तो क्या अकेलापन नहीं कचोटता? जब वृद्ध होंगे तब कौन देखभाल करेगा?बैंक में अंकाउंट है या नहीं?इस पर उन्होंने मुस्कुराते हुए बताया कि बैंक में जरुरत भर ही पैसा रखते हैं.अकेलापन नहीं है, ईश्वर को समर्पित जीवन है.अपनी मर्जी है.कोई दखलअंदाजी नहीं है.जहां तक बुढ़ापे का प्रश्न है तो बीमार होने पर भूटान में सरकार देख-रेख करती है.यह अंतिम जवाब हमें पुलकित कर गया.यह जानकर अच्छा लगा कि भूटान में ऐसी व्यवस्था है.

विभिन्न देशों के बौद्ध मठों के परिसर के भ्रमण के दौरान ही 80फीट के भगवान बुद्ध की मूर्ति लगे स्थल को घूमने का मौका मिला.यहां भगवान बुद्ध के शिष्यों की भी मूर्तियां लगाई गईं हैं.1982में इसकी आधारशिला रखी गई थी.18नवंबर 1989में 14वें दलाई लामा ने इसका अभिषेक किया था.यह प्रतिमा बलुआ पत्थर के ब्लाॅक और लाल ग्रेनाइट के मिश्रण से बनी है.


जारी….

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