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Home » सीट बैल्‍ट का इस्‍तेमाल गोपीनाथ मुंडे की जान बचा सकता था – डॉ. हर्षवर्धन
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सीट बैल्‍ट का इस्‍तेमाल गोपीनाथ मुंडे की जान बचा सकता था – डॉ. हर्षवर्धन

BJNN DeskBy BJNN DeskJune 5, 2014No Comments7 Mins Read
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विजय सिंह ,नई दि्ल्ली,05 जून

केन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने मीडिया में आ रही उन खबरों की पुष्टि की है कि उन्‍होंने कहा है कि सीट बैल्‍ट का इस्‍तेमाल श्री गोपीनाथ मुंडे की जान बचा सकता था। डॉ. हर्षवर्धन ने दिवंगत ग्रामीण विकास मंत्री की अंत्‍येष्टि में शामिल होने के लिए बीड, महाराष्‍ट्र रवाना होने से पहले कहा ‘मैंने सिर्फ एक गलत फहमी के चलते अपना दोस्‍त खो दिया है कि अधिकांश लोग मानते हैं कि कार में पिछली सीट पर लगाई गयी बेल्‍ट केवल सजावट के उद्देश्‍य से लगाई जाती है। वास्‍तव में अगली सीटों की बैल्‍ट की तरह पिछली सीट पर बैल्‍ट लगाना भी अनिवार्य होता है। किसी अप्रिय स्थिति में यह जीवन बचाने का कारण हो सकती है।’

 

मंगलवार को श्री गोपीनाथ मुंडे का निधन एक दुर्घटना के कारण हो गया था। लाल बत्‍ती  को पार कर एक कार ने श्री मुंडे की कार को टक्‍कर मार दी थी। इस दुर्घटना से उनकी कार को तो अधिक क्षति नहीं पहुंची लेकिन कार को लगे तेज धक्‍के की वजह से श्री मुंडे की गर्दन के जोड़ और उनकी रीढ़ की हड्डी को गंभीर चोट पहुंची, जिसके कारण मस्तिष्‍क को खून की आपूर्ति बाधित हुई और तत्‍काल उनकी हृदय गति और सांस रुक गयी। इसके अलावा उनका लीवर भी फट गया था और इसमें से खून बह रहा था।

 

डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि ‘मैं इस तथ्‍य से बेहद दुखी हूं कि देश ने एक महत्‍वपूर्ण जननेता और समर्थ मंत्री खो दिया है, जिनका महाराष्‍ट्र की राजनीति में बहुत अच्‍छा प्रदर्शन रहा। आज मैं उन अनेक लोगों के दु:ख को अनुभव कर पा रहा हूं जो कार दुर्घटना में अपने प्रिय जनों को खो देते हैं। ऐसा केवल इसलिए कि सीट बैल्‍ट की आवश्‍यकता को नजरअन्‍दाज किया जाता है।‘

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने कहा कि ऐसे बहुत सी दुर्घटनाएं हुई हैं, जो छोटी थीं, लेकिन लापरवाही के कारण घातक सिद्ध हुईं। अगस्‍त, 1997 में ऐसी ही एक दुर्घटना में ब्रिटेन की प्रिंसेस डायना की जान चली गई। उनकी तेज रफतार कार पेरिस में एक भूमिगत सुरंग में खम्‍भे से टकरा गई थी। इस दुर्घटना में कार में सवार उनके चार साथियों में से केवल अंगरक्षक ट्रेवर जॉन्‍स ही बच सके और  उन्‍होंने स्‍पष्‍ट किया था कि कार में सिर्फ उन्‍होंने ही सीट बैल्‍ट लगा रखी थी, जिसके कारण उनकी जान बच गई। प्रिसेंस डायना, उनके मित्र डोडी अल फायद और वाहन चालक हेनरी पॉल ने सीट बैल्‍ट को नजर अंदाज किया और जान गंवा बैठे।

 

2007 में ऐसी ही एक दुर्घटना में दिल्‍ली के पूर्व मुख्‍यमंत्री साहिब सिंह वर्मा का एक सड़क दुर्घटना में ट्रक से हुई टक्‍कर के कारण निधन हो गया था। डॉ. हर्ष वर्धन ने कहा कि श्री वर्मा ने यदि सीट बैल्‍ट लगाई होती तो उनकी जान बच सकती थी। स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने कहा कि यह मानना भ्रांति ही होगी कि श्री मुंडे की जान बच सकती थी, क्‍योंकि वह दुर्घटना के बाद अपनी कार में ही थे, बाहर नहीं गिरे। वास्‍तव में कभी-कभी ऐसा होता है कि जब व्‍यक्ति दुर्घटना के कारण बाहर नहीं गिरता, तब भी उसके शरीर को गंभीर चोट पहुंचती है। श्री मुंडे के आंतरिक अंग बुरी तरह से क्षतिग्रस्‍त हो गए थे। यदि सीट बैल्‍ट लगाई गई होती तो उनका जीवन बचाया जा सकता था।

 

डॉ. हर्षवर्धन ने कहा, ‘’ सही  ढ़ग  से सीट  बैल्‍ट बांधने से जीवन की रक्षा होती है। अमरीका में अनुसंधान से पता चला है कि सीट बैल्‍ट बांधने से कार की अगली सीट पर बैठे यात्री को जान का जोखिम 45 प्रतिशत कम हो जाता है जबकि सामान्‍य से गंभीर किस्‍म की चोट लगने का जोखिम 50 प्रतिशत घट जाता है। वैन और स्‍पोर्ट युटिलिटी वाहनों की पिछली सीट पर बैठे लोगों ने यदि सीट बैल्‍ट लगा रखी  हो तो कार दुर्घटना के दौरान जान का जोखिम 75  प्रतिशत मामलों में बेहतर ढ़ग से टाला जा सकता है। यही नहीं यदि व्‍यस्‍क कार में सीट बैल्‍ट लगाकर बैठें तो बच्‍चों के बचने की संभावना 92 प्रतिशत रहती है, ज‍बकि सीट बैल्‍ट  लगाये बिना बैठे व्‍यस्‍कों के मामलों में बच्‍चों को जोखिम से बचाने की संभावना सिर्फ 72 प्रतिशत होती है’’।

 

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने कहा कि सुरक्षा बैल्‍ट की अनदेखी करना चिंताजनक है। उन्‍होंने कहा ‘’कई कार मालिक अपनी कार की पिछली सीट को आराम के लिए आकर्षक कपड़े या अन्‍य चीजों से ढक देते है। इस प्रक्रिया में सीट बैल्‍ट उसके नीचे छुप जाती है। नि:संदेह इस तरह की लापरवाही के कारण दुर्घटना में मौत होने के मामले बढ़ जाते हैं’’।

डॉ. हर्षवर्धन ने बताया कि 1955 तक अधिकतर विकसित देशों ने कार में सीट बैल्‍ट अनिवार्य करने की घोषणा कर दी थी। उनकी सरकारों ने सीट बैल्‍ट के निर्माण के मानकीकरण के नियम बना लिये। इसकी तुलना में भारत में सीट बैल्‍ट मोटर वाहन अधिनियम 1989 के पारित होने के बाद ही अनिवार्य की गई।  उन्‍होंने कहा कि इसे अब भी गंभीरतापूर्वक लागू नहीं किया गया है।

 

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय का अभियान

डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय गाड़ी चलाते समय सुरक्षा नियमों की अनदेखी करने वाले लोगों को जागरूक करने की पहल करेगा।

 

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने कहा कि सुरक्षा के बारे में स्‍वयं सेवी संगठनों के सहयोग से मल्‍टी मीडिया अभियान चलाने पर विचार किया जा रहा है। डॉ. हर्षवर्धन ने कहा ‘’ मुख्‍य ध्‍यान प्रत्‍यक्ष रूप से दुर्घटना के शिकार अथवा उन बच्‍चों पर दिया जायेगा जिन्‍हें अभिभावक पिछली सीट पर बैठाते है अथवा जिनकी पर्याप्‍त देखभाल नहीं की जाती। बच्‍चे गलत लोगों का अनुकरण भी कर सकते हैं।

 

स्‍वास्‍थ्‍यमंत्री ने कहा कि गलत ढ़ग से अथवा अंधाधुंध गाड़ी चलाने वाले लोगों का अनुकरण करने की बजाय बच्‍चों को सही ढ़ग से जीवन जीना सिखाना चाहिए।

 

प्रत्‍यक्ष रूप से दुर्घटना का शिकार होने वाले बच्‍चों के कारण त्रासदी गंभीर रूप ले लेती है। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने सिफारिश की है कि दस वर्ष से अधिक आयु के बच्‍चों को सीट बैल्‍ट बांधनी चाहिए और छोटे बच्‍चों की सुरक्षा के लिए पर्याप्‍त इंतजाम करने चाहिए। दुर्घटना की रोकथाम के लिए अमरीकी रॉयल सोसाइटी की रिपोर्ट के अुनसार कार निर्माता वोल्‍वो के पेटेंट वाले बैल्‍ट डिजाइन के कारण दुनियाभर में 10 लाख लोगों का जीवन बचाया जा सका।

 

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने कहा कि यह चिंता की बात है कि दुनिया के अन्‍य देशों की तुलना में भारत में युवा वर्ग आजकल सीट बैल्‍ट और हेलमेट (मोटरबाइक चलाते समय) लगाने में रूचि नहीं लेते। अनुसंधान से पता चला है कि खासतौर से महिला चालकों और मोटरसाइकिल चालकों, खासतौर से पिछली सीट पर बैठी महिलाओं में यह रूझान बहुत अधिक देखा गया है। स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने कहा है कि इसके लिए शहरी यातायात में सक्रिय भूमिका के प्रतिकूल हाल के दिनों में महिलाओं की मौत के मामलों में वृद्धि देखी गई है।

 

मंत्री महोदय ने कहा कि य‍ह गंभीर चिंता का विषय है।

 

डॉ. हर्षवर्धन ने कहा, ‘’ मैं कार और बाइक चालकों को सुरक्षा के बारे में जागरूक करने के लिए देशभर में पैट्रोल डीलर एसोसियशन का सहयोग चाहता हूं। संभवत: ऐसी व्‍यवस्‍था विकसित की जाये जिसके तहत पैट्रोल और डीजल बेचने से ऐसे लोगों को मना कर दिया जाये जो सीट बैल्‍ट और हेलमेट नहीं लगाते। सीट बैल्‍ट  और हेलमेट नहीं लगाना दंडनीय बनाने के लिए यूरोपीय देशों की तरह नया कानून बनाना आवश्‍यक है।‘’

 

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने यह भी कहा कि सीट बैल्‍ट की अनदेखी करने के अतिरिक्‍त गाड़ी और बाइक चालकों की नई पीढ़ी मोबाइल फोन पर बात करती है तथा वाहन चलाते समय मैसेज भेजती और पढ़ती है। यह रूझान इतनी तेजी से फैला है कि यह कहना मुश्किल नहीं है कि नई पीढ़ी को सुरक्षा की बुनियादी जानकारी भी नहीं है।

 

डॉ. हर्षवर्धन ने जनता से अपील करते हुए कहा, ‘’ आइये गोपीनाथ मुंडे की त्रासदी को क्रांतिकारी बदलाव के रूप में लें।‘’

 

उन्‍होंने कहा, ‘’मंत्री जी की त्रासदी और असमय मृ‍त्‍यु को सभी वाहन चालकों को चेतावनी के रूप में लेना चाहिए। एक जिंदगी बचाना, एक जिंदगी बनाने के समान है और समाज में संभावित बदलाव लाने वाला ही भविष्‍य को सुरक्षित कर सकता है।‘’

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