अम़ृता,
इसे कहते हैं राजनीति। कल तक खिलाफ थे और आज नमो नमो कह रहे हैं. जी हाँ जमशेदपुर लोकसभा सीट दिलचस्प मोड़ पर खड़ी है. विद्युत् महतो झारखण्ड मुक्ति मोर्चा को बाय कर चुके हैं और अब नमो नमो कहते हुई भाजपा में पदार्पण कर चुके हैँ. भाजपा में उनका ज़ोरदार स्वागत हुआ है और वो जमशेदपुर से भाजपा के प्रत्याशी बनकर वर्त्तमान झारखंड विकास मोर्चा के सांसद डॉ. अजय कुमार को टक्कर देनें के लिए पूरी तैयारी के साथ मैदान में खड़े है, लेकिन बकौल बिद्युत महतो नमो क़ी लहर के आगे उनका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं है. फिर भी अजय कुमार अपने किसी भी प्रतिद्वंद्वी को हल्के में नहीं लेने की बात कह रहे हैं. साथ ही अजय कुमार ने विद्युत महतो को महतो वोट बैंक से ज्यादा उम्मीदें नहीं पालने की सलाह दे डाली है. अजय कुमार का दावा है कि पिछले चुनाव में इस समुदाय से उन्हें भी अच्छा- खासा वोट मिला था. अजय कुमार और विद्युत् महतो दोनों ही ये दावा कर रहे है कि वे लोग जाति की राजनीति नहीं करते है और सबको साथ लेकर चलने में विश्वास करते हैं. अब जनता कितना इन पर विश्वास करती है ये तो चुनाव परिणाम बतायेगा लेकिन झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने टाटा स्टील के पूर्व अधिकारी निरुप मोहंती को खड़ा कर लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है। आमतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों की राजनीति के हिसाब से प्रत्याशी तय करने की बजाय इस बार पार्टी ने शहरी मतदाताओं को लुभाने पर ज़ोर दिया है.हांलाकि मोहंती हर जगह ये बता रहे हैं कि उन्होंने लगभग १६ गॉंवों में अपनी संस्था के माध्यम से कार्य किया है. चर्चा है कि पार्टी टाटा स्टील और अन्य कॉर्पोरेट कंपनी से जुडी आबादी के वोट पर नज़र रखते हुए मोहंती को आगे लायी है. चर्चा तो ये भी है कि विद्युत् के भाजपा में आने और निरुप मोहंती के अचानक झारखण्ड मुक्ति मोर्चा में शामिल होने से बड़ी संख्या में दोनों ही पार्टी के कार्यकर्ता नाराज़ हैं। भाजपा की नाराज़गी तो भीतर ही भीतर है लेकिन झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता जिला अध्यक्ष रमेश हांसदा के नेतृत्व में मुखर हुई थे पर गुरूजी ने न जाने रांची में क्या घूंटी पिलाई कि पूरी जिला कमिटी निरूप मोहंती के गुण गाने लगी। लोग कह रहे है कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा में आज भी गुरूजी की ही चलती है। कहा तो ये भी जा रहा है कि भाजपा भले ही सर्वसम्मति की बात करती हो लेकिन हक़ीक़त यही है कि झारखण्ड भाजपा के महत्वपूर्ण फैसलों में आज भी अर्जुन मुंडा की ही चलती है. तभी तो सरयू राय के लाख विरोध के बावजूद आखिर विद्युत महतो को ही टिकट दिया गया. इस कहानी की पटकथा पहले ही अर्जुन मुंडा ने तैयार कर दी थी.

