Madhubani News:मिथिलांचल के सांस्कृतिक और पारंपरिक भाई बहन का पर्व सामा-चकेवा की धूम
*अजय धारी सिंह*
*मधुबनी:* बहनों द्वारा भाइयों के लिए मंगलकामना का पर्व सामा-चकेवा की शहर और गांव की गलियों में धूम मची हुई हैं। यह पर्व पूरे मिथिलांचल में सांस्कृतिक और पारंपरिक तरीके से मनाई का रही है। ऐसी मान्यता है की इसी दिन सामा और चकवा को श्राप मुक्त किया था।
*क्या है मिथिलांचल का सांस्कृतिक और पारंपरिक भाई बहन का पर्व सामा-चकेवा।*
इस पर्व में बहनों के द्वारा छठ पर्व के सुबह के अर्ध के बाद से रात्रि में मिट्टी के बने सामा, चकेवा, सतभैया, वृंदावन एवं चुगला की मूर्तियां और दिया को एक टोकरी में डाल कर चौक, चौराहा और सड़कों पर ओस लगाया जाता है और सामा खेलती हैं। पूरा इलाका इस दौरान “साम-चको, साम-चको, अबीह हे, जोतला खेत में बैसिह हे, वृंदावन में आगी लागल कोई न बुझबईह हे, चुगला करे चुगलपन बिलाई करे म्यायु” लड़कियों और महिलाओं के मुख से निकली इन गीतों और हंसी ठिठोली से गुंजाएंमान रहता है।
*सामा-चकेवा को लेकर क्या है मान्यता?*
इस पर्व के बारे में स्थानीय निवासी और सांस्कीतिक एवं लोकपरमपरा की जानकार राजघराने की बहु पूजा सिंह बताती है की ऐसी मान्यता है की भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री थी सामा(श्यामा)। उनके भाई का नाम सांब था, सामा के पति चकवा(चारूवत्र) थे और एक सामंत था चुगला(चुरक)। सामा नित्य दिन फुलवारी में घूमती थी। एक दिन चुगला ने श्रीकृष्ण से झूठी चुगली कर दी की, सामा वृंदावन में टहलने के दौरान ऋषियों के साथ घूमती है। जिस पर श्रीकृष्ण ने सामा को पक्षी बन वृंदावन में घुमने का श्राप दे दिया। श्राप के कारण ऋषियों को भी पक्षी का रूप धारण करना पड़ा। जिस वक्त भगवान श्रीकृष्ण ने सामा को श्राप दिया उस वक्त उसके पति चकवा(चारूवत्र) कही बाहर थे। जब वे लौटे तो पत्नी को खोजा, तब उन्हें श्रीकृष्ण के श्राप का पता चला।
*कब किया था श्रीकृष्ण ने सामा को श्राप मुक्त?*
सामा(श्यामा) के पक्षी बनने के बाद चकवा(चारूवत्र) ने विष्णु की तपस्या शुरू कर दी। तब चकवा की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए। तो चकवा ने पत्नी सामा की पुनः मनुष्य में परिवर्तित करने या खुद को पक्षी बनाने का वर मांगा। लेकिन विष्णु द्वारा सामा को पुनः मनुष्य नही बना सकने की असमर्थता जताने पर चकवा(चारूवत्र) को स्वेक्षा से पक्षी बना दिया। जब सांब को पता चला तो उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की। भाई सांब का बहन के प्रति अटूट प्रेम देख शिव ने सामा, चकवा और ऋषि सब को भी श्राप मुक्त कर दिया। उस दिन से सामा श्राप मुक्त हो गई। इसी मान्यता के साथ बहने सामा-चकेवा का खेल खेलती है और चुगला(चुरक) की मूर्ति बनाकर उसे जलाती हैं। कार्तिक पूर्णिमा को खेत में भाई बहन को नए धान का चूड़ा और गुड़ उपहार स्वरूप भेट कर इस खेल का अंत करती है। इसको लेकर मिथिलांचल में बाजे-गाजे, ढोल-मृदंग के साथ झिलमिल बल्बो के बीच सामा को सजाकर शोभा यात्रा निकाला जाता है। इस साल कार्तिक पूर्णिमा 26 नवंबर रविवार को है और इसी दिन रात को सामा के जमीन में विसर्जन(गाड़ने) के साथ सामा-चकेवा पर्व खत्म होगा।
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