JAMSHEDPUR -निराला हिन्दी की स्थानीयता में विश्व-बोध के कवि हैं- प्रोफेसर प्रभाकर सिंह

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वीमेंस कॉलेज में निराला की 125वीं जयंती पर वेब संगोष्ठी संपन्न

राष्ट्रीय नवजागरण के दौर के महत्वपूर्ण हिन्दी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की 125वीं जयंती पर वीमेंस कॉलेज के हिन्दी विभाग द्वारा एक दिवसीय राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी का आयोजन रविवार को किया गया। ‘कविता के कानन में महाप्राण निराला’ विषयक संगोष्ठी की अध्यक्ष व मुख्य आयोजक केयू की माननीया पूर्व कुलपति सह वीमेंस कॉलेज की प्राचार्या प्रोफेसर शुक्ला महांती ने मुख्य वक्ता के रूप में जुड़े बीएचयू के प्रोफेसर प्रभाकर सिंह का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि अर्थशास्त्र की विद्यार्थी होने और तमाम प्रशासनिक दायित्वों के बीच मुझे हिन्दी साहित्य व्यक्तिगत तौर पर आकर्षित करता रहा है। मैं कविताओं की मौन पाठिका रही हूँ और ऐसा पाती हूँ कि हिन्दी कविता में हिन्दुस्तान की आत्मा बसती है। निराला बंगाल में जन्म लेते हैं और इलाहाबाद में रचनाशील रहते हैं। यह भी एक वजह है कि उनकी कविता में राम और शक्ति दोनों की बराबर की उपस्थिति है। निराला को हिन्दी का ही नहीं बल्कि भारतीय भाषाओं का कवि समझा जाना चाहिए। उन्होंने ऐसे आयोजन के लिए हिन्दी विभाग को बधाई दी। विषय प्रवेश कराते हुए विभागाध्यक्ष डॉ. अविनाश कुमार सिंह ने कहा कि निराला के काव्य बोध में जीवन धड़कता है। वे धूल, मिट्टी, वसंत, बारिश, गंध, रंग के कवि हैं। प्रकृति के इन घटकों में ऐसा बहुत कुछ है जो सुंदर है। जिन्हें जानकर, जिनसे जुड़कर खुश रहने की वजहें तलाशी जा सकती हैं। जमशेदपुर जैसे तमाम आधुनिक शहरों में जहाँ युवाओं में नैराश्य बहुत है, आपाधापी है, बाजारवाद है, वहां निराला जैसे कवियों का जीवन दर्शन एक मशाल की तरह समझा जाना चाहिए। भारत किसानों का देश है और निराला किसानों के कवि हैं। ऐसे में उनकी तब की कविताई आज और जरूरी हो उठी हैं। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि सह मुख्य वक्ता बीएचयू के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर प्रभाकर सिंह ने मुख्य विषय पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने कहा कि जीवन का संगीत निराला की कविताओं में सुना जा सकता है। तमाम निराशाओं, उपेक्षाओं और प्रहारों के बावजूद उनकी कविता के प्राण कमजोर नहीं होते। बल्कि वे महाप्राण हो उठते हैं। आत्महंता आस्था के कवि हैं निराला। वे ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ राजनीतिक चेतना वाली क्रांतिकारी कविताएँ लिखते हुए भी भारतीय लोक जीवन की संस्कृति को नहीं भूलते। राम की शक्तिपूजा जैसी महाख्यानात्मक कविता में भी वे इंसानी प्रेम के मुक्तक जड़ते हैं। अपने समूचे पारदर्शी व्यक्तित्व के साथ वे हिन्दी कविता को संवारते हैं। उन्होंने हिन्दी को नये नये शब्द भी दिये हैं। निश्चित रूप से वे हिन्दी की स्थानीयता में विश्व बोध के श्रेष्ठ कवि हैं और भवभूति तथा तुलसीदास की परंपरा में खड़े मिलते हैं। हिन्दी विभाग की अतिथि शिक्षिका आयशा ने निराला की रचनाधर्मिता पर रौशनी डाली और बताया कि संघर्षों ने ही सूर्य कुमार को निराला सूर्यकांत बनाया। उनकी विशाल रचनायात्रा में उनका मानुष प्रेम पैबस्त है। संगीत विभागाध्यक्ष डॉ. सनातन दीप ने निराला रचित सरस्वती वंदना ‘वर दे वीणावादिनी’ का गायन किया और डाॅ. भारती कुमारी ने राम की शक्तिपूजा के अंतिम छंदों का सस्वर पाठ किया। संचालन डाॅ. नूपुर अन्विता मिंज और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. पुष्पा कुमारी ने किया। सिस्को वेबेक्स साॅफ्टवेयर और यूट्यूब लाईव के जरिए इस कार्यक्रम में मानविकी संकायाध्यक्ष डाॅ. सुधीर कुमार साहू सहित वीमेंस काॅलेज के शिक्षक- शिक्षिकाएं तथा जमशेदपुर व देशभर से करीब तीन सौ प्रतिभागियों ने शिरकत की।

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