Jharkhand Politics drama – क्या खतरे में है हेमंत सोरेन की कुर्सी, सीता सोरेन करेंगी बगावत

-शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। सीता का कहना है कि हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाला झारखंड मुक्ति मोर्चा दलालों के चंगुल में फंस गया है। उनके निशाने पर हेमंत सोरेन हैं।

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शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। सीता का कहना है कि हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाला झारखंड मुक्ति मोर्चा दलालों के चंगुल में फंस गया है। उनके निशाने पर हेमंत सोरेन हैं।

बीजेएनएन ब्यूरो, नई दिल्ली

परिवार के प्रभाव वाले राजनीतिक दलों में राजनीतिक महत्वाकांक्षा हो तो बिखराव हो ही जाता है। समाजवादी पार्टी, लोजपा से लेकर राजद तक इसका उदाहरण है। अब झारखंड में सत्ता की स्टीयरिंग संभाल रहे हेमंत सोरेन का परिवार भी कुछ ऐसे ही संकट से घिरता दिख रहा है। दरअसल हेमंत सोरेन के बड़े भाई दिवंगत दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन ने उनके खिलाफ खुला मोर्चा खोल दिया है। सीता सोरेन जामा से विधायक हैं और झारखंड मुक्ति मोर्चा के भीतर उनका एक बड़ा गुट है, जो फिलहाल अलग-थलग पड़ा हुआ है। सीता सोरेन को भी ऐसा लगता है कि उन्हें सत्ता में पर्याप्त हिस्सेदारी नहीं मिल रही है। कई बार वह सरकार को सीधे निशाने पर ले चुकी हैं। अभी उन्होंने एक कदम आगे बढ़ते हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा को ही दलालों से घिरा हुआ बता दिया है।

उन्होंने अपने ससुर और झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन से गुहार लगाई है कि पार्टी को बचाएं। हालांकि शिबू सोरेन बढती उम्र के कारण कुछ भी करने में असमर्थ हैं, लिहाजा झामुमो की कमान हेमंत सोरेन के पास है। सीता सोरेन का यही खल रहा है। सूत्रों की मानें तो सीता सोरेन कभी भी बगावत का बिगूल फूंक सकती हैं। उनके साथ कई विधायक बताए जाते हैं। उन्हें भाजपा का भी समर्थन मिल सकता है, लिहाजा हेमंत सोरेन की कुर्सी खतरे में पड़ सकती है। फिलहाल कांग्रेस और राजद के सहयोग से वे सरकार चला रहे हैं। विधायकों की संख्या भी पर्याप्त है, लेकिन सीता सोरेन ने बगावत किया तो वे अल्पमत में आ सकते हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा के कई विधायक इस ताक में हैं तो कांग्रेस के विधायक भी उन्हें साथ देते नहीं दिखते। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस के विधायकों को सरकार गिराने के आरोपों में कटघरे में खड़ा कर इन्होंने मुसीबत मोल ले लिया। ऐसे में विधायकों का मानना है कि सरकार में रहने का कोई फायदा नहीं दिखता। अधिकारी उन्हें भाव नहीं देते। सरकार के साथ बने रहने का कोई मतलब भी नहीं है।

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