जमशेदपुर –राम से अलग नहीं किया जा सकता वनबंधुओं को -रघुवर दास

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जमशेदपुर।

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भूमि पूजन करेंगे। यह भूमि पूजन स्वतंत्र भारत के इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय होगा। सत्तर एकड़ में बनने वाला यह ‘श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्रÓ देश -दुनिया में एक नया इबारत लिखेगा। जिस राम का नाम राम से बड़ा है, उस राम की जन्मभूमि की भव्यता अनुपम और नयनाभिराम तो होगी ही। यह तो सभी जानते हैं कि वेदों और मर्यादा का पालन करते हुए भगवान राम ने एक सुखी राज्य की स्थापना की थी। उन्होंने भावनाओं और सुखों से समझौता कर न्याय और सत्य का साम्राज्य स्थापित किया था। उन्होंने राज्य त्यागने, पत्नी को वनवास भेजने, दोस्तों के लिए स्वयं संकट झेलने, आदिम जनजाति के भील समुदाय की शबर महिला के जूठे बेर खाकर भक्त से रिश्ता निभाने का जो इतिहास गढ़ा वह और कभी किसी के नाम नहीं हुआ।
मर्यादा पुरुषोत्तम ने जिन संकीर्णताओं को तोड़ते हुए मानव समाज की पुनर्रचना की जो नीव रखी थी, प्रधानमंत्री उस भगवान की जन्मभूमि की नीव रखकर संपूर्ण मानव समाज का कल्याण करने जा रहे हैं। यह तीर्थ क्षेत्र आध्यात्मिक जागरण की दिव्य ज्योति होगा। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि यहाँ भूमि पूजन के लिए देश भर के पवित्र स्थानों से मिट्टी और जल मंगाया गया है। विडंबना यह है कि कुछ लोग पवित्र स्थानों की मिट्टी को धार्मिक भट्टी में दहकाने की कोशिश कर रहें हैं। समाज को तोडऩे का काम कर रहे हैं। कितने ही लोगों के पेट में इसलिए दर्द हो रहा है कि शबरी राम के साथ जुड़ी है। वन-बंधु शबरी के साथ जुड़े होने से उन्हें चिंता हो रही है कि  वन बंधु राम के साथ जुड़ जायेंगे। लाख प्रत्यन करें तो भी देश के वन बंधुओं को राम से अलग नहीं किया जा सकता है। राम उनके प्राण हैं। जिस दिन वन-बंधुओं के प्राण उनके शरीर से अलग हो जायेंगे, उसी दिन वे राम से अलग हो सकते हैं।
मैं समझता हूं कि प्रभु राम को समझने वाला कोई व्यक्ति ऐसा आचरण नहीं कर सकता है। राम के लिये सब अपने थे। उन्होंने कभी आदमी- आदमी में भेद नहीं किया। सेना में पशु, मानव, दानव सभी को स्थान दिया, आगे बढऩे दिया। सुग्रीव, नल, नील सबको नेतृत्व दिया। जाति को दोस्ती का आधार नहीं बनाया। ऐसे मर्यादापुरूष भगवान श्री राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र निर्माण में बखेड़ा खड़ा करना मानव कल्याण में बाधक बनना है।    विश्व इतिहास कहता है कि हिन्दू समाज मन से सहिष्णु है। विश्व में यह एकमात्र समाज है, जो कहता है कि ईश्वर एक है और उसे प्राप्त करने के रास्ते अलग-अलग हो सकते हैं। जो रास्ता आपको पसंद हो, उस रास्ते पर ईमानदारी के साथ चलो, तुम्हें तुम्हारा ईश्वर मिल जायेगा- ऐसा कहने वाला मात्र हिन्दू ही है। शेष मत तो यह कहने वाले हैं कि जब तक तुम हमारे रास्ते पर नहीं चलोंगे, तब तक तुम्हें ईश्वर नहीं मिलेगा। जो सबको समान मानते हो, वे कभी भी कोई संकट पैदा नहीं करते हैं। सबके प्रति सद्भाव, मन के प्रति स्नेह, यह हमारे ऋषि मुनियों, संतों और आचार्यों द्वारा दी गई परंपरा है। स्नेह की यही धारा हमारी संस्कृति की विरासत है।
हमारी संस्कृति में माता शबरी को श्री राम की प्रतीक्षा करने में जो आनंद आता था, ऐसे ही राम राज्य की प्रतीक्षा करने का आनंद मनाने के लिए हम सबको  मिलकर कदम उठाना चाहिए । माता शबरी ने श्री राम के प्रति जो भक्ति दिखायी थी, उस ऋण को चुकाने के लिए हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में भव्य राम मंदिर बनने जा रहा है। प्रभु राम को याद करना, प्रभु कृष्ण को याद करने की परंपरा हिन्दू समाज में रही है। हम जानते है कि जंगल में फटे व गंदे कपड़ों में रहने और प्रभु राम की जीवन भर प्रतीक्षा करने की जो शक्ति माता शबरी में थी, वही शक्ति आज भी वन बंधुओं में है। यह प्रतीक्षा की शक्ति भारत के उज्जवल भविष्य की प्रतीक्षा कर रही है।
इस देश की जनता भारत के उज्जवल भविष्य के लिए वर्षों से राम राज्य की स्थापना की राह ताक रही है। राम के बिना राम राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती है।  इसी उद्देश्य से अयोध्या में प्रभु राम के जन्म स्थल पर भव्य मंदिर बनाने की आवाज उठी, इसके लिए सारे देश में एक स्वर से आंदोलन हुआ था। धार्मिक भावनाएंं प्रबल थी। देश के गण्यमान्य संत-महंत समग्र आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। 9 नवंबर 1989 को अयोध्या की पवित्र धरती पर भव्य राम मंदिर का शिलान्यास का प्रसंग आया, तब किसी मठाधीश आचार्य, संत या महंत के हाथों शिलान्यास करवाने के बदले बिहार के रामभक्त एक दलित कामेश्वर चौपाल के हाथों शिलान्यास संपन्न हुआ। भारत के सांस्कृतिक इतिहास में यह एक अनोखी घटना थी। दलित के हाथों राम मंदिर का शिलान्यास सिर्फ एक मंदिर की नींव डालना नहीं था, वरन यह घटना समरस समाज की नींव डालने वाली थी। हिन्दुस्तान के करोड़ों नागरिकों के इच्छानुरूप राम मंदिर का शिलान्यास एक दलित रामभक्त के हाथों से करवाने का यह कदम नूतन सांस्कृतिक क्रांति की दिशा में एक संकेत था।
कभी-कभी मैं विचार करता हूं कि भारत के संविधान की भावना को यदि प्रकट किया जाए तो कई लोगों की दृष्टि में हम अपराधी समझे जायेंगे । मैं पूर्ण जबाबदेही के साथ कह सकता हूं कि भारत के संविधान की भावना को भारत के संविधान के शब्दों में यदि मैं पेश करूं तो राज्य के कितने ही लोग मुझे अपराधी घोषित कर देंगे। कितनी विकृति छाई हुई है। भारत का संविधान समाज के  विषय में कहता है कि लोभ-लालच या भय से धर्मांतरण नहीं होना चाहिए। मैंने अपने शासन काल में इसे लागू किया तो कुछ लोग हायतौबा मचाने लगे। यह किस प्रकार की मानसिकता है? भारत के संविधान की भावनाओं का आदर करना राज्य सरकार का कार्य है। हमने यह काम किया है। महात्मा गांधी ने जीवन भर इस बात को बार-बार दुहराया था। गांधी जी ने धर्मांतरण का विरोध किया, जीवनपर्यंत कहते रहे कि किसी भी सभ्य समाज के लिए यह उचित नहीं है। इस समस्या का मूल कहां है।
यह इस देश का दुर्भाग्य है कि लार्ड मैकाले के मानस पुत्र अंग्रेजी में शिक्षा पाए बड़े लोग गुमराह कर आज मजाक उड़ा रहे हैं। किसी झूठ की कोई सीमा होती है। हमारे देश के गरीब आदिवासी पूर्वजों ने इस धरती पर आजादी के लिए खून बहाया था। आजादी दिलाने की लड़ाई का ठेका (गांधी परिवार) लेने वाले हमारे पूर्व शासकों को क्या इन आदिवासी वनवासियों का बलिदान मंजूर नहीं था। आजादी के 50-60 वर्षों तक इस सत्य को छुपायेे की, दबाने की  नीति हमारे इन पूर्व शसकों ने लागू की थी, परंतु अब मोदी जी ने देश और दुनिया में शहीद स्मारकों के कीर्तिमान को जीवित रखने की प्रतीज्ञा ली है। इसी क्रम में भगवान बिरसा मुंडा जेल को शहीद स्मारक का रूप दिया जा रहा है। इन शहीद स्मारक से लोग हमारे इन वीर पूर्वजों के बलिदान की यशोगाथा में प्रेरणा ले सकें।

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