जमशेदपुर.
कड़ाके की ठंड के बीच शहर जल्द ही साहित्य, संस्कृति और विचारों की गर्माहट से सराबोर होने जा रहा है. आगामी जमशेदपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2025 में देशभर के प्रख्यात लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद् और विचारक हिस्सा लेंगे. यह दो दिवसीय साहित्यिक महोत्सव 21 और 22 दिसंबर को बिष्टुपुर के होटल रामाडा में आयोजित किया जाएगा.
फेस्टिवल में देश के चर्चित खोजी पत्रकार और लेखक सोपान जोशी विशेष रूप से शिरकत करेंगे. खेती-किसानी, जल, वन, पर्यावरण, विज्ञान, यात्रा और सामाजिक सरोकारों पर गहन लेखन के लिए पहचाने जाने वाले सोपान जोशी की लेखनी आम जनजीवन की सच्चाइयों को सामने लाती है. उनकी चर्चित कृतियों— जल थल मल, एक था मोहन, बापू की पाती, मैंगीफेरा इंडिका: अ बायोग्राफी ऑफ द मैंगो और शिव पुत्र कथा—ने पाठकों और शोधकर्ताओं के बीच खास पहचान बनाई है.
विशेष व्याख्यान: शब्द, समाज और सरोकार
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फेस्टिवल के दौरान 21 दिसंबर को सुबह 11:30 बजे “शब्द, समाज और सरोकार” विषय पर विशेष व्याख्यान आयोजित किया जाएगा. यह सत्र खास तौर पर पत्रकारिता, शोध और सामाजिक विज्ञान से जुड़े लोगों के लिए रखा गया है. इसमें सोपान जोशी अपने अनुभव साझा करते हुए बताएंगे कि किस तरह पत्रकारिता के शब्द समाज के लिए दर्पण बनते हैं और विचार जनसरोकारों को दिशा देते हैं.
नदी विमर्श और सम्मान
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महोत्सव में देश के प्रख्यात नदी विशेषज्ञ, लेखक और पर्यावरण चिंतक डॉ. दिनेश कुमार मिश्र भी शामिल होंगे. IIT से एमटेक डिग्रीधारी डॉ. मिश्र नदियों को केवल जलधारा नहीं, बल्कि सभ्यता और संस्कृति की जीवनरेखा के रूप में देखते हैं. उनकी चर्चित पुस्तकों— बंदीनी महानंदा, बगावत पर मजबूर मिथिला की कमला नदी, दुई पाटन के बीच कोसी नदी की कहानी और बागमती की सद्गति को नदी अध्ययन और पर्यावरण साहित्य में मील का पत्थर माना जाता है.
फेस्टिवल के दौरान डॉ. दिनेश कुमार मिश्र को नदी पारिस्थितिकी और पर्यावरण साहित्य में विशिष्ट योगदान के लिए विद्यादीप जल-संस्कृति सम्मान से सम्मानित किया जाएगा. यह सम्मान झारखंड के वयोवृद्ध सैनिक, पर्यावरण-पुरुष और जनजातीय समाज के प्रेरक व्यक्तित्व सोमा मुंडा प्रदान करेंगे.
जलकुंभी से आजीविका तक की प्रेरक कहानी
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इस आयोजन में जमशेदपुर के युवा पर्यावरण इंजीनियर गौरव आनंद भी अपनी नवाचार यात्रा साझा करेंगे. स्वर्णरेखा नदी की सफाई से शुरू हुआ उनका प्रयास आज जलकुंभी से साड़ी निर्माण, महिला सशक्तिकरण और रोजगार सृजन का सफल मॉडल बन चुका है.
आयोजन समिति का संदेश
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आयोजन समिति के सदस्य लाला मूनका और डॉ. मुदिता चंद्रा ने कहा कि भारत की नदियाँ केवल जलधाराएँ नहीं, बल्कि संस्कृति, संवेदना और समाज की जीवनरेखाएँ हैं. उन्होंने चिंता जताई कि विकास के नाम पर जंगलों का कटाव, नदियों का बंधन और आदिवासी विस्थापन हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि कहीं हम विकास की दौड़ में अपनी आत्मा तो नहीं खो रहे.
संवेदना और विचारों का उत्सव
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आयोजन को लेकर संदीप मुररका की महत्वपूर्ण भूमिका है. उनका कहना है कि दो दिवसीय जमशेदपुर लिटरेचर फेस्टिवल 2025 केवल साहित्यिक आयोजन नहीं, बल्कि समाज, विचार और संवेदना के पुनर्स्थापन का मंच होगा. शहर इस बौद्धिक और सांस्कृतिक उत्सव के लिए पूरी तरह तैयार है.

