
Anni Amrita

जमशेदपुर.
डायन प्रथा अधिनियम को झारखंड में लागू किए जाने की 25वीं वर्षगांठ पर सोनारी आदर्श सेवा संस्थान परिसर में फ्लैक FLAC(फ्री लीगल एड कमेटी) ने एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया.इस कार्यक्रम में इस बात पर मंथन हुआ कि इतने सालों के बाद क्या बिहार और झारखंड के सामाजिक हालातों में कुछ परिवर्तन हुआ? क्या डायन कुप्रथा अब भी एक गंभीर समस्या बनी हुई है?
कार्यक्रम की शुरुआत में फ्लैक के संस्थापक प्रेम जी ने पिछले दिनों बिहार के पूर्णिया के एक गांव में एक ही परिवार के पांच लोगों को कथित तौर पर डायन कहकर जिंदा जला देने की अफसोसजनक घटना का उदाहरण देकर अफसोस प्रकट किया कि इतने सालों बाद भी स्थिति जस की तस है.वहीं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सरयू राय ने कहा कि वे विधानसभा में मांग करेंगे कि डायनप्रथा अधिनियम की समीक्षा हो कि इसके लागू होने से क्या हासिल हुआ और क्या करने की जरुरत है.सिर्फ कानून बनाने से नहीं होगा,सरकार को जागरुकता कार्यक्रम स्थानीय प्रशासन के माध्यम से करने होगे.स्थानीय प्रशासन फ्लैक और ऐसी अन्य संस्थाओं की मदद से लोगों को जागरुक कर सकता है.गांव गांव में विद्यालय के बच्चों को भी यह बताने की जरूरत है कि ‘डायन’ जैसा कुछ नहीं होता और यह अंधविश्वास है.सरयू राय ने कहा कि अब सरकार मानकी मुंडा को सैलरी दे रही है तो उन्हें जिम्मेदारी भी दी जाए कि डायन के नाम पर प्रताड़ना न हो.इसके लिए मानगो मुंडा,माझी परगना व स्वशासन से जुड़े प्रतिनिधियों को प्रशिक्षित किया जाए.
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कार्यक्रम में उपस्थित प्रभात खबर के संपादक संजय मिश्र ने कहा कि समाज में वैज्ञानिक सोच के अभाव से ऐसी घटनाएं अब तक जारी है.माझी परगना महाल के नेतृत्व में ऐसी घटनाएं होना शर्मनाक है और सरकार को चाहिए कि वे आदिवासी समाज के अगुआ के बीच वैज्ञानिक सोच जागृत करे.
आदर्श सेवा संस्थान की प्रभा जायसवाल ने कहा कि महिलाओं को लेकर अब भी नजरिया खास नहीं बदला है.शिक्षा की क्वालिटी को बढाने की जरुरत है.
स्वदेशी जागरण मंच से मनोज सिंह ने कहा कि ब्रिटेन जैसे देशों में भी डायन कहकर महिलाओं को प्रताड़ित करने की घटनाएं होती थी.फिर वहां बदलाव आया.ग्रामीण क्षेत्र में एक आम महिला का शैक्षणिक स्तर बढे और वह आर्थिक सशक्तिकरण से जुड़े तो हालात बदल सकते हैं.जनता को जागरुक होना होगा.आज जिन मुद्दों को लेकर राजनीति चल रही है अगर ऐसे ही हालात रहे तो जनप्रतिनिनिध डायन कुप्रथा या अन्य गंभीर विषयों को लेकर कैसे आगे बढ पाएगा?जनदबाव अगर गंभीर मामलों पर बनेगा तो बहुत कुछ बदल सकता है.
प्रेस क्लब ऑफ जमशेदपुर के अध्यक्ष संजीव भारद्वाज (रिंटु) ने कहा कि डायन प्रथा अधिनियम के तहत काफी कम सजा निर्धारित है जो बढ़नी चाहिए.
फ्लैक के संस्थापक सदस्य जवाहरलाल शर्मा ने कहा कि फंड के अभाव में अपेक्षित काम नहीं हो पाया है.बहुत मुश्किल से जागरुकता कार्यक्रम हो पाते हैं.
कार्यक्रम में खास तौर पर उपस्थित पद्मश्री छुटनी महतो ने कहा कि उनकी लड़ाई आज भी जारी है.आज भी सुविधाओं का अभाव है.
कार्यक्रम के दौरान गौतम गोप के निर्देशन में कलाधाम के कलाकारों ने डायन कुप्रथा को दर्शाती एक लघु नाटिका पेश किया जिसमें दिखाया गया कि कैसे जमीन जायदाद हथियाने के लिए कुछ लोग डायन प्रथा की आड़ लेकर महिलाओं को प्रताड़ित करते हैं.
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कार्यक्रम में मौजूद अन्नी अमृता ने कहा कि शब्द अलग हैं मगर पढे लिखे तबके भी अंधविश्वास की गिरफ्त में हैं.फर्क यही है कि ग्रामीण क्षेत्रों में डायन कहकर नंगा करने से लेकर हत्या तक की घटनाएं होती हैं, इसलिए उसको ज्यादा पिछड़ा समझा जाता है.शहर से लेकर गांव गांव तक लोगों को जागरुक करने की जरूरत है कि बीमार होने पर डाॅक्टर को दिखाएं न कि किसी महिला पर दोष लगाएं..
कार्यक्रम में समाज सेवी चंदन जायसवाल ने कहा कि सिर्फ कानून से कोई बदलाव नहीं आ पाएगा.जन भागीदारी से जागरुकता फैलाना होगा.
कार्यक्रम का संचालन लखी दास ने किया.वहीं गौतम गोप ने अंत में धन्यवाद ज्ञापन दिया.


