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Home » Jamshedpur News:कब तक टैंकरों की आस से बुझेगी प्यास?8 साल में भी धरातल पर न उतर सकी बागबेड़ा वृहद जलापूर्ति योजना?
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Jamshedpur News:कब तक टैंकरों की आस से बुझेगी प्यास?8 साल में भी धरातल पर न उतर सकी बागबेड़ा वृहद जलापूर्ति योजना?

BJNN DeskBy BJNN DeskJune 25, 2023Updated:June 25, 2023No Comments6 Mins Read
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अन्नी अमृता.

जमशेदपुर.

जमशेदपुर शहर दो तरह का दिखता है जहां एक तरफ टाटा कमांड एरिया में बेहतर नागरिक सुविधाएं हैं, जहां लोग पानी की कतार में नहीं दिखते, जहां दशकों से पाइपलाइन के जरिए 24 घंटे जलापूर्ति की सुविधा एक खास आबादी को हासिल है. दूसरी तरफ गैर टिस्को क्षेत्र हैं जहां एक बड़ी आबादी बेहतर नागरिक सुविधाओं की बाट जोह रही है फिर चाहे वह बिजली की सुविधा हो, पानी की सुविधा हो या कुछ और. हालांकि गैर टिस्को क्षेत्रों जैसे मानगो में मानगो जलापूर्ति योजना और बिरसानगर क्षेत्र में मोहरदा जलापूर्ति योजना के माध्यम से हजारों घरों तक पाइपलाइन के जरिए जलापूर्ति शुरू हुई है और लगातार पाइप बिछाने का कार्य भी चलता रहता है लेकिन इन गैर टिस्को क्षेत्रों में बहुत काम बाकी है. अब आइए बात करते हैं जमशेदपुर से एकदम सटे बल्कि टाटानगर स्टेशन से चंद कदम की दूरी पर स्थित बागबेड़ा औऱ उसके आस-पास के इलाके की जहां पिछले 8सालों से बागबेड़ा वृहद जलापूर्ति योजना का निर्माण कार्य चल रहा है और इस साल भी परियोजना पूरी नहीं हो सकी. इस साल भी लंबी लंबी कतारों में वहीं टैंकरों से पानी ढोते लोग नज़र आ रहे हैं.बागबेड़ा बडौदा घाट के पास बागबेड़ा वृहद जलापूर्ति योजना के तहत 22 पिलरों का निर्माण होना था जिसमें से सिर्फ 11 पिल्लर बने और एक पिलर गिर गया.एक तो योजना का कार्य 8 सालों से धरातल पर नहीं उतरा उस पर पिलर का गिरना कई सवाल खड़े कर गया. निर्माण कार्य में लगी एजेंसी को भी बदला गया…

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लंबे जन आंदोलन के बाद मई 2015 में हुआ शिलान्यास, दिसंबर 2018 तक कार्य होना था पूरा

बागबेड़ा क्षेत्र में 30-40 साल पहले जमीन खोदते ही पानी निकल जाता था लेकिन धीरे धीरे तालाबों की संख्या घटने लगी और पेड़ पौधों की कमी और अन्य पर्यावरणीय कारणों से यहां भू जल का स्तर लगातार नीचे चला गया और पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से यहां गर्मियों में बोरिंग फेल हो जाते हैं. तब जनप्रतिनिधियों की तरफ से मंगवाए गए पानी के टैंकर ही लोगों का एकमात्र सहारा बनते हैं.ये टैंकर भी काफी नहीं हैं.जिला परिषद सदस्य कविता परमार कहती हैं कि फरवरी महीने से ही भूमिगत जल का स्तर पांच सौ फीट से भी नीचे चला जाता है और टैंकरों से पानी उपलब्ध करवाना पड़ता है.लेकिन पचास हजार की आबादी को चंद टैंकरों के माध्यम से मदद नहीं पहुंचाई जा सकती है. उन्होंने बिहार झारखंड न्यूज़ नेटवर्क से बात करते हुए सरकार और प्रशासन से गुजारिश की है कि बागबेडा जलापूर्ति योजना के निर्माण कार्य में तेजी लाई जाए.

बिहार झारखंड न्यूज नेटवर्क की टीम जब बागबेड़ा पहुंची तो वहां देखा कि काफी धीमी गति से बागबेड़ा ग्रामीण जलापूर्ति योजना का कार्य चल रहा है. वहीं क्षेत्र में जगह जगह लोग कतार लगाकर टैंकरों से अपने बर्तनों/कनस्तरों में पानी भरते दिखे. मुखिया सुनील गुप्ता ने बताया कि बागबेड़ा हाउसिंग कॉलोनी के 1100 घरों में पेय जल स्वच्छता विभाग की जलापूर्ति योजना जिस पंप हाउस से संचालित होती है वहां अंग्रेजों के जमाने के उपकरण लगे हुए हैं और वहां काफी गंदगी है जिससे दूषित पानी की आपूर्ति होती है.इस वजह से उस पानी का पीने में इस्तेमाल नहीं हो सकता.लोग दैनिक कार्यों जैसे कपड़ा धोना वगैरह में उस पानी का इस्तेमाल करते हैं.सुनील गुप्ता ने आगे बताया कि स्थानीय हाउसिंग कॉलोनी की जलापूर्ति योजना के मरम्मतीकरण के लिए सरकार की ओऱ से 1 एक करोड़ 80 लाख स्वीकृत हुए हैं जिसका टेंडर भी निकल चुका है.अब जितनी जल्दी यह काम होगा उतनी जल्दी बागबेड़ा हाउसिंग कॉलोनी के 1100 घरों में शुद्ध जलापूर्ति हो पाएगी.सुनील गुप्ता ने कहा कि बागबेड़ा हाउसिंग कॉलोनी की समस्या हल होने की संभावना है लेकिन बागबेड़ा वृहद जलापूर्ति योजना जिस तरह 8 सालों से अत्यंत धीमी गति से निर्माणाधीन है इस साल भी इसका लाभ लोगों को नहीं मिल पाएगा जो दुर्भाग्यपूर्ण है.वहीं पूर्व जिला परिषद सदस्य किशोर यादव ने कहा कि उन्होंने भी अपने कार्यकाल में अनशन करने से लेकर जल सत्याग्रह तक किया फिर भी योजना का कार्य तेजी नहीं पकड़ पाया.इस वक्त कछुआ की गति से कार्य चल रहा है और बरसात आते ही ये भी बंद हो जाएगा.ऐसे में अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अगले साल भी ये कैसे पूरा होगा?

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सैकड़ों धरने, भूख हड़ताल, राजभवन घेराव और पैदल रांची पदयात्रा के बाद मिली थी परियोजना

2014 से पहले कई सालों तक बागबेड़ा के लोग जलापूर्ति योजना के लिए आंदोलन करते रहे. बागबेड़ा विकास समिति के बैनर तले सुबोध झा के नेतृत्व में सैकड़ों लोगों ने रांची तक पदयात्रा की. 2014 दिसंबर में जब रघुवर दास मुख्यमंत्री बने तो छह महीने के भीतर ही उन्होंने मई 2015 में बागबेड़ा वृहद जलापूर्ति योजना का शिलान्यास किया. आज 2023 आ गया लेकिन योजना धरातल पर नहीं उतरी

मई 2015 में रघुवर दास के मुख्यमंत्रित्व के कार्यकाल में इस योजना का शिलान्यास हुआ जिसको दिसंबर 2018 तक पूरा कर लिया जाना था. बागबेड़ा जलापूर्ति योजना के तहत बागबेड़ा, कीताडीह, घाघीडीह,करणडीह, परसुडीह के 22 पंचायतों के 13 गांव और रेलवे क्षेत्र की 33 बस्तियों और अन्य क्षेत्रों को मिलाकर लगभग दो लाख की आबादी तक पाइपलाइन के जरिए जलापूर्ति होना है.

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टैंकरों की राजनीति और जनता के सवाल

सालों से बागबेड़ा में टैंकरों की राजनीति हो रही है. कभी विधायक की ओर से कफी सांसद की ओऱ से तो कभी स्थानीय जनप्रतिनिधि की ओऱ से टैंकरों से पानी की उपलब्धता की व्यवस्था होती है जो नाकाफी होती है.क्षेत्र में टैंकरों को लेकर एक तरह की प्रतिद्वंद्विता दिखती है और काफी आपसी विवाद भी नजर आता है.स्थानीय पंचायत प्रतिनिधि बताते हैं कि काफी जद्दोजहद औऱ संघर्ष के बाद कुछ कंपनियों की ओर से कुछ टैंकरों की व्यवस्था होती है जो बड़ी आबादी के लिए नाकाफी होती है. जनका का सवाल है कि आखिर जमशेदपुर से दो दो मुख्यमंत्री हुए फिर भी जमशेदपुर के इन क्षेत्रों का परिदृश्य क्यों नहीं बदला? सांसद और विधायक इस समस्या के लिए उतने मुखर क्यों नहीं दिखते जितनी मुखर जनता दिखती है? टैंकरों से पानी पहुंचाने की फोटो मीडिया में वितरित करने की व्याकुलता से ऊपर उठने की जरूरत क्यों नहीं महसूस करते?कब जगेंगे?

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