जमशेदपुर।
मिनी इंडिया कहा जाने वाला जमशेदपुर एक अनोखा शहर है, जहां के लोग तीसरे मताधिकार से वंचित हैं.यहां के लोग लोकसभा और विधानसभा के चुनाव के लिए मतदान करते हैं,लेकिन स्थानीय निकाय के प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार अब तक उनको हासिल नहीं हो पाया है.
जमशेदपुर में तीसरे मताधिकार का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, जिस पर जल्द ही अगली सुनवाई होगी. सोनारी निवासी मानवाधिकार कार्यकर्ता जवाहरलाल शर्मा द्वारा तीसरे मताधिकार को लेकर 1988में दायर की गई याचिका(petition) पर 37सालों से मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है.हालांकि 1989में ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया था कि जमशेदपुर में म्यूनिसीपाॅलिटी/नगरपालिका बने मगर किसी सरकार ने इसे लागू नहीं किया.
जमशेदपुर में दो तरह की नागरिक सुविधाएं हैं, जहां एक तरफ टाटा कमांड एरिया में 24घंटे बिजली- पानी,साफ -सफाई की बेहतर सुविधाएं हैं, वहीं दूसरी तरफ सरकारी(अधिसूचित क्षेत्र समिति/नोटिफाइड एरिया कमेटी)क्षेत्र में वैसी सुविधा नहीं है.पिछले दिनों झारखंड सरकार ने इंडस्ट्रियल टाउन का नोटिफिकेशन निकाला था और आनन फानन में एक समिति भी बनाई थी.इस नोटिफिकेशन को जवाहरलाल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए बताया है कि संविधान और कानून के तहत ऐसा संभव नहीं है और यहां 1989में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन जजों की पीठ द्वारा दिया गया फैसला ही लागू होना चाहिए जिसमें नगरपालिका के गठन का आदेश दिया गया था.हालांकि तब से आज तक नेताओं और काॅरपोरेट गठजोड़ ने इस फैसले को लागू नहीं होने दिया है.वहीं सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को नोटिस दिया जिसके तहत जवाहरलाल शर्मा ने अपना पक्ष रख दिया है और तारीख पर तारीख पड़ रही है.सबकी निगाहें कोर्ट पर है कि आखिर अंतिम रुप से इस मामले पर क्या फैसला आता है?जमशेदपुर नगर निगम बनेगा या इंडस्ट्रीयल टाउन?
इस विषय पर Kalimati Talks से बातचीत करते हुए जवाहरलाल शर्मा ने बताया कि आखिर क्यों जमशेदपुर में नगर निगम बनना चाहिए.उन्होंने इंदौर का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत मिल रहे हजारों करोड़ से उस शहर का पूरा परिदृश्य बदल चुका है और वह शहर साफ- सफाई में तो नंबर वन लगातार बन ही रहा है,अन्य मापदंडों पर भी आगे बढ़ रहा है, जबकि कुछ साल पहले तक स्थिति ऐसी नहीं थी.शर्मा ने कहा कि आज जमशेदपुर की न सिर्फ आबादी बढ़ चुकी है बल्कि शहर का भी विस्तार हो रहा है और ऐसे में यहां बड़े बजट को खर्च करने की जरूरत है ताकि सबको समान रुप से बेहतर नागरिक सुविधा मिले.आज स्थिति यही है कि सबको बेहतर सुविधाएं हासिल नहीं है.यहां कोई देखने वाला नहीं है कि टाटा कंपनी वास्तव में शहर में कितना खर्च कर रही है.टाटा लीज समझौते के तहत पूरे जमशेदपुर में सरकारी दर पर नागरिक सुविधाएं उपलब्ध कराने की बात थी, मगर धरातल पर सिर्फ टाटा कमांड एरिया में ही कंपनी बेहतर सुविधाएं देती रही.जवाहरलाल शर्मा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले का ही असर है कि धीरे-धीरे कंपनी ने कई बस्तियों में टाटा की नागरिक सुविधाएं देनी शुरू की और आज माहौल ऐसा हो गया है कि बचे हुए क्षेत्रों में भी देने की बात समय-समय पर कही जा रही है.शर्मा कहते हैं कि जो भी सुविधाएं आज विभिन्न बस्तियों में मिलनी शुरु हुई है या पहले हुई, वह सुप्रीम कोर्ट में चल रहे इस मामले और 1989में आए फैसले की वजह से हुई,लेकिन समय- समय पर विभिन्न नेताओं ने इसका श्रेय लिया..शर्मा कहते हैं कि श्रेय लेने से भी उनको दिक्कत नहीं है,मगर दुखद ये रहा कि राज्य के सर्वोच्च पद पर विराजमान होने के बावजूद यहां के नेताओं ने 1989 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू नहीं किया.
जवाहरलाल शर्मा ने कहा कि अब टाटा कंपनी में भी कर्मचारियों की संख्या घटती जा रही है.कंपनी भी मार्केट में विभिन्न समस्याओं से जूझ रही है,ऐसे में जरूरी है कि शहर में नगर निगम बने और वृहद विकास हो.टाटा कंपनी से कोई विरोध नहीं है,नागरिक सुविधाओं की एजेंसी कंपनी ही रहे, मगर लोगों को तीसरा मताधिकार भी मिले.शक्ति जनता के हाथ रहे.संविधान के अनुसार काम हो.
शर्मा ने कहा कि कई लोग उन्हें टाटा के विरोधी कहकर दुष्प्रचार करते हैं, जबकि वे जनता के अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं.उन्होंने इस बात पर भी पीड़ा जाहिर की कि कई नेता और डाक्यूमेंट्री बनाने वाले उनसे इस मामले के सारे कागजात ले लिए, मगर जो काम करना था, वह नहीं किया.नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नगर निगम बनाने के फैसले को लागू नहीं किया और डाॅक्यूमेंट्री बनानेवाले ने अपनी फिल्म अब तक रिलीज ही नहीं की.इससे उनको पीड़ा पहुंची,क्योंकि वे नागरिकों के हक के लिए ईमानदारी से लड़ रहे हैं,वहीं कई लोग इस मामले की आड़ लेकर उनका इस्तेमाल कर अपना स्वार्थ साधने में लगे हैं.यहां के नेता टाटा कंपनी के क्वार्टर या रिश्तेदारों के कंपनी में जाॅब दिलाने के लिए भी हथकंडे अपनाकर इस मुद्दे पर शुरुआती दिलचस्पी दिखाकर फिर अपने असली मकसद को पा लेते हैं और फिर इस मुद्दे से किनारा कर लेते हैं.
आइए सिलसिलेवार ढ़ंग से समझते हैं कि कब क्या हुआ?
1988–जवाहरलाल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में जमशेदपुर में तीसरे मताधिकार को लेकर याचिका डाली
1989—तीन जजों की पीठ ने जमशेदपुर में नगरपालिका/म्यूनिसिपाॅलिटी बनाने का आदेश दिया
1991—सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में तत्कालीन बिहार सरकार ने नगरपालिका बनाने संबंधी नोटिफिकेशन जारी कर दिया
—नोटिफिकेशन के खिलाफ टाटा कंपनी ने पटना हाई कोर्ट का रुख किया
–बिना किसी नोटिस के नोटिफिकेशन पर स्टे ले लिया गया
—जवाहरलाल शर्मा ने पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर तमाम जानकारियां दी, जिसके बाद हाई कोर्ट द्वारा स्टे हटा दिया गया
—इस बीच बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बना और जवाहरलाल शर्मा ने तत्कालीन सी एम को पत्र लिखकर मामले की जानकारी दी और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में नगर पालिका/नगर निगम बनाने की मांग की
—जब रघुवर दास नगर विकास मंत्री बनें तो उन्होंने जमशेदपुर में नगरपालिका बनाने संबंधी नोटिफिकेशन जारी कर दिया
—-मामला फिर से जीवंत हो उठा और पक्ष विपक्ष में विवाद शुरु हो गया
—जवाहरलाल शर्मा सुप्रीम कोर्ट दौड़ते रहे और इधर किसी भी सरकार ने नगरपालिका बनाने के सरकारी नोटिफिकेशन को धरातल पर लागू नहीं किया
—कुछ समय मामला ठंडा पड़ा रहा और फिर पिछले दिनों झारखंड सरकार ने जमशेदपुर में इंडस्ट्रियल टाउन बनाने संबंधी नोटिफिकेशन जारी कर दिया
—इंडस्ट्रियल टाउन के नोटिफिकेशन के खिलाफ जवाहरलाल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में रिट पेटिशन दायर किया और बताया कि कैसे संविधान के अनुसार यह संभव नहीं है.
–शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट से 1989में दिए गए फैसले को लागू करवाने की मांग की
