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Home » JAMSHEDPUR NEWS :सूर्यधाम में संगीतमय श्रीराम कथा के छठे दिन कथा व्यास आचार्य राजेंद्र जी महाराज ने राम वनगमन
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JAMSHEDPUR NEWS :सूर्यधाम में संगीतमय श्रीराम कथा के छठे दिन कथा व्यास आचार्य राजेंद्र जी महाराज ने राम वनगमन

BJNN DeskBy BJNN DeskFebruary 27, 2025Updated:February 27, 2025No Comments5 Mins Read
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■ भगवान की भक्ति, रति और त्याग का अद्भुत उदाहरण हैं भ्राता भरत, आज भाई-भाई की सम्पत्ति को बांटने में लगा है विपत्ति को नहीं: राजेंद्र जी महाराज

■ श्रीराम जी के राज्याभिषेक और फूलों की होली से श्रीराम कथा का शुक्रवार को होगा विश्राम, दोपहर 3 बजे कथा होगी प्रारंभ

जमशेदपुर। सिदगोड़ा सूर्य मंदिर समिति द्वारा श्रीराम मंदिर स्थापना के पंचम वर्षगांठ के अवसर पर सात दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा के छठे दिन गुरुवार को कथा प्रारंभ से पहले वैदिक मंत्रोच्चार के बीच व्यास पीठ एवं व्यास का विधिवत पूजन किया गया। पूजन पश्चात श्रीधाम वृंदावन से पधारे मर्मज्ञ कथा वाचक आचार्य राजेंद्र जी महाराज का श्रद्धापूर्वक स्वागत किया गया। स्वागत के पश्चात कथा व्यास राजेंद्र महाराज ने कथा स्थल पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के समक्ष श्रीराम कथा के छठे दिन श्रीराम वनगमन, केवट प्रसंग एवं भरत मिलाप का अत्यंत मार्मिक वर्णन किया। कहा कि भरत और केवट से त्याग व भक्ति की प्रेरणा लेनी चाहिए। कथा के दौरान राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एवं सूर्य मंदिर समिति के मुख्य संरक्षक रघुवर दास मुख्यरूप से मौजूद रहे।

कथा व्यास राजेंद्र जी महाराज ने प्रसंग सुनाते हुए बताया कि राम और भरत ने संपत्ति का बंटवारा नहीं किया बल्कि विपत्ति का बंटवारा किया। राजा दशरथ ने कैकई को वचन तो दे दिया पर उसके बाद वे निःशब्द होकर रह गए। रघुकुल की मर्यादा के लिए उन्होंने अपने प्रिय पुत्र का वियोग स्वीकार कर लिया। कथा व्यास राजेंद्र महाराज ने कुसंगति को हानिकारक बताया। कहा कि मन्थरा दासी की कुसंगति के कारण ही कैकई की मति मारी गई और उसने राम के राज्याभिषेक से ठीक पहले उनके लिए वनवास मांग लिया। श्रीराम ने पिता के वचन का मान व कुल की मर्यादा रखने के लिए इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया और वन को प्रस्थान किया। इस दौरान “रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई” भजन पर श्रद्धालुओं की आंखें नम हो गयी।

वनगमन के दौरान रास्ते में केवट ने श्रद्धा भाव से भगवान राम के पैर धोए थे। साथ ही उन्हें गंगा पार कराई। बदले में केवट ने उनसे भवसागर पार कराने का वरदान मांग लिया। भगवान के चरण धोकर केवट की पीढ़ियां तर गईं। चित्रकूट पर भगवान का आगमन हुआ यहां से भील राज (निषाद) भगवान को प्रणाम करके अपने गृह के लिए वापस हुए। मार्ग में सोकातुर सुमन्त जी को धैर्य देकर उन्होंने अवध में भेजा। सुमन्त के द्वारा रामजी का वन गमन सुनकर महाराज दशरथ ने प्राणों का त्याग कर दिया। राम विरह में प्राणों का त्याग करके अवधेश संसार में सदा के लिए अमर हो गये।

श्रीभरत का अयोध्या में आगमन हुआ कैकयी के द्वारा मांगे गये वरदानों के सत्य से परिचित होकर उन्होंने माता कैकयी का सदा के लिए त्याग कर दिया। कैकयी का त्याग करके श्रीभरत मां कौशल्या के भवन में आए माता कौशल्या ने भरत जी को पूर्ण वात्सल्य प्रदान किया एवं राम वनवास और दशरथ मरण की सम्पूर्ण घटना को सुनाया।

कथा में आगे वर्णन करते हुए राजेंद्र महाराज ने बताया कि श्रीभरत ने चित्रकूट यात्रा के लिए सम्पूर्ण अयोध्यावासियों को तैयार कर लिया। राजतिलक की सामिग्री को साथ लेकर गुरूदेव की अनुमति से श्रीभरत सभी को साथ लेकर भगवान की खोज में चल पड़े। भाई-भाई के प्रेम को दर्शन कराने के लिए ही श्रीराम और भरत जी के मिलन का प्रसंग आया। चित्रकूट में श्रीभरत की राम प्रेममयी दशा को देखकर वहां के पत्थर भी पिघलने लगे। भगवान ने भरत जी को स्वीकार करते हुए चित्रकूट की सभा में उन्हीं को निर्णय करने के लिए कहा तो भरत जी ने भगवान को वापस अयोध्या लौटने के लिए प्रार्थना की तथा स्वयं पिता के वचन को मानकर वनवासी जीवन बिताने का संकल्प लिया। किन्तु भगवान को यह स्वीकार नहीं था। दोनों भाई एक दूसरे के लिए सम्पत्ति और सुखों का त्याग करने के लिए उद्यत थे और विपत्ति को अपनाना चाहते थे। यही भ्रातृप्रेम है। आज वर्तमान में भाई भाई की सम्पत्ति को बांटता है विपत्ति को नहीं। यदि भाई भाई की विपत्ति को बांटने लगे तो संसार भर के परिवारों की समस्याओं का समाधान हो जाये। श्रीराम-भरत के प्रेम से प्रत्येक भाई को भाई से प्रेम का संदेश लेना चाहिए।

श्रीभरत ने भगवान की चरण पादुकाओं को सिंहासनारूढ़ किया और चौदह वर्ष तक उनकी सेवा की। यह भ्रातृ प्रेम की पराकाष्ठा है। भरत जी के नाम का अर्थ ही है- ‘भ’ अर्थात् भक्ति, र अर्थात् रति, ‘त’ अर्थात् त्याग । अर्थात् भगवान की भक्ति, रति और त्याग का अद्भुत उदाहरण हैं “श्री भरत”।

कथा में मंच संचालन सूर्य मंदिर समिति के वरीय सदस्य गुँजन यादव ने किया।

कथा में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सह सूर्य मंदिर समिति के मुख्य संरक्षक रघुवर दास, संरक्षक चंद्रगुप्त सिंह, प्रभात ख़बर के संपादक संजय मिश्रा, जमशेदपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष संजीव भारद्वाज, मंदिर समिति के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह, महासचिव अखिलेश चौधरी, चंद्रशेखर मिश्रा, संदीप मुरारका, कमल किशोर अग्रवाल, सुशांत पांडा सपत्नीक, शिवकांत दुबे सपत्नीक, मिथिलेश सिंह यादव, खेमलाल चौधरी, गुंजन यादव, कल्याणी शरण, जीवन साहू, संदीप शर्मा बौबी, टुनटुन सिंह, अमरजीत सिंह राजा, शैलेश गुप्ता, रूबी झा, बोलटू सरकार, शशिकांत सिंह, कंचन दत्ता, प्रमोद मिश्रा, राकेश सिंह, अमित अग्रवाल, अभिषेक अग्रवाल गोल्डी, पप्पू मिश्रा,मंजीत सिंह गिल, कुमार अभिषेक, हरेराम यादव, ओम पोद्दार, उज्ज्वल सिंह, मुकेश कुमार, रमेश तिवारी समेत अन्य मौजूद रहे।

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