जमशेदपुर। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन ने आज कहा कि सरकार आदिवासियों के हितों को लेकर गंभीर नहीं है, और उनमें पेसा अधिनियम लागू करने की इच्छा शक्ति नहीं है। वे स्थानीय एक्सएलआरआई ऑडिटोरियम में आयोजित आदिवासी महा दरबार को संबोधित कर रहे थे।
मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए मैने पेसा अधिनियम की समीक्षा की थी, और पारंपरिक ग्राम सभाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए कुछ विशेष प्रावधान भी जुड़वाए थे। लेकिन आज सरकार पेसा को लागू ही नहीं करना चाहती है।
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आदिवासी महा दरबार में गरजे चम्पाई सोरेन, दान पत्र पर लूटी गई जमीन वापस दिलवाएंगे
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने विश्व आदिवासी दिवस में घोषणा किया था कि नगड़ी ग्राम में 24 अगस्त को हल जोतेंगे। राज्य सरकार में दम है, तो चंपई सोरेन को रोक कर दिखाए। उन्होंने कहा कि कोल्हान, संथाल सहित विभिन्न जिलों में इसे रोकने के लिए छावनी बना दिया गया था। लेकिन मरांग बुरु एवं सिंग बोंगा की कृपा से नगड़ी में हमारी जीत हुई, वहां पर हल जोता गया।
उन्होंने कहा कि बाबा तिलका मांझी से लेकर वीर सिदो कान्हू, पोटो हो, चांद भैरव, एवं भगवान बिरसा मुंडा ने जल, जंगल, जमीन की लड़ाई लड़ी है। हमें भी अपने परंपरा, संस्कृति को बचाए रखने के लिए आगे बढ़कर लड़ना पड़ेगा। जहां कहीं भी झारखंड के आदिवासियों एवं मूलवासियों की जमीन लूटने का प्रयास होगा, मैं उसके विरोध में खड़ा रहूंगा।
पूर्व सीएम सोरेन ने कहा कि सरकार यह चाहती ही नहीं है कि आदिवासी समाज की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था मजबूत हो। उनका लक्ष्य आदिवासी समाज को सिर्फ “अबुआ-अबुआ” में उलझाए रखना है, ताकि वे कोई सवाल ना पूछ सकें।
उन्होंने कहा कि हम आदिवासी इस जमीन के मालिक हैं, लेकिन कुछ लोग हमें अनुदान और राशन के चावल पर निर्भर रखना चाह रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर जमीन सुरक्षित रहे तो और सिंचाई की व्यवस्था हो जाए तो हम आदिवासी लोग 10 परिवारों को खिलाने की क्षमता रखते हैं।
चम्पाई सोरेन ने हेमंत सरकार एवं टाटा समूह के खिलाफ बिगुल फूंका, आदिवासियों की जमीन वापस करवाने के लिए आंदोलन करेंगे
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वीर सिदो-कान्हू, चांद-भैरव, फूलो-झानो के गांव भोगनाडीह की जमीन भी लूटी जा रही है। अब वहां करीब 250 परिवार घुसपैठियों के हैं, जबकि आदिवासी अब 100 परिवार भी नहीं बचे हैं। जब वहां एसपीटी एक्ट लागू है तो फिर ये लोग किस की जमीन पर बसे हैं? साहिबगंज, दुमका से लेकर रांची, लोहरदगा और हमारे पड़ोस में कपाली तक, आदिवासी – मूलवासी समाज की जमीनें लूटने वाले कौन लोग हैं? कपाली के बांधगोड़ा में सैकड़ों एकड़ जमीन कौन लुट रहा है? किस के संरक्षण में यह गोरखधंधा चल रहा है?
पहले महाजनी व्यवस्था की वजह से लोग जमीनें गंवाते थे, आज वही काम दान पत्र द्वारा हो रहा है। सीएनटी-एसपीटी एक्ट को बाईपास करने के लिए लोग एक कागज के टुकड़े का इस्तेमाल कर रहे हैं। झारखंड सरकार को ललकारते हुए चम्पाई सोरेन ने कहा कि आगामी 22 दिसंबर को वे वीर भूमि भोगनाडीह में एक बड़ी बैसी (पारंपरिक बैठक) बुलाएंगे, जिसमें दान पत्र द्वारा लूटी गई जमीनों को वापस करवाने का निर्णय लिया जायेगा।
चंपाई सोरेन ने कहा कि आदिवासियों की पुश्तैनी जमीन को अतिक्रमण कर बड़े-बड़े उद्योग व कारखाने लग रहे हैं। उनकी जमीन को बिना अधिग्रहण की प्रक्रिया को पूरी किए कब्जा किया जा रहा है। टाटा जैसे औद्योगिक घराने झारखंड से लेकर ओडिशा तक आदिवासी समाज की हजारों हेक्टेयर जमीन ले चुके हैं, लेकिन बदले में हमें क्या मिला?
चंपाई सोरेन ने कहा कि आदिवासी समाज की महिला यदि गैर आदिवासी समाज में विवाह करती है तो इस पर कोई आपत्ति नहीं है। वह जहां चाहे, वहां शादी करे और खुश रहे, लेकिन आदिवासी समाज से बाहर जाने के बाद अगर वह अपने पैतृक जाति के आधार पर जाति प्रमाण पत्र बनाकर आरक्षण मांगती है तो इसका पूरजोर विरोध होगा। उसे आरक्षण के आधार पर चुनाव लड़ने से रोकना होगा। उन्होंने कहा कि आदिवासी जीवन शैली छोड़ कर, दूसरे धर्म को स्वीकार करने वालों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।
आदिवासी महा दरबार में जुटे समाज के बुद्धिजीवी, आदिवासी समाज के हित में लंबा संघर्ष शुरू करने की तैयारी
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि सीएम रहते समय हमने सभी सरकारी स्कूलों में स्थानीय/ आदिवासी भाषाओं में शिक्षा शुरू करने का प्रयास किया था। लेकिन सरकार बदलते ही, आनन-फानन में इस प्रक्रिया को रोक दिया गया। राज्य सरकार ने आदिवासियों की पवित्र आस्था के केंद्र मरांग बुरू तक को विवादों में डाल दिया।
इस आदिवासी महा दरबार में इनकम टैक्स की एडिशनल कमिश्नर एवं पंचायती राज विभाग (झारखंड) में निदेशक रहीं निशा उरांव ने भारतीय संविधान प्रदत्त अनुसूचित जनजातियों को सुरक्षा देने वाले अधिकार रूढ़ि प्रथा, पेसा अधिनियम, अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा के अधिकार, जमीन अतिक्रमण, अधिग्रहण तथा धर्मांतरण पर अपने विचार रखे।
उन्होंने कहा कि पेसा कानून को पिछले 15 सालों से लागू करने की लड़ाई लड़ी जा रही थी, लेकिन इस लड़ाई में पेसा कानून को लागू करने के स्थान पर छठी अनुसूची के तहत चुनाव कराने की व्यवस्था की मांग हो रही थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि जो लोग आदिवासी जीवन शैली छोड़ चुके हैं, वे आदिवासी नहीं हैं और यह बात कोर्ट में साबित हो चुकी है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि तुरंत पेसा कानून लागू किया जाए।
आदिवासी महा दरबार को प्रो. ज्योतिंद्र बेसरा, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सुभाशीष रशिक सोरेन, प्रो. बापी सोरेन, विजय कुजूर, तोरोप परगना सुशील कुमार हांसदा, गणेश पाट पिंगुवा, पंचायत राज विभाग की पूर्व निदेशक-निशा उरांव, सिदो-कान्हू मुर्मू के वंशज मंडल मुर्मू, रत्नाकर भेंगरा, बीएचयू के प्रो राजू माझी समेत अन्य ने संबोधित किया।
इस कार्यक्रम का आयोजन आदिवासी सांवता सुशार अखाड़ा की ओर से किया गया था, जिसमें झारखंड, बंगाल एवं उड़ीसा के हजारों माझी बाबा एवं आदिवासी समाज के बुद्धिजीवियों ने शिरकत किया।
