जमशेदपुर,। शहर की 86 बस्तियों को मालिकाना हक देने की पुरानी मांग एक बार फिर से सुर्खियों में है। विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों द्वारा यह मुद्दा उठाए जाने के बीच जनता दल (यू) के वरिष्ठ नेता आशुतोष राय ने इसे केवल “बयानबाजी और जुमलेबाजी” करार दिया है। उन्होंने कहा कि जब तक इस मुद्दे पर ठोस विधेयक झारखंड विधानसभा में पारित नहीं होता, तब तक यह सिर्फ जनता को गुमराह करने का काम है।
आशुतोष राय ने बताया कि यह कोई नया मुद्दा नहीं है। वर्ष 2006-07 में तत्कालीन विधायक सरयू राय इस विषय को लेकर विधानसभा में एक विधेयक लेकर आए थे, लेकिन उस समय उन्हें किसी भी दल का समर्थन नहीं मिला। उन्होंने कहा,
“आज जो लोग इस पर बोल रहे हैं, वही उस समय पूरी तरह खामोश थे।”
राय ने कहा कि जमशेदपुर की स्थिति अब पहले से कहीं अधिक जटिल हो चुकी है। पहले जहां शहर में 86 बस्तियों की बात की जाती थी, वहीं अब 144 से अधिक बस्तियां हैं, जिनमें हजारों परिवार दशकों से रह रहे हैं। “इतने सालों में अगर कुछ नहीं बदला, तो वो है इन वासियों की कानूनी अनिश्चितता और राजनीतिक उपेक्षा।”
उन्होंने सवाल उठाया कि जब राज्य में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार थी, तब बस्ती मालिकाना हक विधेयक को पास क्यों नहीं किया गया? आशुतोष राय ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने उस समय विधेयक में एक ऐसा क्लॉज (धारा) जोड़ दिया था, जिसे हटाए बिना कोई भी बस्ती वैध नहीं हो सकती थी।
“सरकार ने खुद विधानसभा में कहा था कि जब तक यह क्लॉज शिथिल नहीं होगा, तब तक यह कार्य असंभव है।”
राय ने कहा कि यह मुद्दा अब राजनीति से ऊपर उठकर जनहित का सवाल बन गया है।“अगर सभी जनप्रतिनिधि वास्तव में मालिकाना हक को लेकर गंभीर हैं, तो उन्हें राजनीतिक मतभेद भुलाकर एकजुट होना पड़ेगा। सभी दलों को एक मंच पर आकर इस पर मंथन करना चाहिए, तभी इसका स्थायी समाधान निकल सकेगा।”
उन्होंने कहा कि जनता दल (यू) इस मुद्दे पर व्यापक संवाद की पहल करेगा ताकि बस्ती वासियों को उनका हक दिलाने के लिए ठोस नीति बनाई जा सके।
