Jamshedpur News :पेसा कानून पर चुप्पी को लेकर रघुवर दास का हेमंत सोरेन पर हमला

जमशेदपुर। पेसा कानून को लेकर झारखंड सरकार की उदासीनता पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता रघुवर दास ने गुरुवार को जमशेदपुर के बिष्टुपुर स्थित चैंबर ऑफ कॉमर्स सभागार में आयोजित प्रेस वार्ता में तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार पेसा कानून को लागू करने में टालमटोल कर रही है जिससे वे माननीय उच्च न्यायालय के आदेश की भी अवहेलना कर रही है, जो लोकतंत्र और संविधान के लिए अत्यंत चिंताजनक है।

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पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बताया कि 2024 में ही झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को दो माह के भीतर पेसा कानून लागू करने का निर्देश दिया था, लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। परिणामस्वरूप अब माननीय उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव और पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव को अवमानना का नोटिस जारी किया है। उन्होंने कहा कि झारखंड की जनता यह जानना चाहती है कि आखिर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इतने कमजोर क्यों हैं। किससे डर रहे हैं। क्या आदिवासी मुख्यमंत्री होने का सिर्फ चुनावी इस्तेमाल किया गया। 2019 में ‘आबुआ राज’ और आदिवासी नेतृत्व के नाम पर वोट लिया गया, लेकिन अब जब पेसा कानून लागू करने का समय आया, तो सरकार चुप्पी साधे बैठी है।

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इस दौरान रघुवर दास ने स्पष्ट किया कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कार्यकाल में 2018 में ही पेसा नियमावली को लेकर 14 विभागों के सचिवों के साथ बैठक हुई थी और सभी तैयारियां पूरी की गई थीं, लेकिन चुनाव और आचार संहिता के चलते प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी। उन्होंने यह भी बताया कि वर्तमान झामुमो-कांग्रेस सरकार ने 2023 में नियमावली का ड्राफ्ट तैयार कर आपत्तियां और सुझाव आमंत्रित किए थे, जिन्हें विधि विभाग और एडवोकेट जनरल ने वैध करार दिया है। अब सिर्फ इसे कैबिनेट में मंजूरी देना बाकी है। उन्होंने बताया कि अगर पेसा नियमावली लागू नहीं हुई तो 15वें वित्त आयोग की ₹1400 करोड़ की राशि लैप्स हो जाएगी, जिसका सीधा नुकसान राज्य के गांवों को होगा। कहा कि पेसा कानून लागू होने से ग्राम सभा को खनिज, वनोपज, बालू घाटों, तालाबों की नीलामी और अन्य स्थानीय संसाधनों पर कानूनी और आर्थिक अधिकार मिलेगा, जिससे गांवों की अर्थव्यवस्था सशक्त होगी।

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उन्होंने कहा कि पेसा कानून भारत के उन राज्यों में लागू होता है जहां पाँचवीं अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्र घोषित हैं। ऐसे कुल 10 राज्य हैं। जिसमें 8 राज्यों में पेसा कानून लागू हो चुका है, जबकि केवल 2 राज्य ओडिशा और झारखंड बचे हैं। रघुवर दास ने कहा कि ओडिशा में 27 वर्षों से बीजेडी की सरकार थी और वहां पेसा कानून लागू नहीं किया। झारखंड में 6 साल से आदिवासी मुख्यमंत्री हैं, पर यहां भी पेसा कानून सिर्फ फाइलों में दबी है।

श्री दास ने कहा कि पेसा कानून आर्थिक सशक्तिकरण के साथ झारखंड की सांस्कृतिक विरासत और आदिवासी परंपराओं की रक्षा का एक सशक्त औजार है। कहा कि आज आदिवासी संस्कृति पर चौतरफा हमला हो रहा है। पेसा कानून लागू होने से मांझी, परगना, पहान, मानकी-मुंडा जैसे पारंपरिक जनप्रतिनिधियों को उनका अधिकार मिलेगा और धर्मांतरण व बाहरी हस्तक्षेप पर भी लगाम लगेगी।

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पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने आरोप लगाया कि पेसा कानून को रोकने में विदेशी धर्म प्रचारक संस्थाओं की भूमिका रही है, जिन्होंने 2010 से 2017 तक इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में मुकदमे किए थे। उन्होंने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि झारखंड में सिर्फ पांचवीं अनुसूची ही लागू होगी, न कि छठी अनुसूची।

उन्होंने मुख्यमंत्री से सवाल किया कि जब हमारे आदिवासी पूर्वज अंग्रेजों से नहीं डरे, तो वे किससे डर रहे हैं। सत्ता आती-जाती रहती है, लेकिन आदिवासी समाज की संस्कृति और अधिकार की रक्षा सर्वोपरि है।

प्रेस वार्ता में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पेसा कानून के साथ-साथ शेड्यूल एरिया में थर्ड और फोर्थ ग्रेड की नौकरियों में स्थानीय युवाओं के लिए 10 वर्षों तक आरक्षण की पुरानी व्यवस्था को भी पुनः लागू करने की मांग की। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार ने यह व्यवस्था शुरू की थी, जिससे लाखों स्थानीय युवाओं को रोजगार मिला था, लेकिन वर्तमान सरकार ने हाई कोर्ट में एफिडेविट देकर इसे खुद ही गलत ठहराया और 60-40 की नीति लागू कर दी।

उन्होंने राज्यपाल से मुलाकात और राज्य सरकार को भेजे गए पत्र का हवाला देते हुए कहा कि जब राज्यपाल और हाई कोर्ट जैसे संवैधानिक संस्थान बार-बार सरकार को आदेश दे रहे हैं, तब भी सरकार क्यों चुप है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर जल्द ही पेसा कानून लागू नहीं किया गया, तो भाजपा राज्यव्यापी आंदोलन करने से पीछे नहीं हटेगी।

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