रवि कुमार झा,जमशेदपुर,05 जुन
भारत में हर साल 50 हज़ार लोग सर्पदंश से मौत की नींद सो जाते हैं और इनमे से ज़्यादातर की जान अज्ञानता और अंधविश्वास के चक्कर मे चली जाती है , डब्ल्यूएचओ ( वर्ल्ड हेल्थ ओर्गेनाइजेसन ) का भी कहना है कि अगर समय पर सही इलाज मिल जाए तो इनमें से बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकती है. नीम हकीम और सँपेरे ग्रामीण इलाकों में अक्सर अवैज्ञानिक तरीक़े से सर्पदंश का इलाज करते हैं जिससे उन लोगों की भी जान चली जाती है जिन्हें बचाया जा सकता है.तरह-तरह के अंधविश्वासों की वजह से लोग ठीक तरीक़े से इलाज नहीं कराते और उनमे से कुछ ठीक भी हो जाते है ।होता यह है कि मनुष्य को काटने वाला हर साँप ज़हरीला नहीं होता है इसलिए बिना विष वाले सांप के काटने से जो घाव बन जाता है वह समय के साथ ख़ुद ही भर जाता है,सर्पदंश की 100 में से 70 घटनाओं में बिना विष वाले साँप होते हैं और सिर्फ़ 30 प्रतिशत घटनाओं में साँप ज़हरीला होता है.
कुछ ऐसा ही हुआ पोटका प्रखण्ड के भाटिन पंचायत के तिलाईटांड़ निवाशी 45 वर्षी जमादार मांझी के साथ मंगलवार की रात 11 बजे उसकी मौत साँप काटने से हो गयी । घटना इस प्रकार है जादुगोङा के यूसिल निवासी बलराम मुरमु के घर मे जमादार मांझी घर की रखवाली और बकरी चराने का काम करता था रोज की तरह वह बकरी चराकर वापस आ रहा था की तिलाईटांड़ जाहेरटोला के समीप उसे शाम करीब 6 बजे किसी जहरीले साँप ने काट लिया इसके बाद ग्रामीणो ने उसे ओझा – गुणी और ग्रामीण दवाई दिया लेकिन उसके स्वास्थ मे कोई लाभ नहीं हुआ और इसी तरह उसके शरीर मे पूरी तरह से जहर फेल गया उसके मुंह से झांग निकलने लगा और और रात 11 बजे उसकी मौत हो गयी , हांलाकी ग्रामीनो ने अस्पताल ले जाने के लिए ऑटो का प्रबंध किया लेकिन ताबतक काफी देर हो चुकी थी ।
जमादार मांझी के पड़ोसी सह ग्राम स्वास्थ समिति के अध्यक्ष शेखर बिरुली ने बताया की वे किसी काम से बाहर गए हुए थे और काफी देर से उन्हे इसकी जानकारी मिली अगर समय पर उसे अस्पताल ले जाया जाता तो उसकी जान बच सकती थी उन्होने कहा की आज भी लोग अंधविश्वास के कारण जान गंवा रहे है यह इस गाँव की पहली घटना है लोगो को जागरूकता की आवश्यकता है ।
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