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Home » शारदीय नवरात्र—मां कात्यायनी
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शारदीय नवरात्र—मां कात्यायनी

BJNN DeskBy BJNN DeskSeptember 30, 2014No Comments3 Mins Read
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जमशेदपुर,30 सितम्बर

आज पावन नवरात्र पर्व  का छठा दिन है. आज फलदायिनी मां कात्यायनी  की पूजा-अर्चना की जाती है. महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होकर माता ने आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था.

  1. मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं. दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके स्वरूप की पूजा की जाती है. इस दिन साधक का मन‘आज्ञा चक्र’ में स्थित रहता है. यह मां सिंह पर सवार, चार भुजाओं वाली और सुसज्जित आभा मंडल वाली देवी हैं. इनके बाएं हाथ में कमल और तलवार व दाएं हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा है.

     

    मां कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म,काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है. वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है.

  2. मां कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म,काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है. वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है.
  3. नवरात्र के छठे दिन सूर्य भगवान की पूजा अर्चना करने का भी विशेष विधान है. आज बिहार और यूपी के विभिन्न हिस्सों में सूर्य पूजा की जाएगी. छठ पर्व के नाम से मशहूर इस पर्व में भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. सूर्य व्रत छठ एक बेहद कठिन व्रत माना जाता है क्यूंकि इसमें भगवान सूर्य की उपासना में चार दिन का व्रत रखा जाता है. इस पर्व के नियम बड़े कठोर हैं. संभवत: इसी लिए इसे छठ व्रतियों का सिद्धपीठ भी कहा जाता है. यह कुल चार दिन का पर्व है. प्रथम दिन व्रती नदी–स्नान करके जल घर लाते हैं. दूसरे दिन, दिन भर उपवास रहकर रात में उपवास तोड़ देते हैं. फिर तीसरे दिन व्रत रहकर पूरे दिन पूजा के लिए सामग्री तैयार करते हैं.

     

     

    इस सामग्री में कम से कम पांच किस्म के फलों का होना जरूरी होता है. तीसरे दिन ही शाम को जलाशयों या नदी में खड़े होकर व्रती सूर्यदेव की उपासना करते हैं और उन्हें अ‌र्ध्य देते हैं. अगले दिन तड़क पुन: तट पर पहुंचकर पानी में खड़े रहकर सूर्योदय का इंतजार करते हैं. सूर्योदय होते ही सूर्य दर्शन के साथ उनका अनुष्ठान पूरा हो जाता है.

     

    मां कात्यायनी की पूजा करने के लिए निम्न मंत्र का जाप करें जो बेहद सरल और आसान है :

     

     

    या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम ॥

  4. अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कात्यायनी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है. या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ. हे माँ, मुझे दुश्मनों का संहार करने की शक्ति प्रदान कर.

     

     

    ध्यान मंत्र

     

    वन्दे वांछित मनोरथार्थचन्द्रार्घकृतशेखराम्.

    सिंहारूढचतुर्भुजाकात्यायनी यशस्वनीम्॥

    स्वर्णवर्णाआज्ञाचक्रस्थितांषष्ठम्दुर्गा त्रिनेत्राम।

    वराभीतंकरांषगपदधरांकात्यायनसुतांभजामि॥

    पटाम्बरपरिधानांस्मेरमुखींनानालंकारभूषिताम्।

    मंजीर हार केयुरकिंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्॥

    प्रसन्नवंदनापज्जवाधरांकातंकपोलातुगकुचाम्।

    कमनीयांलावण्यांत्रिवलीविभूषितनिम्न नाभिम्॥

     

    स्तोत्र मंत्र

     

    कंचनाभां कराभयंपदमधरामुकुटोज्वलां।

    स्मेरमुखीशिवपत्नीकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥

    पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां

    सिंहास्थितांपदमहस्तांकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥

    परमदंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।

    परमशक्ति,परमभक्ति्कात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥

    विश्वकर्ती,विश्वभर्ती,विश्वहर्ती,विश्वप्रीता।

    विश्वाचितां,विश्वातीताकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥

    कां बीजा, कां जपानंदकां बीज जप तोषिते।

    कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥

    कांकारहíषणीकां धनदाधनमासना।

    कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥

    कां कारिणी कां मूत्रपूजिताकां बीज धारिणी।

    कां कीं कूंकै क:ठ:छ:स्वाहारूपणी॥

     

    कवच मंत्र

    कात्यायनौमुख पातुकां कां स्वाहास्वरूपणी।

    ललाटेविजया पातुपातुमालिनी नित्य संदरी॥

    कल्याणी हृदयंपातुजया भगमालिनी॥

     

     

    भगवती कात्यायनी का ध्यान, स्तोत्र और कवच के जाप करने से आज्ञाचक्र जाग्रत होता है. इससे रोग, शोक, संताप, भय से मुक्ति मिलती है.

     

     

     

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