Anni Amrita
अन्नी अमृता
जमशेदपुर.
गुरुजी नहीं रहे…मगर,उनकी यादें और उनका संघर्ष युगों युगों तक हम सबको प्रेरित करता रहेगा.गुरुजी बनना आसान नहीं है.गुरुजी बनना कोई खेल नहीं है.त्याग करना पड़ता है,तप करना पड़ता है,झंझावातों से गुजरना पड़ता है…अत्याचार के खिलाफ लड़ना पड़ता है.
सोचिए झारखंड के रामगढ के नेमरा गांव के एक 13 वर्षीय किशोर की मन:स्थिति के बारे में,जिसके शिक्षक पिता की इसलिए हत्या कर दी जाती है क्योंकि वे महाजनों के अत्याचार के खिलाफ आदिवासियों को एकजुट और जागरुक कर रहे थे.वह किशोर कोई और नहीं बल्कि आदरणीय गुरुजी शिबू सोरेन जी ही थे.पिता की हत्या के बाद हालात ऐसे हुए कि पढ़ाई छूट गई.भरण पोषण के लिए सालों तक बहुत संघर्ष करना पड़ा.लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और महाजनी व सूदखोरी की प्रथा के खिलाफ बिगुल फूंक दिया.महाजनों के अत्याचार के खिलाफ आदिवासियों को एकजुट किया और ‘धानकटनी’ आंदोलन छेड़ दिया.वे साथियों के साथ महाजनों के खेतों से जबरन धान काटकर ले आते थे.जो महाजन आदिवासियों पर अत्याचार करते थे,जो कर्ज उगाही के नाम पर आदिवासियों की जमीनें हड़प लेते थे, वे महाजन भय खाने लगे.1960-70के दशक में झारखंड (तत्कालीन बिहार) के विभिन्न इलाकों में ‘धानकटनी’ आंदोलन का ऐसा असर रहा कि आगे चलकर कुप्रथा खत्म हुई.आदिवासियों ने गुरुजी को नाम दिया–दिशोम गुरु…
आदिवासी हक और संघर्ष को और मजबूती देने के लिए गुरु जी शिबू सोरेन ने एके राय और विनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर 1972में धनबाद में झारखंड मुक्ति मोर्चा की नींव रखी जिसकी अगुवाई में अलग झारखंड राज्य का आंदोलन परवान चढा.
देश भले ही 1947 में आजाद हुआ पर सूदखोरी और महाजनी प्रथा से गुरुजी ने ही आजादी दिलवाई.आज सोशल मीडिया का जमाना है और स्मार्ट फोन के माध्यम से वीडियो वायरल हो जाते हैं.कल्पना कीजिए उस युग की जब तकनीक के इतने साधन न थे और महाजन कर्ज के जाल में फंसाकर आदिवासियों से कई गुणा ज्यादा वसूलते थे और उनकी जमीनें हड़प लेते थे.खून के आंसू रोते आदिवासी भाई बहनों को गुरुजी शिबू सोरेन के रुप में ऐसा जननायक मिला जिसने उन्हें महाजनों के चंगुल से छुड़ाकर उन्हें वास्तविक आजादी दी जो पूरे देश के लिए एक उदाहरण बना.
#भावभीनी श्रद्धांजलि…
