जमशेदपुर।
एन. आइ. टी. में 15 से 20 जुलाई तक चलने वाली मिनरल प्रोसेसिंग कार्यशाला AMPTIC-19 के दुसरे दिन आज IIMT भुवनेश्वर से पधारे धातु अयस्क शोधन विभाग के विभागद्यक्ष डॉ. सुरेंद्र कुमार बिस्वाल ने मिनरल के पेलेटिज़शन के विषय में विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। सरल भाषा में कहा जाये तो पेलेटिज़शन का अर्थ होता है अयस्क के चुर्ण से गोली बनाना, जिससे धातु का निष्कर्षण आसान एवं प्रभावी रूप से हो सके। उन्होंने बताया कि इसका प्रयोग सर्व-प्रथम सन 1940 में संयुक्त राज्य अमेरिका में किया गया क्योंकि वहां का लौह अयस्क भारत जितना प्रभावी नहीं था। इस प्रक्रिया में शाफ़्ट फर्नेस के द्वारा सर्वप्रथम उत्पादन किया गया। इसके पश्चात समय के साथ सुधार करते हुए ग्रेट-क्लिन प्रोसेस और समयांतर पर ट्रेवलिंग ग्रेट प्रोसेस द्वारा पैलेट्स का उत्पादन प्रारम्भ किया गया। जिसमें (ग्रीन बॉल्स) कच्चे धातु अयस्क चूर्ण को पानी और बंधक केमिकल के माध्यम से बांध के गेंदें बनायीं जाती हैं। इन गेंदों को सबसे पहले गर्म करके फिर धीरे धीरे ठंढा करते हैं जिससे ये ब्लास्ट फर्नेस के अति उच्च तापमान को सहने में सक्षम हो जाती हैं। डॉ बिस्वाल ने बताया कि ग्रेट-क्लिन प्रोसेस से बने गोली सबसे अच्छे होते हैं क्योंकि ये डायनामिक प्रोसेस से बनाये जाते हैं। इस विषय पर विस्तृत चर्चा करते हुए उन्होंने बोला की सोडियम बेंटोनाईड बेहतर होता है क्योंकि ये अपने फूलने के गुण के कारण अच्छी तरह फैल जाता है और कणो को चिपकने में आसानी होती है। उन्होंने पेलेट को बने की प्रकिया के पीछे के विज्ञानं का विस्तृत वर्णन किया। उन्होंने अपने उद्बोधन के पश्चात् प्रतिभागियों के प्रश्नों का उत्तर दिया। चूना, बेंटोनाईड और आर्गेनिक बाइंडरों का मिश्रण औद्योगिक जगत में सफलता प्राप्त कर रहा है और यह क्षेत्र उत्तरोत्तर प्रगति की ओर अग्रसर है, ऐसा डॉ. बिस्वाल ने अपने उद्बोधन में बताया। इस कार्यशाला का आयोजन इंस्मार्ट इंडस्ट्रीज के तत्वावधान में किया गया, जिसके संयोजक डॉ रंजीत प्रसाद एवं डॉ. रीना साहू थे।
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