
चांडिल।
धरती आबा बिरसा मुंडा जी की 125वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आज नारायण प्राइवेट आईटीआई, लूपुँगदीह संस्थान में एक भावपूर्ण श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में संस्थान के सभी शिक्षक, कर्मचारी और छात्र-छात्राएं भावनात्मक रूप से शामिल हुए।
कार्यक्रम की शुरुआत बिरसा मुंडा के चित्र पर माल्यार्पण कर और दीप प्रज्वलन के साथ हुई। सभी उपस्थितजनों ने दो मिनट का मौन रखकर इस महान क्रांतिकारी को श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर संस्थान के संस्थापक श्री जटाशंकर पांडेय और उपनिदेशक प्रो. सुदिष्ठ कुमार ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि बिरसा मुंडा न केवल एक क्रांतिकारी योद्धा थे, बल्कि वे आदिवासी समाज के सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक पुनर्जागरण के प्रतीक थे।
उन्होंने कहा, “बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के खूंटी जिले में हुआ था। वे मुंडा जनजाति से ताल्लुक रखते थे, परंतु उनका संघर्ष पूरे छोटा नागपुर क्षेत्र के लिए प्रेरणास्रोत बना। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ एक ऐतिहासिक विद्रोह ‘उलगुलान’ का नेतृत्व किया, जो आज भी झारखंड की पहचान है।”
प्रोफेसर सुदिष्ठ कुमार ने कहा, “बिरसा मुंडा ने न केवल अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध संघर्ष किया, बल्कि उन्होंने आदिवासी समाज को अंधविश्वासों, अन्याय और सामाजिक कुरीतियों से बाहर निकालकर आत्मसम्मान, शिक्षा और संगठन का मार्ग दिखाया। वे एक धार्मिक गुरु और समाज सुधारक भी थे।”
सभा में बताया गया कि बिरसा मुंडा को 3 फरवरी 1900 को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर रांची जेल में कैद किया, जहां 9 जून 1900 को महज 25 वर्ष की उम्र में उनका रहस्यमयी निधन हो गया। हालांकि उनकी मौत आज भी कई सवालों के घेरे में है, मगर उनका बलिदान भारत के इतिहास में अमर हो गया।
सभा के अंत में छात्रों ने बिरसा मुंडा के विचारों पर आधारित सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दीं और उनकी वीरता को नमन किया। कार्यक्रम का उद्देश्य था कि युवाओं को अपने इतिहास, संस्कृति और स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के बारे में जागरूक किया जाए।
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