चांडिल।
नारायण आईटीआई लुपुंगडीह, चांडिल में भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति, महान दार्शनिक तथा प्रख्यात शिक्षाविद डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाई गई। इस अवसर पर संस्था परिसर में डॉ. राधाकृष्णन के चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई।
संस्थान के संस्थापक एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. जटाशंकर पांडे ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि डॉ. राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के संवाहक, आस्थावान विचारक और एक महान शिक्षक थे। उनका योगदान न केवल शिक्षा जगत में बल्कि राष्ट्र निर्माण में भी अविस्मरणीय रहा है। वर्ष 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया था। उनके जन्मदिन 5 सितम्बर को पूरे देश में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
डॉ. पांडे ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद उन्हें संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया था। 14-15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को जब संविधान सभा का ऐतिहासिक सत्र आयोजित हुआ, तब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने चाहा कि डॉ. राधाकृष्णन की विद्वता और वक्तृत्व कला का उपयोग किया जाए। उन्होंने आधी रात 12 बजे अपना भाषण समाप्त कर इतिहास रच दिया।
साल 1952 में जब सोवियत संघ से लौटने के बाद उन्हें भारत का प्रथम उपराष्ट्रपति चुना गया, तो यह सबके लिए आश्चर्यजनक था कि कांग्रेस ने किसी राजनीतिज्ञ की बजाय एक शिक्षाविद का चयन किया। लेकिन यह निर्णय बेहद सार्थक सिद्ध हुआ। उपराष्ट्रपति के रूप में डॉ. राधाकृष्णन ने राज्यसभा का संचालन किया और अपने संतुलित, विनोदी तथा दृढ़ व्यक्तित्व से सभी दलों के सांसदों को प्रभावित किया। बाद में वे भारत के राष्ट्रपति बने और अपने आदर्शों व उच्च विचारों से पूरे देश का मार्गदर्शन किया।
कार्यक्रम में वक्ताओं ने कहा कि डॉ. राधाकृष्णन ने यह संदेश दिया कि शिक्षक केवल ज्ञान देने वाला ही नहीं, बल्कि समाज का मार्गदर्शक होता है। उनका जीवन हमें शिक्षा, विनम्रता और संस्कार की प्रेरणा देता है।
इस अवसर पर मुख्य रूप से एडवोकेट निखिल कुमार, प्रोफेसर सुधिष्ट कुमार, शांति राम महतो, प्रकाश महतो, देवाशीष मंडल, अजय मंडल, पवन महतो, कृष्णा पद महतो, गौरव महतो, संजीत महतो समेत संस्थान के सभी ट्रेड के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। पूरा माहौल श्रद्धा और प्रेरणा से भरा रहा।

