पुस्तक समीक्षा।
दुनिया की बहुत सारी समस्याएं सिर्फ एक प्याली चाय से हल की जा सकती हैं, यकीन मानिए यदि आप किसी को अपने घर पर आमंत्रित करते हैं और साथ बैठकर सिर्फ एक प्याली चाय पीते हैं, तो यकीनन आप मुश्किलों को हल कर सकते हैं।
लेखिका कुमारी छाया, जो झारखंड की निवासी हैं और विज्ञान की शिक्षिका हैं, ने लगभग 200 पेज की अपनी कविता संकलन को “एक प्याली चाय” में ही समेट दिया। दिखने में यह महज एक छोटी सी बात लगती है, किन्तु उनके इस काव्य संकलन के फलक चाय की प्याली में तूफान खड़े कर सकते हैं।
व्यक्तिगत रूप से हमें किताब का शीर्षक “एक प्याली चाय” इसलिए पसंद आई कि यह इस कविता संग्रह को आसानी से याद रखने वाली एक बाग बनाती है। अरबी भाषा में एक कहाबत भी है, “किताब इंसान के हाथ में एक बागीचे की तरह सुशोभित होती है।”
आजकल चाय पर बहुत चर्चा हुआ करती हैं। चाय के बारे में, जहाँ तक हमारी जानकारी है, यह दुनिया में पानी के बाद सबसे अधिक पी जाने वाली चीज है। भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश के अलावा चीन, ईरान, तुर्की और इंग्लैंड में यह तहजीब से पी जाती है। चीन और इंग्लैंड में तो इसके पीने के नियम भी कठोर हैं, यहां तक कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल, जो काफी मोटे थे तो उनकी सुबह की चाय के लिए एक खास किस्म का टेबल बनाया गया था जो उनकी तोंद पर फिट बैठती थी और वे अपने बिस्तर पर बैठकर ही सुबह की पहली चाय पीते और दूसरे विश्वयुद्ध की खबरें पढ़ते।
किन्तु अपना भारत चाय के मामले में थोड़ा अव्यवस्थित है, जहाँ न जाने चाय पर कितने अविष्कार हुए। तो, ऐसे में यदि कोई कवियत्री अपनी पहली पुस्तक का शीर्षक “एक प्याली चाय” रखकर पाठकों के सामने खूब व्यवस्थित तरीके से अपनी रचनाओं को पेश करती हैं तो यकीन मानिए इसमें कुछ तो बेहतर होगा ही।
इस किताब की खासियत यह है कि इसमें रची गई कविताएँ एकदम छोटी छोटी सी हैं, मानों एक चाय की प्याली हो और आप चुस्की लेकर उन कविताओं को पढ़ते जा रहे हों।
कवियित्री छाया फरमाती हैं :-
“तुम एक खूबसूरत शायरी हो
जिसे मैं बार- बार पढ़ना चाहती हूं।”
कविता खत्म और शीर्षक है इसका “चाय”
चाय सबको प्यारी लगती है। कवियत्री कहती हैं:-
“प्यार भरी मीठी शक्कर
उड़ते हुए लम्हों की पत्ती
पल-पल बहते वक़्त का पानी,
प्यार के अहसासों की धीमी सी ताव
लो हाजिर है प्यारी सी चाय।”
अब इसकी आप जितनी भी व्यख्या कीजिए, आप इसमें उन वक़्त को पाएंगे जिसके लिए लोग तरसते हैं।
इस गलतफहमी में मत रहिये कि इन्होंने सबकुछ चाय पर ही न्योछावर कर दिया है। चाय एक माध्यम है जो आपको अगले पृष्ठ में प्रकृति की ओर ले जाती है। कुमारी छाया “हमारी प्रकृति” शीर्षक से एक कविता लिखते हुए कहती हैं:-
“हमारी प्रकृति और उसका स्पर्श
जो पल -पल हमारे साथ है
उस स्पर्श को कैसे भूल जाते हैं
मित्रवत वो हमारा ख्याल रखता है
पंचतत्व में वो हमें धरा पर जीवन देता है।”
हर इंसान आसमान की ओर देखना पसंद करता है, चाहे कारण कुछ भी रहा हो। आसमान विशाल है, या यूं कहें कि उसके लिए विशाल शब्द भी छोटा पड़ जाए। और कोई इसे महज पांच पंक्तियों में समेट दे तो?
“आसमान अनंत विशाल
धरा तुम्हारी आसमानी ओढ़नी
ओढ़कर सकुचाती हुई बस तुम्हें
देखती ही रहती है हर क्षण कभी तो
वो मिल पाती तुमसे..”
हमारा व्यक्तिगत विचार यह रहा है कि यदि आप किसी को 500 शब्दों में नहीं समझा सकते तो आप उसे 5000 शब्दों में भी नहीं समझा पाएंगे। कम से कम शब्दों को खर्च कर अधिक से अधिक दूर तक जाना इंसान की एक विशेष काबिलियत होती है।
एक कविता है ” फूल की हर पंखुरी” जिसमें कवियत्री कहती हैं:-
” फूल की हर पंखुरी हमारी
तमन्नाओं का गुलदस्ता है
हवा के तेज झोंकों से इसे
कैसे अलग होने दूं।”
इंसान के मस्तिष्क में अनगिनत भाव -विचार आते हैं जिनमें सबसे अधिक कोमलता लिये कविता का भाव ही होता है। हिन्दी साहित्य में, खासकर आज के डिजिटल दौर में, अनगिनत लोगों ने अपनी -अपनी दुनिया बनाई है जिनमें कुमारी छाया भी एक नाम है।
इस कविता संग्रह “एक प्याली चाय” का प्रकाशन “आर्थर ट्री पब्लिशिंग” बिलासपुर छत्तीसगढ़ से हुआ है और मूल्य मात्र 249 रुपये हैं जो अमेजॉन और फिलिफ़्कार्ड पर उपलब्ध है।
कवियत्री कुमारी छाया जी को बहुत शुभकामनाएं😊 और अंत में, चाय एक कभी न भुलाया जाने वाली चीज होती है, सिमटती तो सिर्फ एक प्याली में ही है किंतु इसकी मिठास सदा बरकरार रहती है।
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