ध्वस्त है ये सिस्टम –मुफ़्त का कफ़न न दे सकी ऊषा देवी को झारखंड सरकार और विपक्ष की खामोशी बेशर्म
ध्वस्त है इस राज्य का सिस्टम और बेशर्म हैं सत्ता और विपक्ष।हेमंत सरकार ब्लैक फंगस की शिकार ऊषा देवी को मौत के बाद मुफ़्त का कफ़न न उपलब्ध करा सकी , जी हां वही कफ़न जिसकी उन्होंने हाल ही में घोषणा की थी और विवादों में आकर चौतरफा आलोचना का शिकार बने थे।भला हो धनबाद के समाजसेवी अंकित राजगढ़िया का और रांची के ब्लडमैन कहे जानेवाले अतुल गेरा का जिनलोगों ने अपनी बदौलत और खर्चे पर ऊषा देवी का दाह संस्कार किया।ऊषा देवी के बेटे बेटियों ने रिम्स प्रबंधन पर उनकी मां ऊषा देवी के इलाज में घोर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है।बच्चों का कहना है कि operation के बाद जिस तरह की देखभाल करनी चाहिए थी वो नहीं की गई और operation के कुछ घंटों के बाद खून बहने पर काफी देर तक कोई Doctor नहीं आया और बाद में आनन फानन में दुबारा operation थियेटर ले गए।बच्चों का कहना है कि इसके बाद से लगातार उनकी मां की हालत बिगड़ती रही लेकिन समय पर Doctor की मौजूदगी नहीं रही, उन्हें बस वेंटीलेटर पर डालकर छोड़ दिया गया।बेटे गौरव और बेटी पूजा का कहना है कि लापरवाही न होती तो मां की जान बच सकती थी।ऊषा देवी के बेटे गौरव ने रिम्स के खिलाफ बरियातू थाना में प्राथमिकी दर्ज़ कराई है।
ऊषा देवी कौन हैं बताने की जरूरत नहीं जिनके इलाज को लेकर ट्वीटर पर हमलोगों ने अभियान चलाया था।ब्लैक फंगस की शिकार ऊषा देवी संभवतया 15मई से रिम्स में भर्ती थीं जिनका संक्रमण बढ़ता जा रहा था।उनके बच्चे लगातार उनके इलाज की गुहार लगा रहे थे लेकिन रिम्स में उनका operation नहीं किया जा रहा था और बाहर जाने की सलाह दी जा रही थी। कुछ दिनों पहले जब धनबाद के समाजसेवी अंकित राजगढ़िया , रांची के ब्लडमैन अतुल गेरा और पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी के सहयोग से हमलोगों ने जब ट्वीटर पर अभियान चलाते हुए राज्य सरकार से मदद मांगी तो इस अभियान को ट्वीटर पर लोगों का काफी सहयोग मिला।चूंकि ब्लैक फंगस को झारखंड सरकार ने ब्लैक फंगस घोषित किया है तो ये राज्य सरकार की जिम्मेदारी थी कि वह ऊषा देवी के बेहतर इलाज और operation की व्यवस्था करती।ऊषा देवी के बच्चों ने सीएम हेमंत सोरेन से मदद की गुहार लगाते पत्र लिखा, उन्हें बुलाया गया लेकिन उनकी मुलाकात सीएम के पीए से कराई गई जिन्होंने 50हजार की मदद की पेशकश की जिससे मात्र कुछ दिनों की दवाईंया आ पातीं।यहां ये बताना जरुरी समझती हूं कि ऊषा देवी के परिजन लगातार बाहर से दवाईंया खरीद रहे थे जबकि कायदे से ये रिम्स में उपलब्ध होना था।खैर, ऊषा देवी के बेटा गौरव और पूजा सीएम के पीए से ऐसी मदद को ठुकरा कर आ गए जो उनके किसी काम की न थी।अब ऊषा देवी कोई विधायक या मंत्री तो थीं नहीं कि उनको एयरलिफ्ट कराकर राज्य से बाहर लाखों खर्च कर ये सरकार इलाज करवा देती।लेकिन कम से कम अपने दम पर रिम्स में तो इलाज करवा देती।आखिर क्यों इतने दिनों तक ऊषा देवी का संक्रमण बढ़ने दिया जा रहा था और operation को लेकर टाल मटोल किया जा रहा था ये सोचने वाली बात है।
बहरहाल , सीएम के वहां से टका सा जवाब पाकर ऊषा देवी के बच्चों ने गुहार लगाना जारी रखा और रिम्स परिसर में इच्छा मृत्यु की मांग करते हुए धरने पर बैठ गए।अब तक ये मामला सोशल मीडिया में छाया था लेकिन अब प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी सुर्खियां बटोरना लगा, लेकिन वो भोजपुरी का एक शब्द है न कि ‘काहे के लिए’ तो काहे के लिए कोई सरकार या विपक्ष से आकर सांत्वना देता। न बाबूलाल मरांडी आए और न ही दीपक प्रकाश और न रही रांची के सांसद संजय सेठ।जबकि उनको तो इस मुद्दे को लेकर एकदम मुखर होते हुए पीड़ित परिवार को सांत्वना देना चाहिए था। बेचारे बच्चे क्या करते , उनलोगों ने अधिवक्ता सीमा, अंकित राजगढिया की मदद से हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगाई तब चीफ जस्टिस के संज्ञान लेने और फटकार के बाद रिम्स प्रबंधन एकदम से जाग उठा और जिस operation को टरका रहा था उसकी पूरी तैयारी कर ली।उसके बाद क्या हुआ ये ऊपर वर्णित है।
यहां सवाल उठता है कि अगर operation रिम्स में संभव नहीं था तो हाई कोर्ट की फटकार के बाद कैसे संभव हो गया??उसके पहले क्यों ऊषा देवी के परिजनों को बार बार बाहर जाने की सलाह दी जा रही थी।अगर संभव न था तो हाई कोर्ट को स्पष्ट बताते कि यहां संभव नहीं।खैर 15जुलाई को इस केस की हाई कोर्ट में सुनवाई है जहां ब्लैक फंगस के संबंध में इलाज की व्यवस्था के बारे में सरकार और रिम्स से पूरी रिपोर्ट मांगी गई है। उम्मीद झारखंड हाई कोर्ट से ही है जहां ये मामला पीआईएल में बदल चुका है क्योंकि विपक्ष की बेशर्म चुप्पी पर अब कुछ बोलने लिखने का मन ही नहीं करता। हाई कोर्ट के आदेश पर ऊषा देवी का operation हुआ लेकिन ऊषा देवी की मौत पर न तो रिम्स के डायरेक्टर केली बंग्लो से निकले और न ही सत्ता या विपक्ष से कोई रिम्स पहुंचा।
अंत में , ये सुखद है कि राज्य के वरिष्ठ नेता और झारखंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुखदेव भगत ने चुप्पी नहीं साधी और इस घटना पर दुख जताते हुए ट्वीटर पर लिखा “”दुखद और ग्लानि का भाव”, ये बहुत बड़ी बात है जिसे हेमंत सरकार को समझना चाहिए।नहीं समझे तो जनता समझाएगी लेकिन सिस्टम बदलेगा कैसे??कोई तो पहल करे।हर सरकार में स्वास्थ्य व्यवस्था लचर रही है लेकिन हाई कोर्ट की दखलंदाजी वाले मुद्दे पर भी सत्ता और विपक्ष की ऐसी जुगलबंदी वाली बेशर्मी पहले कभी नहीं दिखी
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