अन्नी अमृता
आदित्यपुर
कल आदित्यपुर में पान दुकान के पास महिला से पर्स छिनतई हो गई.कोई आश्चर्य नहीं.पर्स और मोबाइल छिनतई और नशे का कारोबार यह तो कोई छिपी हुई बात नहीं है कि आदित्यपुर में क्या चल रहा है.क्या ऐसा समय आएगा जब महिला एं आराम से पर्स/मोबाइल लेकर चलें? अफसोस कि ‘सिंहम’ कहे जाने वाले अफसर के राज में भी आम जनता बेखौफ नहीं घूम पा रही क्योंकि पुलिस का खौफ अपराधियों में है ही नहीं उल्टे आम आदमी ही पुलिस से बहुत डरता है.थाना के पास सब्जी खरीदते वृद्ध जन हों या कहीं आते जाते लोग अक्सर आदित्यपुर पुलिस से रुबरु होते हैं.कई लोग अलग अलग कहानियां बताते हैं कि कैसे उनके साथ ऐसा….व्यवहार…हुआ…..ये खौफ अपराधियों में नहीं दिखता….लोग विरोध नहीं करते क्योंकि पुलिस के पास एक पावर है कि सरकारी काम में बाधा……….
आदित्यपुर क्षेत्र में अपराध नियंत्रण में खास सफलता न मिलने के कारण
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……क्योंकि पुलिस पदाधिकारी अपनी खामियों को सुधारकर कुछ नया करना नहीं चाहते….
सबसे दुखद हालात मीडिया की है जो ‘फलां जगह चला चेकिंग’ अभियान खबर बनाकर अफसर को खुश करती है मगर वह अफसर को यह नहीं बताती कि जनता का क्या फीडबैक है.
माफ कीजिएगा पत्रकार बंधु मगर पर्स छिनतई की घटना पर थाना प्रभारी हुए मुस्तैद की जगह ‘अब तक अपराधी गिरफ्त से बाहर’ लिखना सही होता..अपराधी पकडे जाते हैं फिर क्या होता है? फिर छिनतई को ई न ई घटना हो जाती है.घटना ओं के सिलसिले को ध्वस्त करने पर काम होना चाहिए .
और जब तब और बडी संख्या में चेकिंग अभियान चलाकर आम आदमी को रोक कर उलझना , दुर्व्यवहार करना यह संस्कृति हो चली है और इस तरह के चेकिंग अभियान पुलिस की मुस्तैदी की नहीं बल्कि इस बात का परिचायक है कि पुलिस का खुफिया तंत्र फेल है.खुफिया तंत्र मजबूत होगा तो पुलिस रोड पर नहीं दिखेगी फिर भी अपराधी डरेंगे और घटनाएं कम होंगी.
चापलूसी की बजाय सही बात लिखनी चाहिए…
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जब सफलता मिलती है तब मीडिया प्रेस काॅफ्रेस में जाता ही है , उजागर करता ही है.ऐसा तो नहीं कि सफलता को हाईलाईट नहीं किया जाता है.इसलिए जब कोई वारदात हो तो शब्दों के खेल कर ढकने की बजाए पुरजोर सवाल उठने चाहिए.
‘सिंहम’ लिखनेवाले पत्रकार बंधुओं से सवाल
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‘सिंहम’ लिखने वालों से पत्रकार बंधु ओं से मेरा एक सवाल है कि सिंहम से अपराधियों को डरना चाहिए या आम आदमी को?शायद आपको पता नहीं कि यह सब पढकर जनता हंसती है
आदित्यपुर पुलिस से
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अफसर आते जाते रहते हैं मगर उनका व्यवहार जनता याद रखती है.कार्य संस्कृति में सुधार या कुछ नया करने के लिए आलोचना पर गौर करके सुधार की कोशिश होनी चाहिए
निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छबाय
बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय
अंत में, अब हर व्यक्ति के पास स्मार्ट फोन है.अब मीडिया पर निर्भरता नहीं है.सोशल मीडिया का जमाना है और चीजें छुपती नहीं इसलिए ढकने की बजाय पत्रकार गण जिनकी रोजाना भेंट होती है कुछ अच्छे सलाह दें ताकि पुलिस की कार्यसंस्कृति बदले वर्ना दुर्व्यवहार का एक वीडियो सोशल मीडिया पर पोल खोल देगा..अब मीडिया छापे न छापे कोई फर्क नहीं पडता.
मीडिया से
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कमाल है आपलोग रोज आदित्यपुर थाने जाते हैं.मीडिया की इतनी मौजूदगी के बावजूद कैसे ऐसा होता है कि लोगों को एक रिसीविंग के लिए दौड़ना पडता है.
ये पढकर बुरा मत मानिए सोचिए……..कुछ नया और सकारात्मक हो…
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