Dhanbad:काजी नजरूल सोसायटी की ओर से आयोजित हुआ नजरूल जयंती–स्थापित कलाकारों के साथ –साथ नये कलाकारों ने भी सुर,ताल और छन्द का जलवा बिखेरा
धनबाद।
साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था काजी नजरूल सोसायटी द्वारा बांग्ला अस्मिता और विद्रोही चेतना के कवि नजरूल इस्लाम के 123 वां जंयती के उपलक्ष्य में हीरापुर स्थित दुर्गा मंदिर परिसर में नजरूल के गीत और कविताओं पर आधारित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम — ‘ चेतनाए नजरूल ‘ का मंगलवार शाम को आयोजन किया गया।
इस कार्यक्रम में कलाकारों ने गीत, कविता पाठ और नृत्य की सुंदर प्रस्तुति से श्रोताओं का मन मोह लिया।
दिलचस्प बात यह थी कि कार्यक्रम में स्थापित कलाकारों के साथ साथ स्थानीय नवोदित कलाकारो ने भी अपनी प्रतिभा का जौहर दिखाया। गायिका रूपा चटर्जी द्वारा सेदिन छिलो गोधूलि लगन, जंयती चटर्जी द्वारा वधु तोमार आमार , सांयतनी चक्रवर्ती द्वारा हिन्दोलाए को लोगों ने विशेष रूप से पसंद किया।
कार्यक्रम में भाग लेने वाले कलाकारों में काली प्रसाद बनर्जी, बिजन बनर्जी, अरूण बनर्जी,रूपा चटर्जी, जयंती चटर्जी, इन्द्र्जीत चटर्जी, लिसा चौधरी, कुषाण सेनगुप्ता, सायंतनी चक्रवर्ती, रीषिता सेन, रिशान सेनगुफ्ता, सुरज दत्ता, त्रिशिता राय, एरिना चौधरी, तान्या गांगुली, समृद्धि लाहिड़ी, देवराज चौधरी, सोमनाथ चौधरी,बिजीत राय, बच्चु दता प्रमुख हैं। कलाकारों को तबले पर बिजन बनर्जी, सुरजीत दत्ता, दिलीप पाल, एकार्डियन पर काली प्रसाद बनर्जी और गिटार पर सतीश खेन्दरिया ने संगत किया। वहीं के एन एस कोयर ग्रुप की ओर से नमो मोमो बांग्ला देश नामक प्रसिद्ध नजरूल गीति प्रस्तुत किया गया।
सोमनाथ चौधरी और बिजीत राय ने कवि नजरूल की कविताओं का आवृति प्रस्तुत कर श्रोताओं की वाहवाही बटोरी।
बताते चले काजी नज़रुल इस्लाम बांग्ला गजल के प्रवर्तक थे ।
उन्होंने बांग्ला में बड़ी संख्या में श्यामा संगीत की भी रचना की है और उनके गीतों में प्रकृति, आध्यात्मिकता, जीवन के बहुवीध अनुभवों के साथ-साथ भारतीय संस्कृति को सहेजने के तत्व बहुतायत में पाई जाती है।
विद्रोही कवि काजी नजरूल इस्लाम
ने भक्ति साहित्य को जहां कई इस्लामिक मान्यताओं वाली रचनाएं दीं, वहीं देवी दुर्गा की भक्तिमें गाया जाने वाला श्यामा संगीत और कृष्ण गीत-भजन की दुनिया को भी उन्होंने समृद्ध किया।
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