पुस्तक समीक्षा: मेरी उम्मीद की ओर

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पुस्तक समीक्षा: मेरी उम्मीद की ओर
समीक्षक: ब्रजेश वर्मा
“किस पन्ने को पढूं
हर पन्ने पर ख्वाब हैं
हर शब्द मुझे कुछ कहते हैं
कुछ बातें कहते हैं………”
कुमारी छाया की दूसरी कविता संग्रह “मेरी उम्मीद की ओर” में उन्होंने अपनी पहली पुस्तक “एक प्याली चाय” से कुछ कदम आगे बढ़कर प्रकृति के उन नजारों का दीदार कराया है, जो झारखंड की पहचान है।
वह खुद कहती हैं, “मुझे प्रकृति से लगाव है और जब मैं प्रकृति के पास होती हूँ तो जीवन के सुंदर रूप को अपलक निहारते रहती हूं।”
आप झारखंड के किसी भी इलाके में चले जाइये, प्रकृति का वरदान हर जगह दिखाई देगा। ऐसे में, किसी भी संवेदनशील कवियत्री का मन कलम उठाने को न करे ऐसा संभव नहीं। कुमारी छाया, जो जमशेदपुर में पेशे से विज्ञान की शिक्षिका हैं, जब खुद को प्रकृति के करीब पाती हैं तो उनके विषय की धारा कविताओं की ओर मुड़ जाती है।
व्यक्तिगत रूप से मुझे उनकी लेखनी इसलिए भी पसंद है कि मुश्किल से चार- छह पंक्तियों में ही वह अपनी बातें कहकर दूसरे पन्ने की ओर बढ़ जाती है। ऐसे में, उनकी पुस्तक में बोझिलता का आभाष नहीं होता।
सौ पेज की इस कविता संग्रह “मेरी उम्मीद की ओर” में सौ कविताएं हैं। पहली ही कविता से पुस्तक के शीर्षक लिए गए हैं, जिसमें कवियत्री कहती हैं:-
“मेरी उम्मीद की ओर
मेरे ख्याल हो जैसे
फूलों से मेरी बातें हो रही हो
कह रही हो मुझसे कि देखो,
आज कितनी मोहक लग रही हूँ….”
फूल तो प्रकृति का एक ऐसा वरदान है, जिसे वह हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है। और यदि वही फूल “जाड़े की सुगबुगाती धूप में खिले तो कुछ ऐसी पंक्तियों की रचना होती है:-
“जाड़े की सुगबुगाती धूप
तुम्हारी हंसी की कोंपलें
छन-छन कर मेरे दिल तक
आ जाती है…….”
अपनी इस कविता संग्रह में कुमारी छाया ने एक प्रकार से खुशियों को बांटा है:-
“खुशियां जो जरा-जरा सी बात पर
हमें उड़ने के लिए मजबूर कर दे।”
कवियत्री का कहना है कि जीवन में चाहे जितनी भी कठिनाइयां हों, वह आसमान में चांद को देख अवसाद को भूल जाती हैं और फिर उसी चांद की तसवीर वह अपने शब्दों से खींच लेती हैं। इसे ठीक से समझने के लिए उनकी कविता “जिंदगी के लिए” पढ़नी होगी जो महज पांच पंक्तियों की हैं और जिसमें कहा यह गया:-
“जिंदगी के लिए
एक लम्हा बहुत है खुशी का….
माला बनाएंगे खग से ले पंख हम
हवाओं से बातें कर आएंगे।”
किन्तु इंसान के सोचने का दायरा जब इश्क की ओर मुड़ता है तो भींगी-भींगी सी पंक्तियां का सृजन होता है। कवियत्री इसका अपवाद नहीं हैं। वह “इश्क की छाया” देख कहती हैं:-
“इश्क की स्याही में
डुबो कर लिखे अल्फाज
सीधे दिल की किताब के
पन्नों पर उतर जाते हैं..”
लेकिन यह जाहिर है कि इश्क दर्द देता है। तब कुछ ऐसी रचना होती है:-
“अक्सर दर्द में हम
उस शख्स को याद करते हैं
जो हमदर्द होता है…..”
यह सही है। दर्द से बना रिश्ता अनमोल होता है। कुमारी छाया की इस कविता संग्रह को पढ़ने के लिए कुछ नहीं करना है; हाथों में उठाइये, किसी ट्रेन की खिड़की वाली सीट पर बैठ जाइए, प्रकृति का नजारा कीजिए और “मेरी उम्मीद की ओर”के एक एक पन्ने पलटिये; यकीन मानिए आप अपने गंतव्य से पहले 100 पेज की इस किताब को बिना बोझिल हुए समाप्त कर देंगे।
मेरी शुभकामनाएं!
किताब का मूल्य मात्र 149 रुपये है और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध है।

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