Bihar Positive News : बाल्यकाल से लेकर युवावस्था तक करीब बीस वर्षों तक अपने गांव की रामलीला में श्रीराम का अभिनय किया, अब 78 की उम्र में लिख डाला हिंदी में रामायण

प्रोफेसर रामचंद्र सिंह ने लिखा हिंदी में रामायण यानी 'श्रीरामचन्द्रायण

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सिवान ।

बाल्यकाल से लेकर युवावस्था तक करीब बीस वर्षों तक अपने गांव की रामलीला में श्रीराम का अभिनय करने वाले बिहार के सिवान स्थित सरसर गांव के रहने वाले रिटायर्ड प्रोफेसर रामचंद्र सिंह ने 78 वर्ष की उम्र में हिंदी में रामायण लिखा। रिटायर्ड प्रोफेसर रामचंद्र सिंह को करीब 10 साल लगे इस कार्य को करने में । 786 पृष्ठों वाले इस पुस्तक का नाम ‘श्रीरामचंद्रायण’ रखा गया है। जिसे पटना के स्वत्व प्रकाशन से प्रकाशित किया है। हाल ही में बिहार के सिवान जिला के महादेवा में इस पुस्तक का लोकार्पण किया गया।  इस दौरान  लेखक रामचंद्र सिंह सुरसरिया, प्रकाशक कृष्णकांत ओझा, शिक्षाविद रमेंद्र राय के साथ ही शहर के कई प्रबुद्ध लोग मौजूद थे।

लेखक व ग्रन्थ परिचय
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बिहार में सरयूजी की पुण्यधारा से पोषित सिवान जिले के सरसर गांव निवासी प्रो. रामचन्द्र सिंह जी पर प्रभु श्रीराम की विशेष अनुकम्पा है जिसके कारण उनका मन हमेशा राम कथा चिंतन व श्रवण में लगा रहा। उनका गांव रामभक्ति के लिए प्रसिद्ध है। उनके गांव में हमेशा रामकथा व रामलीला होती रहती है। बाल्यकाल से लेकर युवावस्था तक करीब बीस वर्षों तक उन्होंने अपने गांव की रामलीला में श्रीराम का अभिनय किया। आप कुशाग्र बुद्धि के विद्यार्थी थे। आपका जन्म भारद्वाज गोत्रीय भूमिहार ब्राह्मण कुल में हुआ। इस प्रकार ये स्वयं को वाल्मीकि की संतती मानते हैं। रसायनशास्त्र से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद आप सिवान के प्रतिष्ठित डीएवी कालेज में प्राध्यापक हुए। विज्ञान के विद्यार्थी होने के बावजूद आपका मन साहित्य रचना में लगा रहा। आप ने कई काव्यग्रंथों की रचना की लेकिन आपका मन श्रीराम कथा में ही रमता था। करीब 10 वर्ष पूर्व आपके हृदय में भाव आया कि आदि कवि वाल्मीकिजी की रामकथा का अवगाहन कर हिंदी में रामकथा का वर्णन करूं। करीब दस वर्षों की अनवरत साधना, संतों व रामकथा मर्मज्ञों के साथ सत्संग के बाद आपने करीब आठ सौ पृष्ठों वाली रामचन्द्रायण नामक महाकाव्य की रचना की। जिसका प्रकाशन “स्वत्व प्रकाशन” पटना द्वारा किया गया है।

सात कांडों वाले इस महाकाव्य के प्रत्यक कांड सर्गों में विभक्त है। हिंदी में रचित इस ग्रंथ में कई स्थानों पर लोकगीतों की समृद्ध परंपरा के दर्शन होते हैं। श्रीरामचन्द्र सिंहजी चित्रकूट तुलसी पीठ के भक्त है। इनका यह सारस्वत अनुष्ठान रामकथा के प्राचार-प्रसार के अपने उद्येश्य व समष्टि के कल्याण के भाव से पूर्ण हैं।

“श्रीरामचन्द्रायण” की भाष सरल, सहज व ग्राह्य है। कवि की भवाभियक्ति चमत्कृत करती है। कवि कहता है-

मेरे मन में चलता मन्थन, श्लोक (छंद) है या नहीं, मेरा वचन।
गुरु का यह कथन सुन, भरद्वाज बोले बात चुन।
गुरुवर का प्रस्फुट वचन, श्लोक है यह उत्तम कहन।

कवि की इन पंक्तियों में राम-चरित के साथ कवि की भावना भी आप्लावित-निःसृत है।

साधु मिलते हैं रघुवर से।
श्रीराम दशरथनन्दन, सदाचारी हें प्रियदर्शन।
उनका देह भव्य चिकना, न ज्यादा लम्बा नहीं ठिगना।
भरा हुआ चैड़ा वक्षस्थल, श्रीराम की ठोढ़ी है मांसल।
रामग्रीवा है शंख समान, कमलाक्ष हैं शोभायमान।
भुजाएँ हैं लम्बी घुटने तक, शुभलक्षणों की हैं द्योतक।
पँसलियाँ हैं मांस से तुष्ट, कंधे हैं हड्डी-मांस से पुष्ट।
उन्नत है श्रीराम का भाल, मनोहर है उनकी चाल।

राम का ऐसा स्वरूप कवि की कल्पना में साकार होता है,जो सदियों से जन मानस में रचित-बासित है।

राम के चरित्र- उन्नयन व रावण की ओछी सोच को अभिव्यक्त करती पंक्ति-
नर-वानर को माना तुच्छ, इनको कह सका न कुछ।
उसे है सिर्फ विद्या का चाव, उसमें है बुद्धि का अभाव।
दशानन अज्ञानी बेचारा, नर के हाथों जायेगा मारा।
आओ करें विष्णु की अराधना, नरावतार की करें प्रार्थना।
मिलकर की सबने स्तुति, प्रकटे विष्णुजी जगत्पति।
गरुड़ पर होकर सवार, ले शंख, चक्रादि हथियार।
शरीर पर था पीताम्बर, सभा में विष्णु गये उतर।
सभी देवता महानुभाव, होकर पूर्ण विनीतभाव।
विष्णुजी से लगाये गुहार, हे जगत के पालनहार।
कीजिए जगत का उद्धार, लीजिए नर का अवतार।
लंका का अधिपति रावण, उससे त्रस्त हंै सज्जनगण।
देवता, गन्धर्व और सिद्ध, उसके उत्पात से हैं विद्ध।

करता सारा कार्य वर्जित, भौतिकता करता अर्जित।
लेता है बना सोने का घर, लोकनिंदा का करे न डर।
चलता है हमेशा उतान, बुरा होता उसका अवसान।

अन्त में है मुझको कहना, श्रीराम में ही रमे रहना।
रखें हृदय में रामभाव.

इसी लोक कल्याण और समष्टि भाव मे रचित यह “श्रीरामचन्द्रायन” राष्ट्र-नायक प्रभु श्रीराम के सम्पूर्ण चरित का उद्भाषण हैं।

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