जमशेदपुर,।
आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के तत्वावधान में आनंद मार्ग स्कूल व आनंद मार्ग जागृति कांड्रा के प्रांगण में 28 फरवरी शुक्रवार को त्रिदिवसीय द्वितीय संभागीय सेमिनार के प्रथम दिन सेमिनार में उपस्थित साधक साधिकाओं को संबोधित करते हुए केन्द्रीय प्रशिक्षक आचार्य संपूर्णानंद अवधूत ने
वर्तमान शासन तंत्र और नेतृत्व की चर्चा करते हुए कहा कि वर्तमान के शासन-तंत्र एकनायकतत्व ( dictatorship), पार्टी एकनायकतत्व और गणतंत्र मानव समाज को प्रगति के पथ पर ले चलने में पूरी तरह सार्थक सिद्ध नहीं हुआ है। निश्चित ही अन्य की तुलना में गणतंत्र काफी दीर्घ स्थाई होता है। इस एकनायकतत्व, पार्टी एकनायकतत्व और गणतंत्र की खींचतान का एकमात्र समाधान प्रउत( प्रगतिशील उपयोग तत्व) सदविप्र सूत्र है।सदविप्रों का कल्याणकारी अधिनायकतत्व नेतृत्व ही शासन तंत्र की श्रेष्ठ पद्धति है। जो नीतिवादी आध्यात्मिक साधक शक्ति सम्प्रयोग द्वारा पाप का दमन करना चाहते हैं वे ही सदविप्र है। चक्र की परिधि में इनका स्थान नहीं है यह चक्र की धुरी या प्राण केंद्र के रूप में अधिष्ठित रहेंगे। किसी भी युग में कोई शासक यदि शोषण की भूमिका में उतरता है तो उस दशा में शक्ति सम्प्रयोग द्वारा सत और शोषित जनों की रक्षा तथा असत् और शोषको का दमन करना इन्हीं सदविप्र का धर्म है।
नेता की योग्यता और गुणों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि पीड़ित मानवता की सेवा में अपना सर्वस्व त्याग करने के लिए प्रस्तुत रहना। संवाद विवाद को मिटाता है, इसलिए संवाद स्थापित करना आवश्यक है। नेता को हर किसी से हर समय हर अच्छा चीज सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए।मानसिक क्षेत्र में संतुलन और भारसाम्य बनाए रखना चाहिए।वृहत् के प्रति ( ईश्वर ) आकर्षण अनिवार्य तत्व है ।लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सभी प्रकार की बाधाओं का सामना करने का दृढ़ संकल्प होना आवश्यक है।नेता सदैव ही ज्ञान, कर्म और भक्ति से सुसज्जित रहेंगे।उनका हर वक्तव्य विवेकपूर्ण और तर्कसंगत होना चाहिए।
संस्थान के सभी दोषों, अवगुणों, कमियों और क्षति की जिम्मेदारी स्वयं स्वीकार करने की क्षमता होनी चाहिए।
सरल, ईमानदार,मधुरभाषी, मेहनती, विनम्र, ईमानदार, विनोदी, निर्दोष और बुद्धिमान व्यक्ति ही समाज को सही नेतृत्व प्रदान कर सकता है।सभी अवसरों का उपयोग करने के लिए तैयार रहना और सभी खतरों का जवाब देने एवं सामना करने के लिए सम्मुखीन होने वाला व्यक्ति ही समाज को प्रगति के पथ पर ले जा सकेगा।इस अवसर पर पाञ्चजन्य , योगाभ्यास एवं सामूहिक साधना का आयोजन किया गया। अष्टाक्षरी सिद्ध महामंत्र बाबा नाम केवलम् का गायन भी किया गया
कल सेमिनार के दूसरे दिन 29 फरवरी का विषय है : धर्म मानव जीवन की एक मूल्यवान संपदा है
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