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Home » जमशेदपुर – वर्तमान औद्योगिक विकास प्रकृति के साथ सभ्यता और संतुलन की बजाय शोषण एवं दोहन पर आधारित है-सरयू राय
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जमशेदपुर – वर्तमान औद्योगिक विकास प्रकृति के साथ सभ्यता और संतुलन की बजाय शोषण एवं दोहन पर आधारित है-सरयू राय

BJNN DeskBy BJNN DeskJune 22, 2019No Comments3 Mins Read
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जमशेदपुर।स्थानीय काॅ-आॅपरेअिव काॅलेज में चल रहे ‘‘37 झारखंड बटालियन एनसीसी’’ कैम्प में आयोजित प्र्यावरण विषयक कार्यशाला को झारखंड सरकार के वरिष्ठ मंत्री एवं पर्यावरणविद सरयू राय ने विषय विशेषज्ञ के रूप में संबोधित किया। मंत्री सरयू राय ने कैडेटों को पर्यावरण के महत्व और उसकी विशिष्टताओं, स्वरूप और प्रकृति, मानव समाज के विकास में उसके योगदान एवं वर्तमान में उसके समक्ष उत्पन्न चुनौतियों के कारण मानव-संस्कृति पर पड़ रहे प्रतिकूल सर्वग्रासी संकट को वृहद रूप से रेखांकित किया।

उन्होंने बताया कि इसका जन्म साठ के दशक में अंधे औद्योगिक विकास के कारण हो रहे प्रदूषण और पर्यावरण क्षति के विरोध में हुआ। परन्तु दुखद है कि आज भी पर्यावरण की चिन्ता हमारे समाजिक चेतना का मुख्य या प्रभावी अंश नहीं बन सकी है। हम इसके प्रति उदासीन हैं और मात्र औपचारिकता का निर्वाहन कर रहे हैं। यही कारण है कि यह मीडिया के मुख्य एजेण्डे से भी बाहर है। आज रानीति, कारोबार, खेल, संस्कृति, फिल्म आदि का एक बड़ा पाठक एवं दर्शक वर्ग है, परन्तु पर्यावरण का पाठक बन कोई नहीं बन पाया है। फलतः मीडिया भी इस पर समुचि ध्यान नहीं देता।
उन्होंने कहा कि वर्तमान औद्योगिक विकास प्रकृति के साथ सभ्यता और संतुलन की बजाय शोषण एवं दोहन पर आधारित है। इसने प्रकृति के साथ सामंजस्य की बजाय वैपरित्य और वैषम्य सृजित किया है। जिसके कारण ओजोन परत की क्षय, ऋतुचक्र में परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग, धु्रवों और ग्लेशियरों के पिघलने और सभी तल के उपर उठने जैसी ायानक खतरों का सृजन हो रहा है।

श्री राय ने बताया कि गांधी जी ने कहा थाकि ’पृथ्वी हमारी आवश्यकताओं को पूर्ण करने समर्थ है, परंतु हमारे लालच की कोई सीमा नहीं है।’’ इस लाजची उपभागवादी दृष्टिकोण के कारण ही पृथ्वी एवं मानव समाज खतरे में है। एसी फ्रिज, ग्रीन हाउसेज से निकलने वाी विषैली गैसों से पृथ्वी की ‘सुरक्षा परत’ ओजोन क्षरीत हो रहा है। औद्योगिक कचरे के निकलने से नागरीय नालियों से नदी, भूमि, वायु एवंज ल प्रदूषित हो रहे हैं। पहले बड़े काम की चीज समझी जाने वाली प्लास्टिक का दुष्परिणाम हम झेल रहे हैं। हमें उपभोगवादी नागरीय जीवन शैली को बदलना होगा वरना चीन के बीजिंग नगर जैसी हालत हो जाएगी। जहाँ विषैली हवा के कारण उसे अन्यत्र स्थानांतरत करने की तैयारी चल रही है।

अंत में अपने व्यक्तव्य के निष्कर्ष के तौर पर उन्होंने विश्व प्रसिद्ध विद्धान -ई एफ झूकाकर की पुस्तक ‘‘स्माॅल इसज ब्यूटिफूल’ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पर्यावरण के प्रति गंभीर संचेतना के निर्माण, प्रकृति के साथ दोहन और द्वन्द्वात्मकता की बजाय मित्रवत साहचर्य के संबन्धों को विकास और अपनी भोगवादी नागरीय संस्कृति को सरल, सहज, प्रकृतिमूलक संस्कृति की ओर उन्मुख कर हम वैश्विक पर्यावरण के संकटों से मुक्त हो सकते हैं।
कार्यक्र का स्वागत भाषण कर्नल बी एस ने दिया एवं संचालन कैप्टन डाॅ. विजय कुमार पीयूष ने दिया।

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