जमशेदपुर -*जीव-भाव बंधन का कारण ब्रह्मभाव है पाप उबारण

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जमशेदपुर ।आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से द्वितीय संभागीय दो दिवसीय सेमिनार के दूसरे दिन को मार्ग गुरु श्री श्री आनंदमूर्ति जी के प्रतिकृति पर माल्यार्पण के साथ आनंद मार्ग जागृति , गदरा रहरगोड़ा में संपन्न हुआ। प्रथम सत्र में साधकों को संबोधित करते हुए केंद्रीय प्रशिक्षक आचार्य संपूर्णानंद अवधूत ने “वृहत् का आह्वान” विषय की चर्चा करते हुए कहा कि “जीव-भाव बंधन का कारण है वहीं वृहत का भाव या ब्रह्मभाव है पाप उबारण है। ”
सर्ववृहत् ब्रह्म का कोई आधार नहीं होता, ब्रह्म में ही, उन्हीं के मध्य बाकी षट्लोक सृष्ट है। केवल सत्यलोक में ही ब्रह्म अविकृत हैं। सत्यलोक को छोड़कर बाकी छः लोक माया के द्वारा प्रभावित है। जीवात्मा (जीव भाव) की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने कहा कि परमात्मा स्वरुप की प्रतिबिम्बित विकाश ही जीवात्मा है। जीवात्मा का अणु मन (मायिक मन) पंचकोषात्मक- काममय,मनोमय, अति मानस, विज्ञानमय एवं हिरण्यमय को लेकर है। पंचकोषों को शुद्ध एवं तैयार करने के लिए आहार शुद्धि ,अष्टांग योग ( यम, नियम ,आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार ,धारणा, ध्यान एवं समाधि )की निरंतर साधना करके भूमा मन के सत्यलोक में स्थापित होना होगा। उन्होंने कहा कि हे मनुष्य तुम भाग्यवान हो। तुम्हारे पास वृहत् का आह्वान आया है। जागो और अपनी प्रसुप्त यौवन के तमसोच्छन्न पौरुष को जगाओ। क्षुद्रत्व की श्रृंखला को तोड़ तमिस्रा के वक्ष को भेदकर आगे बढ़ो।
इस अवसर पर सुबह बाबा नाम केवलम अष्टक्षरी सिद्ध महामंत्र का अखंड कीर्तन में भाग लेकर साधकों ने आध्यात्मिक लाभ उठाया

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