जमशेदपुर – कंबल ओढ़कर घी पीने का कार्य कर रही है रघुवर सरकार 

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जमशेदपुर।

डॉ अजय कुमार ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि सीएजी की रिपोर्ट ने राज्य में रघुवर सरकार के भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के दावे की हकीकत को सार्वजनिक कर दिया। समावेशी विकास का दावा करनेवाले मुख्यमंत्री के शासन में गरीबों को बांटे जाने वाले कंबल वर्ष 2016 में श्रम नियोजन विभाग ने 9.82 लाख ऊनी कंबल आपूर्ति करने का आदेश इस शर्त के साथ दिया था कि कंबल स्थानीय बुनकरों के द्वारा तैयार किया जाएगा। झारक्राफ्ट के अधिकारियों के मिलीभगत से निविदा में उल्लेखित शर्तों का उल्लंघन करते हुए बाहर से घटिया कंबल खरीदकर आपूर्ति ही नही किया बल्कि फर्जी दस्तावेज के आधार पर भुगतान भी कर दिया गया।

सोची समझी रणनीति के तहत श्रम विभाग से आदेश प्राप्त होने के बाद स्थानीय बुनकरों से कंबल निर्माण के लिए धागा एवं हस्तकरघा मुहैया करवाने की योजना भी बनी जो फाइलों तक ही सीमित रह गया। फाइलों में धागा खरीदने से लेकर कंबल ढुलाई की कारवाई उल्लेखित है। पानीपत की दो कंपनी एन एन वूलन मिल्स  एवं उन्नति इंटरनेशनल  से 15.54 करोड़ रुपये की धागा खरीदी कर 27 कलस्टरों पर आपूर्ति का उल्लेख तो है, पर इस संबंध में कोई दस्तावेज उपलब्ध नही है।

हरियाणा की जिन 4 ट्रांसपोर्ट कंपनी के द्वारा धागा एवं अर्धपरिस्कृत कंबल की ढुलाई उल्लेख फाइल में है, उन्होंने टेन्डर (निविदा) में हिस्सा तक नही लिया है और उनके नाम से 1.10 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया। पानीपत से सड़कमार्ग के द्वारा ट्रकों के द्वारा 48 से 261 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से धागों की ढुलाई का उल्लेख है जबकि भारतवर्ष में ट्रकों की औसत रफ्तार 20 से 40 कि मी प्रतिघंटा है।

बात यहीं खत्म नही होती पानीपत से सासाराम होते हुए झारखण्ड की दूरी सबसे कम है जबकि फाइलों में परमिट में अधिक दूरी के मार्ग का उल्लेख है। परिवहन चालान काल्पनिक है , धागे लेकर झारखण्ड आया ट्रक दूसरे ही दिन हरियाणा लौट गया जो असंभव है। 4 लाख 49 हजार 762 कंबल पानीपत से 46 ट्रकों की 57 यात्राओं से भेजा गया जिसमें किसी टाॅल प्लाजा का उल्लेख नही है।

 स्थानीय बुनकर रोजगार से वंचित रह गए 

ऐसा सिर्फ झारखण्ड में रघुवर राज में हीं संभव है, मैडम रेणु का आज भी लापता हैं। पहले से ही झारक्राफ्ट में उनकी नियुक्ति एवं झारखण्ड में योगदान को लेकर भाजपा कार्यकर्ता तक संशय में हैं। इस घटना को सुर्खियों में आये हुए लंबा अरसा गुजर गया है सीएजी के खुलासे के बाद जांच की बात कही जा रही है। जिसे लेकर बहुचर्चित लोकोक्ति याद आ जाता है ’जब संइयां भये कोतवाल तब डर काहे का’ याद आ जाता है। फर्जी दस्तावेज के आधार पर 18.41करोड़ रुपये का भुगतान पर सरकार की चुप्पी इस बात की पुष्टि करती है।

घोटालों का सिलसिला यहाँ थमता नही दिख रहा सीएजी की रिपोर्ट से ये बातें भी सामने आई है । झारखण्ड के अधिकारियों के द्वारा बहुचर्चित चारा घोटाले के तर्ज पर राज्य में एकबार पुनः घोटाले की आशंका जताई गई है ।

मवेशियों के समग्र स्वास्थ्य को बनाये रखने और दूध की उत्पादकता बढ़ाने के लिए तकनीकी इनपुट कार्यक्रम शुरू किया गया । इसके तहत मिनरल मिक्सर दवाएं एवं अन्य पोषाहार का वितरण निःशुल्क या रियायती दर पर करना था । गव्य विकास निदेशालय ने इसकी खरीद और वितरण प्रक्रिया को संचालित किया वर्ष 2012 से 2017 तक कि अवधि में कुल 63 करोड़ रुपये खर्च किये गए। सीएजी के जांच के बाद यह पाया गया कि निदेशालय के पास सिर्फ 2016-17 का ही हिसाब और सबूत उपलब्ध है । वर्ष 2012 से 2016 में किये गए 43 करोड़ खर्च का कोई हिसाब मौजूद नही है ।

312 करोड़ खर्च कर खरीदे गए दुधारू पशुओं का कोई अता पता नही । सीएजी की रिपोर्ट में बताया गया की कृषि पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के पास यह आँकड़ा ही नही उपलब्ध है कि रियायती दर पर कितनी गायें बांटी गई और इसपर कितनी सब्सिडी का वितरण हुआ ऐसी स्थिति 18 जिलों की है

महालेखाकार की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि राज्य सरकार के दस पीएसयू में (अंश एवं ऋण) निवेश से राज्य सरकार को 2,092.56 करोड़ का सीधे नुकसान हुआ है । राज्य की 24 में से सिर्फ 10 पीएसयू ने लेखा जोखा जमा किया है, जिसमें से पांच कंपनियों ने करीब 22.98 करोड़ रूपये का लाभ अर्जित किया है। वहीं पांच कंपनियों ने 1700.73 करोड़ का नुकसान उठाया है। राज्य सरकार ने 12 चल रही पीएसयू को 2009-10 से 2016-17 के दौरान 2,659.56 करोड़ की बजटीय सहायता प्रदान की है, जिनमें छह कंपनियां ऐसी है, जिनके पास तीनसाल का बकाया है। महालेखाकार ने राज्य सरकार को नुकसान में चल रही पीएसयू के कामों की समीक्षा करने के बाद बंद करने की संभावना तलाशने तथा बजटीय सहायता उन पीएसयू को नहीं देने की अनुशंसा की है। साथ हीं साथ लाभ अर्जित करने वाले पीएसयू के लिए लाभांग नीति बनाने को कहा है। इसके अतिरिक्त उन कंपनियों के क्रियाकलापों की समीक्षा करने को कहा है, जिन्होंने लेखापरीक्षकों को गलत प्रमाण पत्र दिए हैं।

पांच पीएसयू को हुआ 1700.73 करोड़ का नुकसान।

पांच पीएसयू ने मात्र 23 करोड़ रूपये ही लाभ कमाए।

महालेखाकार की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि झारखण्ड पुलिस हाउसिंग निगम लिमिटेड ने पुलिस बल के आधुनिकीकरण के लिए केन्द्र सरकार से 20 करोड़ रूपये प्राप्त किए थे। इसपर 2009 से 2017 तक ब्याज के रूप में 15.23 करोड़ मिले। लेकिन कंपनियों ने ब्याज की राशि को उक्त योजना के खाते में जमा करने के बजाय उसे गलत तरीके से अपनी आय माना। इसके लिए कंपनी ने पांच करोड़ इनकम टैक्स के रूप में भुगतान भी कर दिया। निगम ने 4.87 करोड़ रूपये के छह निर्माण कार्य के लिए चार कंपनियों को टेंडर दिया, जिन्होंने कार्यानुभव व वित्तीय क्षमता के न्यूनतम आवश्यकता को भी पूरा नहीं किया था। इसकी जानकारी गृह विभाग को भी दी गई है, लेकिन अभी तक इसपर कोई कार्रवाई के बारे में एजी को नहीं बताया गया है।

 

उपरोक्त घोटाले महालेखाकार के रिपोर्ट में सत्यता को साबित कर रहे हैं, बावजूद इसके सरकार मौन साधे हुए है और भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस का दावा करते फिर रही है। दरअसल रघुवर सरकार घोटालों की जांच कराने से कतराती है, क्योंकि जाॅंच के बाद भागीदारी सुनिश्चित होगी और वहीं दूसरी ओर बड़ी सफाई से विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए इनके कैबिनेट मंत्री सरयू राय बयानबाजी करते हैं। अगर सरयू राय जी घोटालों को लेकर इतने ही संवेदनशील हैं, तो सरकार से उनको इस्तीफा देना चाहिए और तब बाहर आकर बयानबाजी करनी चाहिए।

झारखंड की रघुवर सरकार ने 2014-15 से लेकर 30 दिसंबर 2018 तक प्रचार-प्रसार में 530.69 करोड़ खर्च कर दिये हैं ।इसका खुलासा सरकार की हीं मध्यावधि फिस्कल रिपोर्ट में किया गया है। सरकार का ध्यान विकास पर कम और पब्लिसिटी पर ज्यादा है। मोमेंटम झारखंड के नाम पर सिर्फ रांची ही नहीं बल्कि देश के सभी प्रमुख हवाईअड्डों, रेलवे स्टेशन और महानगरों में पोस्टर-बैनर लगाकर जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा लुटाने का काम किया ।

राज्य सरकार के लाख दावों के बावजूद आधारभूत संरचना के क्षेत्र जैसे बिजली, पानी, शिक्षा, खाद्य आपूर्ति, स्वास्थ्य और कृषि में खर्च का प्रतिशत पीआरडी के मुकाबले काफी कम है । वित्त विभाग के आंकड़ों के अनुसार कृषि में बजट का 38.66 फीसदी, खाद्य आपूर्ति में 42.04 फीसदी, स्वास्थ्य में 59.66 और ऊर्जा विभाग में 32.27 फीसदी ही 30 दिसंबर 2018 तक खर्च हुआ है । वहीं पीआरडी ने 76.22 फीसदी खर्च कर दूसरे विभागों को काफी पीछे छोड़ दिया है। सरकार काम कम कर रही है प्रचार ज्यादा कर रहे हैं ।

प्रेस वार्ता में प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार, जिला अध्यक्ष बिजय खॉ, कोल्हान प्रवक्ता राकेश तिवारी आदि उपस्थित रहे। जिला कमिटी के ब्रजेन्द्र तिवारी, संजय सिंह आजाद, प्रिंस सिंह, धर्मेन्द्र प्रसाद, जोगिन्दर सिंह उपस्थित रहे

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