- उन्नत कृषि समृद्ध कृषक
- कृषि के क्षेत्र में पूर्वी सिंहभूम के बढ़ते कदम
- पॉलीहाउस खेती के जरिये जरबेजा पुष्प की खेती कर रही हैं जमशेदपुर की सुदीप्ता घोष दास
झारखंड में पर्याप्त मात्रा में संसाधन मौजूद हैं और युवा यदि इस तरह की खेती में ध्यान दें तो अगले 5 वर्षों में झारखंड कृषि के क्षेत्र में पंजाब और हरियाणा को भी पीछे छोड़ देगा”- सुदीप्ता घोष
जमशे्दपुर।
जहाँ फूल होते हैं वहां खुशबू का होना लाज़मी है और जहां फूलों की खेती होती हो वहां की फिज़ा खुशबू से महक उठती है। पूर्वी सिंहभूम की फिज़ाओं को महकाने का कार्य कर रही हैं सोनारी वृंदावन गार्डन की रहने वाली सुदीप्ता घोष दास।
फूल की खेती के जरिये अपनी एक अलग पहचान बनाई
सुदीप्ता घोष दास जो जमशेदपुर XLRI की पूर्व छात्रा रह चुकी हैं, उन्होंने 14 वर्षों तक एक प्रतिष्ठित मल्टीनेशनल कंपनी में कार्य करने के बाद उद्यमशीलता का दामन थामा और इसी कदम को आगे बढ़ाते हुए वो पॉलीहाउस खेती के जरिये जरबेजा पुष्प की खेती कर रही हैं।सुदीप्ता घोष दास जरबेजा फूल की खेती करने वाली जमशेदपुर, पूर्वी सिंहभूम में एक मात्र महिला हैं जिन्होंने इस फूल की खेती के जरिये अपनी एक अलग पहचान बनाई है।सुदीप्ता ने बताया कि “ग्लोबल एग्रीकल्चर समिट 29 और 30 नवम्बर 2018 में ईस्ट सिंहभूम से रिप्रेजेंटेटिव के तौर पर उन्होंने भाग लिया। एग्रीकल्चर समिट से पहले हुई प्रोजेक्ट भवन की बैठक में मुख्यमंत्री के समक्ष यहाँ उगाए जाने वाले क्वालिटी प्रोडक्ट को बाहर के मार्केट में भेजने के लिए मार्केट लिंकेज तथा खेतो में उगाए जाने वाले प्रोडक्ट को और बेहतर करने के लिए तथा तमाम तरह की जानकारी हेतु हर जिले में सुविधा मुहैया करवाने के लिए अपनी बात रखी।”उन्होंने बताया कि ग्लोबल एग्रीकल्चर समिट के बाद मार्किट मुहैया करवाने के लिए एक समिति बनाने का मुख्यमंत्री द्वारा आश्वासन दिया गया है।
जरबेरा की खेती करने का विचार मन में कैसे आया
सुदीप्ता घोष का कहना है कि जरबेजा अपनी सुन्दरता के कारण दस महत्वपूर्ण कर्त्तन फूलों में एक अलग स्थान रखता है। विभिन्न रंगों में पाए जाने के कारण व्यापारिक फूलों में इसे बहुत ही पसंद किया जाता है। इनके अनुसार, किसी भी इवेंट या फंक्शन में जो फूलों की सजावट की जाती है उनमें से ज्यादातर फूल बाहर से मंगाए जाते हैं। तब इनके मन में विचार आया कि क्यों न सजावट के फूल जरबेजा की खेती की जाए और उसके बाद इन्होंने सबसे पहले जमशेदपुर में जरबेजा की मार्केटिंग के बारे में पता किया और जरबेजा की खेती के लिए शुरूआती इन्वेस्टमेंट के लिए इन्होंने 3 लाख खुद की तरफ से तथा 7.78 लाख रुपये बैंक से लोन लिया तथा नेशनल हॉर्टिकल्चर द्वारा 7.78 लाख का सहयोग प्राप्त हुआ। उसके बाद जरबेजा कि खेती के लिए जो आवश्यक उपकरण चाहिए उनको ले कर खेती प्रारंभ की और उनकी सफलता रंग लाई। आज वो जरबेजा की अच्छी तादाद में खेती कर जमशेदपुर तथा जमशेदपुर के बाहर जरबेजा फूल का निर्यात कर रही हैं।
अभी इनके फर्म में 2 स्थायी कर्मचारी हैं तथा जरूरत के अनुसार रोजाना बेसिस पर मजदूरों को बुला कर काम किया जाता है।
क्या हैं भविष्य की योजनाएं
भविष्य की योजनाओं के बारे में इन्होंने बताया कि बेबीकॉर्न, स्वीटकॉर्न, बंदागोभी, तथा शिमलामिर्च आदि भी जो बाहर से आयात किया जाता है उनकी खेती करने का सोच रही हैं जो भविष्य में करना चाहती है।
अपार संभावनाएं हैं खेती में
इन्होंने बताया कि झारखंड के किसानों को अगर जानकारी दी जाए तो जरबेजा जैसे और भी जो फूल बाहर से मंगवाये जाते हैं वो यहीं झारखण्ड में ही उगाया जा सकता है जरूरत है तो इसके प्रति जागरूक करने की कि फूलों की खेती में अपार संभावनाएं हैं।बकौल सुदीप्ता झारखंड में पर्याप्त मात्रा में संसाधन मौजूद हैं और युवा यदि इस तरह की खेती में ध्यान दें तो अगले 5 वर्षों में झारखंड कृषि के क्षेत्र में पंजाब और हरियाणा को भी पीछे छोड़ देगा।
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